महिमा कण-कण में समाहित
गया जिलेभर में धूमधाम से शांतिपूर्ण तरीके से मना मुहर्रम। लॉकडाउन के वजह से नहीं निकला मुहर्रम की ताजिया जुलूस। प्रशासनिक चौकसी के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण में मनाया गया मुहर्रम। लॉकडाउन के गाइडलाइन का पालन करते हुए मुस्लिम धर्मावलंबियों ने मुहर्रम पर्व मनाया।
शांतिपूर्ण तरीके से मना मुहर्रम |
कोरोना वायरस खतरे से बचते हुए बिल्कुल सुरक्षित तरीके से पर्व को हर्सोल्लास का माहौल में मनाया। अपने मजहब को मनाया जानलेवा कोरोना वायरस के संक्रमण खतरे से बचते हुए। विदित हो आगामी 06 सितंवर 2020 तक बिहार लॉकडाउन है।
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि बिहार में लॉकडाउन है। उसके मद्देनजर सावधानी के साथ मुहर्रम मनाया गया। कोरोना के वजह से ताजिया का जुलूस नहीं निकाला गया। क्योंकि जुलूस निकालने पर सरकारी प्रतिबंध थी।
अपने खुदा को जिगर से श्रद्धपूर्वक याद कर सलाम किया। तरक़्क़ी की राह पर चलने और कोरोना बीमारी को देश से खत्म करने की दुआ किया। ताकी सभी देशवासी सलामत रहे। इसी सलामती दुआ के साथ मुहर्रम मना।
जाहिर हो जब वक़्त अच्छा होता था तो बड़े पैमाने पर ताजिया जुलूस निकाल कर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मुहर्रम मनाते थे। परंतु कोरोना बीमारी के खतरे की वजह से सादगी के साथ मना।
इस सादगी में भी अल्ला- ताला के प्रति, श्रद्धारूपी जोशेजज्बा में कमी नहीं दिखी। ऐसे होते हैं अल्ला के भक्त। कोरोना काल में ताजिया बना, पर्व मना, पर फीके तरीके से, परन्तु भक्तिभाव में तनिक भी कमी नहीं झलकी। लोग जुलूस के शक्ल में सड़क पर नहीं दिखे, फर्क इतना ही था।
सच, अल्ला-ताला बाहरी दुनिया में नहीं, दिल की दुनिया में बसा करते हैं। जहाँ प्रेम- भाई-चारा, सौहार्द, एकता, अखंडता, बंधुत्व, देशप्रेम, मानवता की भावना होती है। क्योंकि अल्ला- ताला को सादगी और कर्मठता पसंद है।
वे दिखावटी दुनिया में नहीं, देखावट तो दुनिया वाले करते हैं। असली बात यह है कि दुनिया वाले दिखावटी चीज़ को ज़्यादा पसंद करते। परंतु कोरोना ने यह सिद्ध कर दिया की अल्ला भावना में बसते हैं, दिखावे में नहीं।
वे सर्वशक्तिमान हैं। बाधाओं को दूर करने वाले दुनिया भर का मसीहा हैं। कर्म, धर्म और मर्म, विधाता का हीं देन है। एकता की प्रतीक है लहू का लाल रंग। सबों में वे हीं खुदा हैं। उनकी हीं महिमा, सबों में समाहित है।
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