राजगीर वीरायतन में 4 जनवरी को श्रद्धांजलि सभा
– सोमवार को संध्या 5 बजे
जन्म का नाम शोभा, युवाचार्य साध्वी शुभमजी ने बचपन में ही आचार्यश्री चंदना जी के चरणों में शिष्यत्व स्वीकार किया। इनका जन्म 10 मार्च १९५७ को पुणे के समृद्ध चुत्तर परिवार में हुआ था I
आचार्यश्री चंदनाजी से दीक्षा प्राप्त कीं। युवाचार्य साध्वी शुभमजी प्रारंभिक वर्षों से विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया तत्पश्चात वे अपने जीवन को सेवा, शिक्षा और साधना में समर्पित कर दिया।
उन्होंने अपनी युवावस्था में मानव कल्याण की वीरायतन की योजनाओं का नेतृत्व किया I धार्मिक सिद्धान्तों की गहन समझ और मन की एकाग्रता के चरम प्रतीक रुप “अवधान” समाज के समक्ष प्रस्तुत किया I वीरायतन के वैश्विक विस्तार के समय उन्होंने अनेकों देशों में यात्राएँ करके समाज के प्रत्येक वर्ग को तीर्थंकर की धर्मदेशना का परिचय कराया I इस प्रकार उन्होंने अनेकों के जीवन परिवर्तन कर वैश्विक स्तर पर मधुर सम्बन्ध स्थापित किये I
शुभमजी स्वभावगत बहुत शांत, सरल और हंसमुख थे I घृणामुक्त अनासक्त व्यक्तित्त्व के धनी थे I सच्चे अर्थ में वे संत थे जिन्होंने मनुष्य को ही नहीं पशु-पक्षी को भी अपनी तरफ आकर्षित किया I पक्षी निर्भयभाव से उनके कंधे पर बैठते जिन्हें वे अपने हाथों से चुग्गा देती I आचार्यश्री चंदनाश्रीजी ने उन्हें युवाचार्य की पदवी से सम्मानित किया था जो जैन समाज का उत्सव और उत्साह का विषय बन गया था I समाज ने नए युवाचार्य साध्वीजी को हृदय से सम्मानित किया I
ऐसी सुयोग्य साध्वीप्रवर हाल ही में लीवर सम्बंधित तकलीफ के कारण वीरायतन की सेवापरायण साध्वीजी के साथ पूना के प्रसिद्ध हॉस्पिटल में थी I सम्पूर्ण विश्व में फैले उनके शुभचिंतकों, वीरायतन साध्वी संघ एवं वीरायतन कार्यकर्ताओं द्वारा जाप एवं तप का आयोजन हुआ I
वे जीवन के अंतिम समय तक समत्त्वभाव में एवं प्रसन्नता में रहे I अपने स्वर्गीय निवास की तयारी से पूर्व उन्होंने संपूर्ण विश्व के कल्याण की शुभकामना की और इन शुभभावों की वर्षा उन्होंने जारी रखी I उनके मुस्कुराते चेहरे, शांत आध्यात्मिक प्रभाव एवं उनके निस्वार्थ प्रेम जोकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए सहज प्राप्त था हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है I
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