माउंटेन मैन मांझी का लव-वे


माउंटेन मैन मांझी का अनोखा प्रेमपथ

कर्मवीर पर्वत पुरूष दशरथ मांझी

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माउंटेन मैन दशरथ मांझी का लव-वे यानि प्रेम पथ 
जीवट पुरूष अनवरत कर्म करते हैं, सुनिश्चित लक्ष्य-पथ पर चलते हुए अपनी मंजिल को पाते हैं। ऐसे ही अथक साधक, लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध कर्मयोगी पुरूष थे – पर्वत पुरूष कर्मवीर दशरथ मांझी। जीवन की दैनन्दिन जरूरतों से जूझते हुए, घटनाक्रमों से लड़ते हुए एक साधारण मजदूर दशरथ अचानक एक प्रतिबद्ध समाजसेवी बन जाता है और फिर प्रतिष्ठित दशरथ दास। लक्ष्य साधना में अर्जून की तरह माहिर दशरथ मांझी कर्मठता के अद्भूत नमूना थे।
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माउंटेन मैन मांझी को प्रतिष्ठा दिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 
ऐसे साधक को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी  प्रतिष्ठा देने में कोई कोताही नहीं की। श्री कुमार ने 25 जुलाई, 06 को मुख्यमंत्री आवास में आयोजित ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम के दौरान उन्हें अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर सम्मानित किया। मानो मुख्यमंत्री लक्ष्य-प्रतिबद्धता की प्रेरणा का संदेश पूरे प्रदेश को दे रहे हों।
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माउंटेन मैन मांझी ने पहाड़ का सीना चीर कर बनाया प्रेम पथ
वर्ष 1960 की एक छोटी घटना ने अकिंचन मजदूर दशरथ को विराट स्वरूप लेने की प्रेरणा दी। घटनाक्रम कुछ ऐसा है कि दशरथ गेहलौर पहाड़ी को पार कर एक खेत में काम करता था और उसकी पत्नी फगुनी उसके लिए भोजन-पानी लेकर प्रतिदिन आती थी। ऐसे ही दिनचर्या-क्रम में एक दिन पत्नी फगुनी संकीर्ण पहाड़ी दर्रे को चिलचिलाती धूप में पार कर आ रही थी। अचानक ठोकर लगी पांव फिसला, फगुनी लड़खड़ा कर गिर गई। एक तरफ जीवन संगनी पत्नी फगुनी के जीवन अस्त तो दूसरी तरफ जीवन संगी अर्थात मजदूर दशरथ के विराट प्रेमी स्वरूप का उदय होता है। शाहजहां का मुमताज के प्रति अमर-प्रेम का प्रतीक ‘ताजमहल’ यदि विश्व स्तर पर दर्शनीय है तो दशरथ का फगुनी के प्रति प्रेम का अमर प्रतीक है – गेहलौर पहाड़ी के डेढ़ फीट के संकीर्ण पहाड़ी दर्रे में 30 फीट चैड़ा मार्ग का निर्माण, जो अकल्पनीय है।
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पहाड़ का सीना चीरने के लिए हैमर मैन शिवू मिस्त्री
ने माउंटेन मैन दशरथ को 22 वर्ष तक फ्री दिए छेनी और हथौड़ा
 
पर्वत पुरूष ने दुर्गम पहाड़ को 22 वर्ष (1960 से 1982) तक छेनी- हथौड़ा से तोड़े थे। उस विषम वक़्त में हथौड़ा पुरूष शिवु मिस्त्री ने दशरथ मांझी को 22 वर्ष तक निःशुल्क छेनी- हथौड़ा दिये, पहाड़ तोड़ने के लिए। मजदूर दशरथ पहाड़ तोड़ता रहा और हथौड़ा पुरूष शिवू मिस्त्री ने उन्हें निःशुल्क छेनी- हथौड़ा प्रदान करते रहे। हैमर मैन श्री मिस्त्री ने 22 साल तक उन्हें निःशुल्क छेनी- हथौड़ा प्रदान किये पहाड़ का सिना चीर कर रास्ता बनाने के लिए। उन्हीं के दिये छेनी- हथौड़ा के बल पर दशरथ मांझी ने पहाड़ तोड़ने में कामयाब हुए थे। श्री मिस्त्री के दिये छेनी- हथौड़े के बल पर पर्वत टूटा और गेहलौर पहाड़ के बीचो-बीच से रास्ता निकला। पहाड़ तोड़ने में श्री मिस्त्री के छेनी- हथौड़ा का अहम योगदान रहा। पर्वत पुरूष दशरथ मांझी के संकल्प और उनके हौसले में हथौड़ा पुरूष शिवू मिस्त्री का निःशुल्क छेनी- हथौड़ा का योगदान ने जान फूंक दी थी। हैमर मैन शिवू का छेनी- हथौड़ा अद्वितीय, अतुल्नीय व अविस्मरणीय है। जो अनोखा, अद्वितीय ऐतिहासिक धरोहर है। श्री मिस्त्री, गया जिले का वजीरगंज प्रखंड के शिव काॅलोनी, दखिनगांव का निवासी हैं। जिसने पक्की दोस्ती का उदाहरण कायम किया है। पर्वत पुरूष दशरथ तथा हथौड़ा पुरूष शिवू के ऐतिहासिक अटूट दोस्ती स्वर्णाक्षरो में अंकित है। हथौड़ा पुरूष शिवू के ऐतिहासिक छेनी- हथौड़ा को गया संग्रहालय, गया में दर्शनार्थ सुरक्षित- संरक्षित रखा गया है।    
दशरथ का फगुनी के प्रति प्रेम का अमर प्रतीक है- गेहलौर घाटी। वह मार्ग विशुद्ध सात्विक प्रेम की साधना का प्रतिफल है। पत्नी फगुनी की चोटिल पहाड़ी के कठोर सीने पर मात्र छेनी-हथौड़ी के सहारे 22 वर्षों तक निरंतर प्रहार करते हुए दशरथ मांझी ने अद्भुत गाथा रच डाली, प्रेम का जीवंत प्रतिमान यह पथ आमजन के लिए राहत और सुकून का पैगाम लेकर आया। बुलंद इरादे, प्रबल इच्छाशक्ति, अदम्य साहस, तथा प्रेम एवं लगनशीलता की पराकाष्ठा का अद्भूत परिचय दिया दशरथ मांझी ने अपनी इस रचनात्मकता से।
आज यह गेहलौर मार्ग वजीरगंज, मोहड़ा एवं अतरी प्रखंड अर्थात तीन प्रखंडों को जोड़ने से आमजन हेतु सुगम मार्ग बन गया है। दुर्गम पहाड़ी दर्रे से जाने वाला घुमावदार संकरा पथ अब चैड़ा सुगम सीधा मार्ग बन गया है, जिसने मीलों दूरी को कम कर दिया है। ऐसे कर्म प्रबण दशरथ को पर्वत पुरूष तथा पहाड़ी आदमी की संज्ञा से विभूषित किया गया। नाटे कद के दशरथ जब पहाड़ काटने की कठोर साधना में रत थे, तब लोग उन्हें पागल और सनकी कहा करते थे। लेकिन इस सबसे बेपरवाह संत स्वभावी दशरथ मांझी अपनी साधना में लगे रहे।
अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति का एक अन्य उदाहरण है दिल्ली की पैदल यात्रा। वाकया यह है कि उन्हें किसी ने कह दिया कि ‘दिल्ली दूर है’। उन्होंने आव देखा न ताव – पाव भर सत्तू की पोटली बांधा और चल दिए थे – दिल्ली। फाल्गुन प्रथम दिवस 1972 का गया-किऊल रेल खंड के बीच स्थित वजीरगंज रेलवे स्टेशन से रेलवे पटरी के किनारे-किनारे पैदल चलकर मात्र दो माह में चैत पूर्णिमा 1972 की तिथि को दिल्ली पहुंचा। पहुंचकर उन्होंने सफलतापूर्वक कहा कि – यही दिल्ली दूर है। 

अपनी पैदल यात्रा के प्रमाण स्वरूप प्रत्येक स्टेशन मास्टर से हस्ताक्षर कराते आगे बढ़ते थे – दशरथ। धुन के पक्के दशरथ अपनी कार्य साधना के दौरान कभी बीमार भी पड़ते थे तो हिम्मत नहीं हारते थे। 
पहाड़ी तोड़ने के क्रम में कभी तबीयत खराब हुई तो पहाड़ी ‘धनोतर’ पौधा को चटनी जैसा पीस कर पी  जाते थे। तबीयत ठीक, शरीर चंगा और पुनः कार्य-साधना शुरू। बुखार, सर्दी और खांसी को ठीक करने की दूसरी दवा दशरथ के पास था – मसालेदार चाय।
इतिहास पुरूष दशरथ के साहस, एवं कर्म प्रबलता की गाथा सरकारी पाठ्य-पुस्तक में शामिल किया गया है, जिसे अध्ययन कर बच्चे ज्ञान हासिल कर रहे हैं।
दशरथ कहा करते थे कि वजीरगंज हाट में बकरी बेच कर विश्वकर्मा की दुकान से छेनी-हथौड़ा खरीदी थी। उन्होंने विश्वकर्मा का ध्यान लगा छेनी-हथौड़ा से गेहलौर पहाड़ तोड़ने में जुट गया था। उस वरदानीय ताकत से विशाल पहाड़ राई के समान टूटा और दशरथ मांझी अमर हुए। जो एकदम अनूठा प्रेम पथ मार्ग है। इसी लिए दशरथ देश-विदेश में चर्चित व प्रसिद्ध हुए।
इसी अद्वितीय कार्य हेतु दशरथ का नाम वर्ष 1999 में लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हुआ। वह नित्य दिन पहाड़ के कठोर चट्टानों से टकराता रहा। लक्ष्य एक हीं था पहाड़ को तोड़ना। दशरथ ने ये सिद्ध कर दिखाया कि अटूट प्रेम से बढ़कर संसार में कुछ नहीं। महामना दशरथ की यह कृति महान, एकलौता एवं अतुलनीय है। उन्होंने पहाड़ तोड़ने का काम 31 वर्ष की आयु में आरम्भ किया था। श्री मांझी अपनी जवानी और जीवन गेहलौर पहाड़ तोड़ने में लगा दी। वे हंसोड़ व खुशमिजाज भी थे। श्री मांझी ता जिंदगी आर्थिक तंगी से जूझता रहा। दशरथ संत स्वभाव का था।
वह कबीर पंथी धर्म का अनुयायी था। आज पहाड़ी प्रेम स्मारक गेहलौर घाटी चिरस्मरणीय बना है। वह ऐतिहासिक प्रेम मार्ग है। दशरथ अनपढ़ जरूर था परंतु कर्म का धनी पुरूष था। वह गुद्ड़ी का लाल था। 
कर्मयोगी दशरथ के पिता स्वर्गीय मंगरू मांझी और माता स्वर्गीया पचिया देवी थे। आज दशरथ मांझी हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी अद्भुत कृति जीवंत है। दशरथ निर्मित प्रेम पथ गेहलौर घाटी असंभव कार्य को भी संभव करने की प्रेरणा देती है। वहां निर्मित सड़क और अस्पताल का नामकरण दशरथ मांझी के नाम पर हुआ। दशरथ का प्रेम स्मारक गेहलौर घाटी दर्शनीय व ऐतिहासिक बना है। अटूट प्रेम का वह अमर प्रेम स्मारक है। जो कठोर कर्म का द्योतक है।
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गेहलौर घाटी का निर्मित प्रेम पथ का स्वामी पर्वत पुरुष दशरथ मांझी   
गया जिले के मोहड़ा प्रखंड स्थित गेहलौर ग्राम में 14 जनवरी, 1929 को जन्मे दशरथ मांझी का लिवर कैंसर के कारण 17 अगस्त, 2007 को दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान में असामयिक निधन हो गया। 
उनकी याद में गेहलौर में पर्वत पुरूष दशरथ माँझी महोत्सव 17 अगस्त को मनाया जाता है। उनके पुण्य तिथि के मौके पर गणमान्य लोग जुटते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं
वे गेहलौर गांव का पहचान थे, उनकी यश गाथा देश ही, नहीं विदेश में भी फैली है। दशरथ बाबा ! बिहार ही, नहीं भारत की शान हैं, आदर्श हैं। सच, बिहारी हो तो ऐसा, कर्मवीर बाबा दशरथ मांझी जैसा
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अक्षरजीवी- फ़िल्मी पत्रकारबाबू अशोक कुमार अंज 
अक्षरजीवी,
अशोक कुमार अंज
(फिल्मी पत्रकारबाबू)
जाने- माने फिल्मी सितारा- लेखक-साहित्यकार व टीवी पत्रकार तथा आकाशवाणी- दूरदर्शन, पटना से संबद्ध

सम्पर्क: वजीरगंज, गया- 805131, बिहार


                                         
  

                                         

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