पुस्तक- जाति और प्रकृति

*पुस्तक- जाति और प्रकृति*

*दिल्ली के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित*

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दलितों और भारतीय पर्यावरण नीतियां पर आधारित पुस्तक है- जाति और प्रकृति। जिसमें पर्वत पुरूष दशरथ माँझी का जीवन भी सम्मिलित है। हथौड़ा पुरूष शिवू मिस्त्री तथा लेखक- कवि- पत्रकार अशोक कुमार अंज का साक्षात्कार समाहित है। यह पुस्तक ऐतिहासिक शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक के साथ हीं साथ संग्रहनीय तथा पठनीय है। जाति और प्रकृति, पुस्तक दिल्ली के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित है। इस पुस्तक का लेखक जाने- माने पत्रकार तथा साहित्यकार मुकुल शर्मा हैं। जिसमें लेखक- पत्रकार अशोक कुमार अंज का अहम योगदान है।
शायद ही कभी भारतीय पर्यावरण प्रवचन जाति के लेंस के माध्यम से प्रकृति की जांच करते हैं। जबकि प्रकृति को सार्वभौमिक और अंतर्निहित माना जाता है, जाति को एक ऐतिहासिक ऐतिहासिक और सामाजिक इकाई के रूप में समझा जाता है। मुकुल शर्मा दिखाता है कि कैसे जाति और प्रकृति गहराई से जुड़े हुए हैं। वह नव-ब्राह्मणवाद के विचारों और प्रथाओं और पर्यावरणीय विचारों के कुछ मुख्यधाराओं के पर्यावरण के दलित अर्थों की तुलना करता है। दिखा रहा है कि पर्यावरण के दलित अनुभव प्रदूषण, अशुद्धता और गंदगी के रूपकों के साथ कैसे सवार हैं, लेखक बाद के दृष्टिकोण को मूल्यवान किए बिना पर्यावरण और दलित दोनों पर नए आयाम लाने में सक्षम हैं। अपनी पारिस्थितिकी की सुसंगत समझ की तलाश करने के बजाय, पुस्तक दलितों के विविध और समृद्ध बौद्धिक संसाधनों की खोज करती है, जैसे आंदोलनों, गीतों, मिथकों, यादों और प्रकृति के चारों ओर रूपक। ये जाति से भरे प्रकृति में खुद को परिभाषित करने और जाति के बोझ से पर्यावरणवाद का एक रूप बनाने के लिए अपनी खोज प्रकट करते हैं। दलितों ने भारतीय पर्यावरणवाद को भी एक महत्वपूर्ण चुनौती दी है, जिसने अब तक जाति और प्रकृति के बीच इस तरह के संबंधों को हाशिए में डाल दिया है।- AnjNewsMedia

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