बिना कोरोना…………!
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पुरुषोत्तम एन सिंह लेखक – डीडी बिहार के पूर्व निदेशक Advertisement
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प्रकृति
जब से जवान हुई होगी
तब से लेकर आज तक
शायद पहली दफ़ा
हुईं होगी समाधिस्थ !
वो अनहद नाद
वो सुरीला संगीत
जो डाला होगा
ब्रह्मांड के
प्रत्येक परमाणु की
धमनियों और शिराओं में
प्रत्येक जीवित कोशिका के
डी.एन.ए. और आर.एन.ए. में
और
उस अनहद नाद में
आकंठ डूबकर
उस सुरीले संगीत में
ख़ुद को शराबोर कर
नाचती रही होगी…. अलमस्त !
लगा दिया उस पर
धरती पर पनपी
सभ्यताओं की असभ्यताओं ने
पूर्ण विराम-सा
एक बड़ा- सा अल्पविराम !
आज जब
कोरोना के बहाने
पूरी दुनिया में
थम-सा गया है
शोर-शराबे का सैलाब
प्रदूषण का महा तांडव….
एक सुरीला-सा संगीत
सुनाई दे रहा
सन्नाटे की सरहदों के पार !
प्रकृति
आफ़त की इस घड़ी में
नाच तो सकती नहीं
बस हो गयी है… समाधिस्थ
शायद सोचती हुई
कि फिर कभी
मानवता उसे मौक़ा दे
उस अनहद न…
ओ कोरोना……………..!
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ओ कोरोना
काश तुम इस तरह न आते !
एक तरफ़
बिछी हैं धरती पर लाशें
दूसरी तरफ़
हरी भरी हो रही है धरती
अंगड़ाइयां ले रही है प्रकृति
कोमा से बाहर आ रही है
मदर नेचर ………………!
ओढ़ ली है धरती ने
चटख आसमानी रंग की
ओढ़नी
सितारों से जड़ी हुई !
हवाओं ने भर ली हैं
अपने फेफड़ों में
कार्बन की गिरफ़्त से छूटा आक्सीजन
खुशबुओं से लबरेज़ !
धुआंते – धुंधलाते
सूरज के गालों पर भी
अठखेलियां कर रहे
शफ़्फ़ाक़ सिंदूरी रंग !
चांद भी किस शान से
मुस्करा रहा
आसमान में
सितारों की फौज के साथ !
शांति के मोती
झड़ रहे आकाश से
कि….. अगर चाहो
तो खिड़की से हाथ बढ़ा कर
बंद कर लो मुट्ठियों में….
भर लो झोलियों में…
जमा कर लो संदूकों में…
भविष्य के लिए !
काश ये सब
विध्वंस की इबारत के बरक्स
हासिल न होता !
काश हमारी ही
क़ब्…
श्रमिक पलायन पर दोहे
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तलवों में छाले पड़े
नयनों में है नीर,
वादों के चुभने लगे
तीखे तीखे तीर !
शहर शहर है त्रासदी
सांस सांस संत्रास,
क़दम क़दम धोखे भरे
कैसे बांधू आस !
जिह्वा जिह्वा प्यास है
पेट पेट है आग,
थाली ढ़न ढ़न बोलती
ना रोटी ना साग !
साहिब तुम साहिब रहो
ख़ुदा बनो न आप,
जन जन में भगवान है
कब समझोगे आप !
तिरस्कार सबने किया
छप्पर दी ना छांव,
शहरों पर सांकल जड़े
चलो आपने गांव !
…………….. पुरुषोत्तम एन सिंह,
लेखक – डीडी बिहार के पूर्व निदेशक
प्रस्तुति-@AnjNewsMedia-
Bhut khub