मुख्यमंत्री नीतीश और राजनीति
आलेख लेखक : अशोक कुमार अंज
बिहार में राजनैतिक उथल-पुथल चलता रहा। और इसी बीच Bihar Politics में अनवरत चलते रहे माननीय Nitish Kumar.। सूबे में मुख्यतः दो खेमे की Politics चली। विगत राजनीति की रोचक दास्तां है। जिसे आप सबों के बीच शेयर कर रहा हूँ। यह दास्तां, वर्तमान राजनीति की एक अनूठी झलक है। जिसका History गवाह है।
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नीतीश कुमार मुख्यमंत्री, बिहार |
एक खेमा Ex-Chief minister Jitan Ram Manjhi का और दूसरा खेमा Chief minister Nitish Kumar का। यही दोे खेमे के बीच बिहार की सत्ता की सियासी उठापटक चली। बिहार की राजनैतिक गलियारे में सियासी हलचल गर्म रहा। जिसे लोकबाग रोचक नजरिये से देखी। उक्त दिनों खेमे में दोनों तरफ से युद्ध स्तर पर सत्ता की जुबानी जंग चली। परन्तु अब इस जंग पर विराम लग चूका है।
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जीतन राम मांझी पूर्व मुख्यमंत्री |
लेकिन दास्तां बहुत ही मजेदार है। हम उसे याद करते हुए आगे बढ़ते हैं। फिलवक़्त, बिहार की राजनीति उठापटक से गुजरी, मांझी और नीतीश के बीच खूब उल्टासीधा चला। जुबानी भिड़ंत में भिड़े रहे दोनों दिग्गज नेताजी। दोनों नेताजी में अवसरवादी जंग चली। सुहाना अवसर हाथ लगा भी और हाथ से निकला भी। बहुत दिनों तक भटकाव की विषम समय रहा। सूबे में राजनैतिक उहापोह की स्थिति बनी रही।
ताज़गी भरा वर्तमान राजनीति की ही यादगार है। जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ। राजनीति क्या होती है। उसे ही रेखांकित किया गया है। राजनीति में गद्दी का मौका सभी को भाता है। चाहे मौका जैसे हाथ लगे, पर हाथ लगनी चाहिए। तभी राजनैतिक सितारा चमकती है।
कितना तमाशाई खेल होता है विधान सभा में बहुमत सिद्ध करना। घटनाक्रम कुछ वैसा ही है, जिसे प्रस्तुत करते चलते हैं। आप राजनैतिक रोचक अंदाज के साथ आलेख के साथ चलें।
बीती बात को याद करते आगे चलते हैं, तब जनता दल यूनाईटेड के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ट नारायण सिंह की अनुशंसा पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने मुख्यमंत्री मांझी खेमे के सात मंत्री क्रमशः नरेन्द्र सिंह, शाहीद अली खां, भीम सिंह, सम्राट चैधरी, वृषिण पटेल, नीतीश मिश्र तथा महाचन्द्र प्रसाद को जदयू की प्राथमिक सदस्यता से भी निलंबित कर हटा दी थी।
जाहिर हो कि पार्टी के विरूद्ध कार्य करने के बावत उन्हें 18 फरवरी को पार्टी से हटा दिया गया था। वहीं मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जदयू ने 9 फरवरी 2015 को ही पार्टी से निलंबित कर हटा चुके थे। ये राजनैतिक वाकया पिछले 7 फरवरी 2015 की है। 9 फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थकों ने राज्यपाल भवन का परेड विधायकों के साथ की थी। उससे बात नहीं बनी तो माननीय नीतीश कुमार अपने विधायकों के साथ 11 फरवरी को दिल्ली जाकर राष्ट्रपति भवन में परेड की थी और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मुलाकात की थी। तब के मुख्यमंत्री मांझी ने आगामी 20 फरवरी की तारीख विधायक दल के बैठक के लिए निर्धारित की थी। उठे विवाद के उपरांत उसी तिथि को राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने भी मंजूरी दे दी थी। मुख्यमंत्री मांझी के समर्थन में कुछ ही विधायक थे, वहीं उसके अलावे भाजपा व अन्य दलों से तोड़-जोड़ की उम्मीद बनी थी परन्तु उम्मीद पर पानी फिर गया।
जो राजनीति में चलता है सब चला, और धुआँधार चली। उधर, तबके नव निर्वाचित विधायक दल के नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश के समर्थन में कुल 130 विधायक थे। नीतीश के गठबंधन समर्थन में जदयू, राजद, कांग्रेस, सीपीआई तथा निर्दलीय शामिल थे। जो चट्टानी एकता को दर्शाती चली थी।
इस बीच तभी कठोर अग्नि परीक्षा की घड़ी तबके मुख्यमंत्री मांझी के लिए आई। फिर भी श्री मांझी का हौसला बुलंद रहा, बहुमत साबित करने के लिए।
उस विषम परिस्थिति के वक़्त, वे बहुमत सिद्ध करने पर अड़े थे। आखिर, वह जादू नहीं चली, और टांय-टांय फीस हो कर रह गई। जगजाहिर है, सत्ता के लिए मांझी और नीतीश खेमे में घमासान मची। खूब बहुमत का खेल चला है। तबके पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश खेमे के दिग्गज नेताओं ने विधायकों की खरीद-फरोख की आरोप भी लगाई।
वहीं JDU के नेताओं ने इस राजनैतिक उठापटक का जिम्मेवार भाजपा को मानती रही। जदयू दिग्गज नेताओं का कहना था कि ये सारा खेल BJP के इशारे पर हुआ। सत्ता के लिए JDU और BJP नेताओं में जबर्दस्त आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था।
जरा याद करें उस दौर को जो विगत 20 फरवरी को बिहार विधान सभा में हुआ था। बहुमत का सियासी खेल किस ओर करवट ली थी, याद होगी।
ज्ञात हो कि तबके पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पुनः विधायक दल का नेता विधायकों की सर्वसम्मति से चयनित किया गया था। ये फैसला विगत 7 फरवरी को JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के साथ पटना में हुई अहम बैठक में लिया गया था, तभी से सत्ता का सियासी जंग चरम पर आई।
विदित हो कि विगत वर्ष 20 मई 2014 को तबके पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नैतिकता के आधार पर मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी, तबके अपने मंत्रिमंडल के कल्याण विभाग के मंत्री जीतन राम मांझी को सौंप दी थी।
वह क्षण याद होगा, 20 मई 2014 को बिहार का बागडोर जीतन राम मांझी संभाले थे, और इसी के साथ बिहार में मांझी सरकार चल पड़ी थी।
ऐसी विषमता में मांझी की नैया पार लगेगी या फिर बीच मंझधार में डूबेगी, कहानी चलती चली। मुख्यमंत्री मांझी रहेगें या फिर नीतीश ही बनेगें मुख्यमंत्री? साथ- साथ सवाल भी चलता चला।
इतना ही नहीं, असंबद्ध मुख्यमंत्री मांझी के नीतिगत फैसले लेने पर पटना हाई कोर्ट ने 16 फरवरी को रोक लगा दी थी। जाहिर हो कि जदयू के अर्जी पर पटना कोर्ट ने 16 फरवरी को मुख्यमंत्री मांझी द्वारा नीतिगत फैसला लेने पर लगी रोक हटने से उन्हें थोड़ी राहत मिली थी।
मुख्यमंत्री मांझी के नीतिगत फैसले पर लगी रोक पर हाई कोर्ट ने पूनः 18 फरवरी को कहा था कि वह रोक 20 फरवरी के उपरांत लागू होगा।
नेताओं की राजनीति को जनता समझ रही थी, क्योंकि इस राजनीति में जनता पीसा रही थी। राजनैतिक शिकार होते आम-अवाम बदलाव चाहने लगे थे।
जनता राजनैतिक दलों की नाटक देख रही थी। बस, सत्ता की लालच में राजनैतिक नाटक हावी थी। तब, सिर्फ सत्ता की बात होती थी, जनता की हीत की बात नहीं हो रही थी, जो दुर्भाग्यपूर्ण था।
इसी वजह से बिहार विकास से पीछे और रिश्वतखोरी में आगे। बस, सिर्फ सिंहासन की होड़ थी। इस मामले में घोर राजनीति हुई। इन्हीं वजहों से बिहार विकास से कोसों दूर हो गया, जो संभालते, नहीं संभल रहा है।
सरकार आती और चली जाती, इसी बीच गौरवशाली बिहार बिलखते रह गया। बिहार विकास के अधूरे स्वप्न में जीता रहा। सता की महिमा ऐसी रही। गरीब मसीहों के बीच भी प्रदेश का विकास, उतना नहीं हुआ, जितना उनका निजी उत्थान हुआ। जिससे प्रदेशवासी भलीभांति अवगत हैं।
बिहार के का हालात वा सभी जानते हैं। परन्तु कोई खुल कर नहीं बोलते। काहे की यहां उत्थान के नाम पर राजनीति होती, भला ऐसे में विकास की धारा कैसे बहेगी।
सभी राजनैतिक पार्टियां व दलों ने बिहार की तस्वीर को बदलने की वादा करते परंतु बदलती क्यों नहीं। जो गंभीर सोचनीय है। बीच में क्यों अड़चन आ जाती। सच्चई ये है कि बीच मंझधार में सरकार अटक जाती, भटक जाती और लटक जाती।
वैसे विषम वक़्त में विधायक साथ छोड़ किनारे होने लगे। राजनीति में डुबाने की परंपरा पुरानी है। सियासी गलियारे के माननीय ही बिहार बर्बादी की जिम्मेवार।
अगर सरकार थोड़ा सा उत्थान का कार्य कर दिया तो गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाते, उसे सरेआम, गिनाते चलते। इसी बीच बिहार को कितना बर्बाद किया ये गिनाते, शर्म आती।
बस, इसी उहापोह में बिहार की हालात बिगड़ी, जो अबतक सुधरी नहीं। सुंदर, स्वच्छ बिहार का स्वप्न सपना ही बन कर रह गया। कहां है, वो विकास की जादू की छड़ी?
राजनीति के मुख्य धारा में दो राजनैतिक पार्टी जदयू-भाजपा सक्रिय रही, परंतु जदयू ने भाजपा को जबरन सत्ता से बाहर कर दी थी। इस विश्वासघात में बिहार को जबर्दस्त झटका लगी। इस घटना क्रम में बिहार को जो क्षति हुई, उसका भरपाई अबतक नहीं हो पाई। भला, उत्थान कब और कैसे हो पायेगा, समझ से परे।
जब द्वय पार्टी सत्ता में साथ रही तो बिहार का विकास दिखा, परंतु जैसे ही सत्ता से बाहर हुए बिहार खोखला दिखने लगा। सत्ता की ऐसी अपरंपार महिमा है कि बूरा भी बेहतर दिखता।
वाह री सत्ता ! तमाम दलों की रवैया को आमजन झेल चुके। विधान सभा चुनाव माथे पर बैठा रहा। बिहार में 2016 में चुनाव हुआ। राजनैतिक जोड़-तोड़ की हवा हावी रही। विकास की दुहाई देने में राजनेता जुटे रहे।
राजनैतिक दलों के नेताओं में सत्ता पाने की छट-पटाहट साफ दिखी। सत्ता हासिल करने की पुरजोर कोशिश में जुटे। वहीं आमजन चुप्पी साधे बैठे रहे।
चुनाव से पहले जनता की खैर-खबर लेने वाले कोई नहीं। भोली-भाली जनता भूख, महंगाई, अपराध से बिलखता, तड़पता पर कोई मरहम नहीं देता। बस, सभी सत्ता की रोटी सेकने में जुटे होते। यहां की गरीब जनता चोट पर चोट खाते, कर्राहते, परंतु कोई फरियाद सुनने वाला नहीं।
सच, सत्ता पर पहुंचते ही गरीबों के दर्द को भूल जाते। बदलते दौर में ये कूटनीति, राजनीति चरम पर। जनता जाग चुकी। सिर्फ सत्ता की हवस से काम नहीं चलेगा, जमीं पर खरे उतरना होगा। वर्तमान परिवेश में राजनीति का स्वरूप बदला, और खतरनाक भी हुआ।
जिसका उदाहरण सत्ता में परिवर्तन। जो राजनीति को नया आयाम देता ही, सबक भी। चरितार्थ, कुशासन और सुशासन में भी, वे ही माननीय बाबू, फिर अंतर कैसा?
चुनावी सुनामी बिहार में दस्तक दी। बिहार में वो हवा हौले-हौले बही। राजनैतिक दलों-पार्टियों के गठबंधन धर्म का सिलसिला टूटता तो कभी जुटता। खिचड़िया टूटन- जुटन भरोसे के लायक नहीं। फिर भी लटक रोटी में चल रहा, यारी- दोस्तारी, जो सिर्फ काम चलाऊ, टिकाऊ नहीं, केवल अवसरवादी।
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अशोक कुमार अंज वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट |
इस सत्य को कोई नाकर नहीं सकता। जो मौकापरस्त और राजनैतिक कमजोरी की प्रतीक। किसी में अपना दम नहीं, सब खोखला, केवल दिखावटी है हौसला। देख लो, बिहार की हवा कैसी? चित भी मेरी और पट भी मेरी। सिंहासन की जंग हुई और होती रहेगी। असली राजनीति ऐसे ही कहते। आख़िरकार, मांझी की नैया डूबी और फिर उन्हीं की नैया चली। फिर पूर्व मुख्यमंत्री नीतीशे, मुख्यमंत्री बने। जय बिहार ! गदगद बिहार !
अक्षरजीवी,
अशोक कुमार अंज
वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट
(फ़िल्मी पत्रकारबाबू)
आकाशवाणी- दूरदर्शन से अनुमोदित साहित्यकार- पत्रकार
संपर्कः वजीरगंज, गया-805131, बिहार, इंडिया
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– प्रस्तुति : अंज न्यूज़ मीडिया – Presentation : AnjNewsMedia