बढ़ते प्रदूषण ने गौरैया को संकट में डाला

 भारत में गौरैया की संख्या को लेकर अच्छी ख़बर

संवाद के बीच : भारत में गौरैया की संख्या स्थिर 

खतरे का पुख्ता सबूत नहीं सेलफोन टावर 


गौरैया घरेलू पंक्षी है, जो पेड़ों के अलावे ज्यादातर घरों में घोंसला बना कर रहना पसंद करती, उसे मानवों के बीच में चहचहाना प्रिय है। विश्व भर में भले ही गौरैया विलुप्ति के कगार पर खड़ी हो लेकिन भारत में इसकी संख्या चिंताजनक यानी रेड जोन में नहीं है। भारत में गौरैया की संख्या को लेकर अच्छी ख़बर मिल रही है।

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संजय कुमार, लेखक- पीआईबी अधिकारी, पटना

गौरैया की संख्या में कमी के पीछे  कई कारण हैं जिन पर लगातार शोध हो रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञ और गौरैया संरक्षण में लगे लोग समय-समय पर चिंता प्रकट करते रहते हैं। गौरैया की संख्या में कमी के पीछे  के कारणों में आहार की कमी, बढ़ता आवासीय संकट, कीटनाशक का व्यापक प्रयोग, जीवनशैली में बदलाव, प्रदूषण और मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएश्न को दोषी बताया जाता रहा हैं। रिपोर्ट के अनुसार कीड़ों की कमी (गौरैया के बच्चों का एक प्रमुख भोजन) इनकी संख्या में कमी का एक बड़ा कारण है।
स्टेट ऑफ इंडियनस बर्ड्स 2020, रेंज, ट्रेंड्स और कंजर्वेशन स्टेट्स के मुताबिक पिछले 25 साल से गौरैया की संख्या भारत में स्थिर बनी हुई है। हालांकि देश के छह मेट्रो बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में इनकी संख्या में कमी देखी गई है लेकिन बाकी के शहरों में इसकी संख्या स्थिर देखी जा रही है। कह सकते हैं कि विलुप्त नहीं है। 

 

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गौरैया की संख्या में कमी के पीछे  कई कारण 

गौरैया अपने बच्चे को शुरुआत में कीड़ा खिलाती है यह कीड़ा उसे खेत-खलिहान-बाग-बगीचा और गाय के गोबर के पास से मिलता है। फसल और साग-सब्जी में बेतहाशा कीटनाशक के प्रयोग ने कीड़ों को मार डाला है। ऐसे में गौरैया अपने बच्चे को पालने के दौरान समुचित आहार यानि प्रोटीन नहीं दे पाती हैं।

वहीं पैकेट बंद अनाज ने भी प्रभाव डाला है, खासकर मेट्रो में। पहले राशन दुकानदार सुबह- सुबह दुकान की सफाई करते हुये गिरे अनाज को बुहार कर बाहर फेंकते थे तब  गौरैया फुदकते हुये उसे चुगती थी, लेकिन पैकेट बंद ने सब बंद कर दिया है।  हालांकि गाँव और छोटे शहरों में थोड़ा बचा हुआ है, जहां लोग खुला अनाज लाते हैं और उसे साफ करने के दौरान घर आँगन में फेंकते हैं, तो घरेलू गौरैया को आहार मिल जाता है।

जहां आहार नहीं मिलता वहाँ से वह पलायन कर जाती है। रेलवे स्टेशनों पर बड़ी संख्या में ये मिलती हैं। वजह साफ है, वहाँ दाना-पानी और आवास की भरपूर व्यवस्था होती है। रेलवे अनाज गोदाम और स्टेशन परिसर में अनाज-आहार जहां मिलता है वहीं शेड आदि में वे छुप कर रहती और प्रजनन करती है।    

गौरैया के प्रजनन के लिए अनुकूल आवास में कमी भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। आवासों का तेजी से कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होने से तस्वीर बदल दी है। शहरों में इनके प्रजनन के लिए अनुकूल आवास नहीं के बराबर है।

यही वजह है कि शहर के कुछ इलाकों में ये दिखती है तो कुछ में नहीं। ऐसे में कृत्रिम घर बना कर गौरैया को प्रजनन के लिए आवास देने कि पहल चल रही है। गाँव में यह संकट नहीं है, फूस और मिट्टी के अवास अभी भी हैं। लेकिन कीटनाशक के प्रयोग और अनाजों को खलिहान में नहीं छोड़ने से वे कई गाँवों से पलायन कर चुकी है।

गाय और गोबर का संबंध भी गौरैया के साथ देखा जा सकता है। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, पटना का वैज्ञानिक डॉ गोपाल शर्मा का मनना है कि जहां गाय और गोबर होगा वहाँ यह दिखती है।

वजह हैं, गौरैया गाय के गोबर से निकले अपचे भोजन को तो खाती ही है बाद में वह अगर सड़ जाता है तो उसमें से जो निकलने वाले कैटरपिलर्स यानी पिल्लू को अपने बच्चों को खिलाती है। यह प्रोटीन का बड़ा स्रोत भी होता है।

सेलफोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन को भी इसकी संख्या में कमी करने वाला एक बड़ा कारक माना जाता रहा है। लेकिन स्टेट ऑफ इंडियंस बर्ड्स 2020- रेंज, ट्रेंड्स और कंजर्वेशन स्टेट्स  ने अपने  रिपोर्ट के पेज संख्या छह पर साफ-साफ कहा है कि अनाज और आवासीय संकट से गौरैया की संख्या में कमी के तथ्य जरूर दिखते हैं लेकिन सेलफोन टावर का जो तर्क दिया जाता रहा है उसे लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है, जिससे यह पता चले कि रेडिएश्न से गौरैया के प्रजनन पर प्रभाव पड़ता हो।

यानि यह भ्रम है कि  मोबाइल फोन टावर से गौरैया के प्रजनन को खतरा होता है। गौरैया की संख्या को कम करने में मोबाइल फोन टावरों की कोई भूमिका नहीं है।

इसे लेकर एक रिपोर्ट पहले भी आ चुकी है। विश्व भर के विशेषज्ञों द्वारा 88 पेज की एक रिपोर्ट-‘रिपोर्ट ऑन पॉसिबल इम्पक्ट्स ऑफ़ कम्युनिकेशन टावर्स ऑन वाइल्डलाइफ इन्क्लुडिंग बर्ड्स एंड बी’ में साफ़ कहा गया है कि अब तक के परिणाम में यह प्रभावी खतरा नहीं हैं। वहीँ  कुछ संस्था अभी भी इसे दोषी मानती है। 

गौरैया की संख्या को कम करने में सेलफोन टावरों की भूमिका है या नहीं को लेकर सवाल उठते रहते हैं। अकसर गौरैया की संख्या में कमी को लेकर चर्चा होती रहती है। 

गौरैया संरक्षण को लेकर 19 जुलाई 2020 को आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में इस मुद्दे पर मंदार नेचर क्लब भागलपुर के संयोजक और पक्षी विशेषज्ञ अरविन्द मिश्रा ने कहा कि गौरैया के विलुप्त होने का कारण मोबाईल फोन टावर को माना जाता है जबकि यह भ्रम हैं। उनका मानना था कि वे 1950-70 तक गौरैया की संख्या बढ़ी थी वही, 1970-90 के बीच गिरावट आई।

जबकि उस समय मोबाईल टावर नहीं था।  अपने निजी अनुभव को साझा करते हुये कहा कि उनके घर के पास कई मोबाईल फोन टावर है और गौरैया हर साल प्रजनन करती है, बच्चे निकते हैं।

सच है, पटना के कंकड़बाग के लोहियानगर इलाके में बहुत सारे मोबाईल फोन टावर है उसके इर्द –गिर्द गौरैया बड़ी संख्या में रहती है। खुद मेरे घर के पास हालात यही है 2007 से देख रहा हूँ कि गौरैया हर साल प्रजनन करती है बच्चे निकते हैं। 

बढ़ते प्रदूषण ने भी गौरैया को संकट में डाला है। गौरैया संरक्षण में विशेष योगदान रखने वाले गुजरात के चर्चित स्पैरोमैन जगत कीनखाबवाला  कहते हैं, प्रदूषण ने गौरैयों के जीवन, प्रजनन को खतरे में ला खड़ा किया है।

प्रजनन के लिए जब नर गौरैया मादा को रिझाने के लिए गीत गाता है,आवाज लगाता है  तो ध्वनि प्रदूषण के कारण उसकी आवाज मादा तक कई बार नहीं पहुँच पाती।

ऐसे ही जब बच्चे भोजन के लिए घोंसले से चिल्लाते हैं तो उनकी आवाज नर-मादा गौरैया तक नहीं पहुँच पाती है। ध्वनि प्रदूषण के कारण उनका जीवन –प्रजनन खतरे में पड़ जाता हैं। साथ ही गलोबल वार्मिंग से बढ़ते तापमान ने भी प्रभाव डाला है। 

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के उपनिदेशक डा.समीर कुमार सिन्हा कहते हैं, पिछले कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या को लेकर कुछ डाटा आए हैं जिनसे मदद लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में इनकी समस्याओं को पहचान सकते हैं।

शहरी और ग्रामीण समस्याएं अलग हैं। डॉ. सिन्हा का मानना हैं कि अगर हॉउस स्पैरो हमारे घरों के आस पास नहीं है तो इसका मतलब है कि हमारे घर के आस-पास कहीं न कही कोई ख़तरा मंडरा रहा है, जिसके कारण गौरिया वहां से विलुप्त हो गयी हैं। 

बहरहाल, जो भी हो इस नन्ही सी जान को बचाने के लिए पहल तो करनी ही होगी। बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश, कीटनाशक के प्रयोग पर रोक, परंपरागत जीवन शैली को अपनाना और आवासीय बदलाव केवल गौरैया को खतरे से नहीं बचाएगा बल्कि इन्सानों को भी सुरक्षित रखेगा।

लेखक,

संजय कुमार, पीआईबी अधिकारी, पटना

प्रस्तुति – @AnjNewsMedia –

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