पशुपालक पशुओं को बरसात में ऐसे बचाएँ
पशुधन सबसे अनमोल धन है। उसके दूध से हम मानवों को सेहत बनती है। दूध लाभकारी होता है। वहीं, गोबर शुद्धता की प्रतीक है। उस अनबोलत पशुधन को बचा कर रखना गौपालकों की पूरी ज़िम्मेवारी होती है। बरसात के मौसम में पशुओं पर विशेष देखभाल सहित उसके आहार रूपी चारा का भी सही देखरेख जरूरी है।
बरसात के मौसम में पशुओं का विशेष देखभाल जरूरी |
मनुष्य की तरह पशु भी बरसात में विभिन्न रोगो के प्रति संवेदनशील होते है, बहुधा देखा गया है कि वर्षा ऋतु में पाचन से सम्बन्धित रोग अधिक प्रकोप करते है।
इस मौसम में भूसा, हरा-चारा, दाना, दलिया, एंव चोकर इत्यादि में फफूद का प्रकोप हो जाता है एंव नदियो तालाब का पानी कीटाणुओ तथा विभिन्न प्रकार के परजीवियो से प्रदूषित हो जाता है। पशुओ के इस प्रदूषित चारे दाने एंव पानी के सेवन से पाचन से संबन्धित बीमारियां हो जाती है, जिससे पशुओ का उत्पादन प्रभावित होता है। इससे दुधारू पशुओं के फैट की गिरावट देखने को मिलती है।
आहार रूपी चारा का भी सही देखरेख आवश्यक |
ऐसे में नेशनल डेयरी डेवलपमेन्ट बोर्ड के चेयरमैन दिलीप रथ बताते है कि बरसात का मौसम पशुपालको के लिए बेहद चुनौती पूर्ण होता है। दुधारू पशुओं के चारा, स्वास्थ्य प्रबंधन, दूध दोहन का प्रबंधन, सामान्य एवं रखरखाव पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
बरसात का मौसम पशु बीमारियों के लिए सबसे घातक समय होता है। ग्रामीण इलाको में डेयरी कोऑपरेटिव के पास बड़े पैमाने पर सक्रीय सदस्य है। जिसका उपयोग हमलोग ग्रामीण और बाढ़ ग्रस्त इलाको में पशु प्रबंधन एवं रोग का निवारण के लिए पशुपालको को जागरूक कर सकते है, उन्होंने बताया।
इसको लेकर बरसात के मौसम में दुधारू पशुओं का पोषण एवं प्रबंधन के लिए डेयरी बोर्ड ने आवश्यक परामर्श जारी किया है। जिससे पशुपालकों को भविष्य के नुकसान से बचा सकता है।
बरसात के मौसम में बीमारियों से बचाव के लिए पशुपालकों को निम्न उपाय बरतनी चाहिए।
आवास प्रबंधन:-
पशुओं के शेड में पानी के रिसाव और जीवों को पैदा करने वाले स्तनदाह जानवरो के विकास में हो रही असुविधा को सुनिश्चित करें। और पशुओं के लिए लीक प्रूफ शेड का प्रयोग करे।
डेयरी पशु, विशेष रूप से ताज़े कैल्वर्स, जो भारी उडद के साथ होते हैं, फिसलन वाले फर्श के कारण दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। जानवरों के फिसलने से बचने के लिए रबड़ की चटाई का उपयोग किया जाए।
शेड में हवा की गति और शेड को सुखाने के लिए उच्च गति के पंखे लगाए जाए।
टिक्कों और मक्खियों को नियंत्रित करने के लिए शेड में कीटाणुनाशक का छिड़काव करें। बाढ़ ग्रसित क्षेत्रों में, जानवरों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने की अग्रिम योजना स्थानीय अधिकारियों के परामर्श से की जाए।
आहार प्रबंधन:-
बरसात के समय हरी घास में अधिक नमी और कम फाइबर होता है जो दूध में वसा अवसाद और पतला मल होने का कारण बनता है। इन समस्याओं से बचने के लिए हरी घास के साथ पर्याप्त सूखा चारा उपलब्ध कराएं।
इस मौसम में डेयरी पशु (एचसीएन) सनायड विषाक्तता के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, उन्हें चारा खिलाते समय पर्याप्त देखभाल की जानी चाहिए।
दाने में आधिक नमी होने से कवक के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है जिससे अफ्लाटॉक्सिं का स्तर अधिक हो जाता है। जिससे पशुओं मै दुग्ध उत्पादन और प्रजनन शक्ति प्रवावित होती है।
दूध के उत्पादन को अधिकतम करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पशु आहार और खनिज मिश्रण खिलाना सुनिश्चित करें।
स्वास्थ्य प्रबंधन:-
हेमोरहाजिक सेप्टीसीमिया (गालघोटू) एक घातक बीमारी है जो आमतौर पर बरसात के मौसम में होती है। बारिश शुरू होने से एक महीने पहले सभी जानवरो जो 6 महीने से ऊपर के है सभी जानवरों का टीकाकरण करें।
अस्वच्छ वातावरण के कारण बरसात के मौसम में थानैला रोग आम है। इस बीमारी से निपटने के लिए पशु चिकित्सा की सहायता लें। आयुर्वेद दवाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है।
दुधारू पशुओं के चारा सहित स्वास्थ्य प्रबंधन भी जरुरी |
बारिश के मौसम में चिचड़/ किलनी जैसे वाहा परजीवी का संक्रमण आम है। इसके लिए वाहा परजीवी नासक दवा का नियमित रूप से उपयोग करे। परजीवी को नियंत्रित करने के लिए बरसात की शुरुआत से पहले कृमिनासक दवा का उपयोग करें।
बारिश के मौसम में दुधारू पशुओं के कुशल प्रबंधन के लिए एनडीडीबी-विकसित सलाहकार दुधारू पशुओं की उत्पादकता को अनुकूलित करने में मदद करेगा।
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