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Famous Director, Sheila Pve, IFFI, Goa |
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Great Artist, Film Producer Agata Delsorbo, IFFI Goa, India |
फिल्म उन तरीकों की झलक देती, जिनमें लड़कियां सामूहिक पुनर्जन्म के रूप में अपनी हताशा को प्रकट करती
द यंग आर्सनिस्ट्स’ की प्रेरणा मेरे बचपन से ली : निर्देशक शीलापई
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गोवा : 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के ‘वर्ल्ड ऑफ सिनेमा’ खंड में प्रदर्शित ‘द यंग आर्सनिस्ट्स’ का निर्देशन कनाडा की विजुअल आर्टिस्ट शीलापई ने किया है।
कनाडा में एक अलग-थलग से कृषक समुदाय के कम आबादी वाले इलाके में चार किशोर लड़कियां अपने उजाड़ जीवन से बाहर निकलने के लिए साथ आती हैं। एक सुनसान फार्महाउस में अपना डेरा बसाकर वे चारों एक गहरा और जुनूनी रिश्ता कायम करती हैं। ये उन्हें जीवन के ऐसे अंधेरे कोनों में लेकर जाता है जहां उनके भीतर के भय और इच्छाएं उनकी इकलौती सुरक्षित जगह को भी नष्ट कर देती हैं।
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Ashok Kumar Anj Screenply Writer, Filmstar (Filmi Patrakar Babu) |
इफ्फी-53 में बोलते हुए फिल्म की निर्देशक शीला पई ने कहा कि इस कहानी ने उनके बचपन के जीवन से बहुत प्रेरणा ली और इसके अधिकांश पात्र वे असल लोग हैं जिन्हें वे अपने जीवन में जानती थीं।
फिल्म में उजाड़ फार्म हाउस की छवि जो इस्तेमाल की गई है उसके संदर्भ में शीला पई ने कहा कि एक बच्चे के रूप में उनका शौक सुनसान छोड़ दिए गए घरों में जाना था।
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फिल्में ! दुनिया को देती भरपूर मनोरंजन के साथ ज्ञान भी |
उन्होंने कहा, “मुझे डर, उत्तेजना, आश्चर्य और चीजों को टटोलने का वो अनुभव पसंद है। मेरी पहली लघु फिल्म तब बनी थी जब मैं 18 साल की थी और मैं कुछ शूट करने के लिए अपने ट्रायपॉड के साथ एक उजाड़ घर में गई थी। इस तरह के अनुभवों ने मेरी फिल्मों के लिए अचेतन प्रेरणा में बहुत योगदान दिया।”
शीला पई ने ये भी स्वीकार किया कि उनके बहुत सारे विजुअल आर्ट के काम निश्चित रूप से कनाडा के गॉथिक साहित्य से प्रेरित हैं। उन्होंने आगे कहा कि ये शैली सहज रूप से उनकी फिल्मों में आ गई होगी। सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि आर्थिक वास्तविकताएं निश्चित रूप से इस फिल्म के मुख्य पात्रों के जीवन का हिस्सा बनती हैं।
फिल्म में किशोर लड़कियों के पात्र, जो अपने जीवन की असंख्य समस्याओं से परेशान होकर एक फार्म हाउस भाग जातीं हैं, लेकिन फिर भी संघर्ष उनका पीछा नहीं छोड़ता है, जैसे उनके लिए बोझ से छुटकारा मिलना मुश्किल हो गया हो।
अंत में ‘यंग आर्सनिस्ट्स’ ने उस सुरक्षित घर में भी आग लगा दी, जिसे वे अपना गढ़ मानतीं थीं।
क्या सांसारिक जीवन में थोड़ी अधिक प्रत्याशा या आशावाद की कोई गुंजाइश नहीं है? शीला पई के अनुसार, फिल्म में प्रयुक्त आग का दृश्य-रूपक कोई विनाशकारी शक्ति नहीं है, बल्कि एक ऐसा तत्व है जो बोझिल और उदास जीवन को एक प्रकार की शुद्धता प्रदान करता है।
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AnjNewsMedia, India |
उन्होंने कहा, “जब मुख्य पात्र अंत में घर को जला देती है, तो मेरा इरादा इसे एक नकारात्मक चीज़ के रूप में दिखाने का नहीं था, बल्कि एक सकारात्मक चीज़ को सामने रखना था।
उसने आखिरकार आजादी पाई, वास्तविकता का सामना किया और आगे बढ़ने के लिए तैयार हो गयी। जीवन आवश्यक विरोधाभासों से भरा है। मैं अपनी फिल्म के लिए आवश्यक रूप से सुखद या दुखद अंत नहीं चाहती थी। मैंने बहुत आशा देखी है।
जाहिर हो वे फिल्म विजुअल आर्ट्स में महारत पाने में सफल हुईं। इसी कड़ी में शीला पई ने कहा पटकथा लिखने से पहले ही उन्होंने अपनी मुख्य विशेषताओं को विशेष रंग दिया था- एक लड़की लाल है, एक लड़की पीली है, एक लड़की नीली है और एक लड़की हरी है।
किशोर लड़कियों की खोज शुरू करना मेरा सिद्धांत बन गया। लघु फिल्मों से फीचर फिल्मों की ओर जाने के बारे में उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया दिलचस्प, चुनौतीपूर्ण और अविश्वसनीय थी।
फिल्म की निर्माता अगाथा डेलसोरबो ने बताया कि आईएफएफआई के बाद काहिरा फिल्म फेस्टिवल में “यंग अर्सनिस्ट्स” की स्क्रीनिंग होगी।
“द यंग आर्सनिस्ट्स”, जिसका IFFI- 53 में एशियाई प्रीमियर हुआ, का टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था।
सारांश :-
1980 के दशक के ग्रामीण कनाडा पर केन्द्रित, निर्देशक एवं दृश्य कलाकार शीला पई की यह यादगार पहली फीचर किशोरियों के एक समूह की कहानी है, जिसमें प्रत्येक किशोरी किसी न किसी पारिवारिक आघात से पीड़ित होती है और जिनके एक दूसरे के साथ रिश्ते गर्मी के एक मौसम के दौरान मजबूत होते हैं और उनके रिश्तों की परख होती है।
निर्देशक के बारे में :-
शीला पई अंतर्राष्टीय स्तर की ख्याति प्राप्त एक दृश्य कलाकार हैं। उनकी लघु फिल्मों को लोकार्नो और टीआईएफएफ सहित विभिन्न प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया है।
उनकी लघु फिल्म, ‘द रेड वर्जिन’ का 2011 में TIFF में प्रीमियर हुआ था। इस फिल्म ने स्पेन में वलाडोलिड इंटरनेशनल फिल्म समारोह में नाइट ऑफ द स्पैनिश शॉर्ट फिल्म अवार्ड जीता था।
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Artist Anupam Kher |
‘फिल्म में मेरे आंसू और मुश्किलें असली है, ‘यथार्थवादी फिल्में दर्शकों से जुड़ती’ : अनुपम
कश्मीर फाइल्स कश्मीरी पंडितों की त्रासदी का दस्तावेजीकरण कर के उनके लिए हीलिंग प्रोसेस शुरू किया : अनुपम खेर
‘द कश्मीर फाइल्स’ के मुख्य अभिनेता अनुपम खेर ने कहा कि 32 साल बाद इस फिल्म ने दुनिया भर के लोगों को 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के साथ हुई त्रासदी के बारे में जागरूक होने में मदद की है। वे पणजी, गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में आयोजित इफ्फी टेबल टॉक्स में हिस्सा ले रहे थे।
उन्होंने कहा ये सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म है। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म के लिए दुनिया भर से लगभग 500 लोगों का साक्षात्कार लिया था।
19 जनवरी 1990 की रात को बढ़ती हिंसा के बाद 5 लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में अपने घरों और यादों को छोड़ना पड़ा था।
एक कश्मीरी हिंदू के रूप में मैंने उस त्रासदी को जिया है। लेकिन उस त्रासदी को कोई कुबूल करने को तैयार नहीं था।
दुनिया इस त्रासदी को छिपाने की कोशिश कर रही थी। इस फिल्म ने उस त्रासदी का दस्तावेजीकरण कर के एक हीलिंग प्रोसेस शुरू किया।
एक त्रासदी को परदे पर जीने की प्रक्रिया याद करते हुए अनुपम खेर ने कहा कि “द कश्मीर फाइल्स” उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि एक भावना है जिसे उन्होंने निभाया है।
उन्होंने कहा, “चूंकि मैं उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता हूं जिन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया है, इसलिए मैं सर्वोत्तम संभव तरीके से इसे व्यक्त करने को एक बड़ी जिम्मेदारी मानता हूं।
मेरे आंसू, मेरी मुश्किलें ! जो आप इस फिल्म में देखें हैं, वे सब असली है।
अनुपम खेर ने इसी कड़ी में आगे कहा इस फिल्म में एक अभिनेता के रूप में अपने शिल्प का इस्तेमाल करने के बजाय, उन्होंने असल जिंदगी की घटनाओं के पीछे की सच्चाई को अभिव्यक्ति देने के लिए अपनी आत्मा का इस्तेमाल किया।
उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि फिल्म के पीछे मुख्य विषय ये है कि कभी हार नहीं माननी चाहिए। उन्होंने कहा, उम्मीद हमेशा आसपास ही कहीं होती है।
कोविड महामारी और उसके बाद लॉकडाउन ने लोगों के फिल्में देखने के तरीके को प्रभावित किया है। अनुपम खेर ने इस तथ्य पर जोर देते हुए कहा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म से दर्शकों को विश्व सिनेमा और विभिन्न भाषाओँ की फिल्में देखने की आदत पड़ गई।
उन्होंने कहा, “दर्शकों को यथार्थवादी फिल्मों का स्वाद मिला। जिन फिल्मों में वास्तविकता का अंश होगा, वे निश्चित रूप से दर्शकों के साथ जुड़ेगी।
आगे उसने कहा कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों की सफलता इसका प्रमाण है। गाने और कॉमेडी के वगैर भी यह फिल्म कमाल की साबित हुई। यह वास्तव में सिनेमा की जीत है।
उन्होंने उभरते फिल्म निर्माताओं को राय देते हुए कहा कि किसी को भी अपने जेहन से यह धारणा निकाल देनी चाहिए कि वे किसी भाषा विशेष के फिल्म उद्योग से आते हैं।
श्री खेर ने कहा इसके बजाय, सभी फिल्म निर्माताओं को खुद की पहचान भारतीय फिल्म उद्योग के एक ऐसे फिल्म निर्माता के रूप में करनी चाहिए। जो कि एक खास भाषा की फिल्म कर रहा है। यह फिल्म उद्योग जिंदगी से भी बड़ा है।
इफ्फी के साथ अपनी यात्रा को याद करते हुए अनुपम ने कहा कि उन्होंने पहली बार 1985 में 28 साल की उम्र में अपनी फिल्म सारांश के लिए इफ्फी में भाग लिया था।
उन्होंने कहा चूंकि मैंने उस फिल्म में 65 साल की उम्र के व्यक्ति का किरदार निभाया था, इसलिए उस समय इफ्फी में मुझे किसी ने नहीं पहचाना।
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यादगार गोवा फिल्म फेस्टिवल- 2022 |
37 साल बाद 532 से अधिक फिल्मों के साथ इफ्फी के लिए फिर से गोवा में होना, मेरे लिए एक महान क्षण है, जो एक प्रतिष्ठित महोत्सव बनकर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ महोत्सवों में शुमार हो चुका है।
इसी कड़ी में महान शानदार कलाकार अनुपम खेर ने यह भी घोषणा किया कि वह उड़िया फिल्म प्रतीक्षा का हिंदी में निर्माण करेंगे।
जो पिता- पुत्र की एक जोड़ी की कहानी है। जिसमें बेरोजगारी एक प्रमुख विषय है। उन्होंने कहा कि वह स्वयं भी इसमें एक मुख्य भूमिका निभाएंगे। “प्रतीक्षा” फिल्म के निदेशक अनुपम पटनायक भी महोत्सव स्थल पर कलाकारों- फिल्मकारों के साथ थे। इसी दौरान कश्मीर फाइल्स के निर्माता अभिषेक अग्रवाल ने कहा कि यह फिल्म थी जिसने उन्हें चुना था, ना कि उन्होंने इस फिल्म को चुना था।
सारांश :-
कृष्णा पंडित एक युवा कश्मीरी पंडित शरणार्थी हैं जो अपने दादा पुष्करनाथ पंडित के साथ रहते हैं। उनके दादा ने 1990 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को देखा था।
उन्हें कश्मीर से भागना पड़ा था और उन्होंने जीवन भर धारा 370 को निरस्त किए जाने के लिए संघर्ष किया था। कृष्णा का मानना है कि उनके माता- पिता की मौत कश्मीर में एक दुर्घटना में हुई थी।
अनुपम खेर ने 53वें इफ्फी के मंच से उड़िया फिल्म प्रतीक्षा के हिंदी रीमेक की घोषणा की जो पिता-पुत्र के रिश्ते के समीकरणों को दिखाती है
“ये हमारे लिए बड़ा क्षण है, खासकर ओडिशा के लोगों के लिए और भी बड़ा क्षण है:” अनुपम पटनायक
अनुपम पटनायक की फिल्म प्रतीक्षा की निर्माण प्रक्रिया ही अपने आप में एक फिल्म हो सकती है। पिता- पुत्र की कहानी लिखने से लेकर, इस फिल्म के शुरुआती दौर में अपने पिता को खो देने तक, फिर फिल्म न बनाने का निर्णय लेने से लेकर आखिरकार अपने परिवार द्वारा इसे बनाने के लिए पुनः राजी किए जाने तक, और अब इफ्फी-2022 में इसके प्रदर्शन तक, इस फिल्म की अपनी ही एक यात्रा रही है।
लेखक गौरहरि दास की एक छोटी कहानी से प्रेरित ये फिल्म एक मध्यवर्गीय परिवार के लड़के संजय की कहानी है, जो अपने पिता के सेवानिवृत्त होने से कुछ महीने पहले सरकारी नौकरी की तलाश में है।
उसके पिता विपिन जोर डालते हैं कि वो नौकरी खोजे क्योंकि परिवार पर कर्ज है, और विपिन को पता चला कि उन्हें एक लाइलाज बीमारी है।
संजय को सरकार की अनुकम्पा नियुक्ति योजना के बारे में पता चलता है। जिसमें परिवार के किसी सदस्य को अपने परिवार के मृत सरकारी कर्मचारी की जगह नौकरी मिल जाती है।
निराश संजय अपने पिता के मरने का इंतजार करता है और वो देखता है कि उसका दिमाग कितना विचलित हो चुका है। ये फिल्म परिवार के बारे में है, खासकर पिता और पुत्रों के जटिल संबंधों के बारे में है।
संजय की भूमिका निभाने वाले दीपनविट दशमोपात्रा ने इफ्फी में उनकी फिल्म प्रदर्शित करने से मिले सम्मान के बारे में बात करते हुए कहा, “यह मेरे लिए एक बड़ा क्षण है क्योंकि मुख्य अभिनेता के रूप में यह मेरी पहली फिल्म है, लेकिन ओडिशा के लोगों के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है क्योंकि उड़िया फिल्म उद्योग पिछले कुछ समय से संघर्ष कर रहा है।
निर्देशक पटनायक ने उड़िया फिल्म उद्योग के बारे में कहा 1999 के चक्रवात से पहले, ओडिशा में 160 सिनेमाघर थे, लेकिन चक्रवात के बाद ये 100 रह गए, और कोविड के बाद अब केवल 60 बचे हैं। भला ऐसे में कैसे एक उद्योग केवल 60 थियेटर्स पर काम करे।
अनुपम पटनायक ने अपने पिता की पहली फिल्म के बारे में भी बताया, जिसने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था, और निर्देशक के रूप में उनकी पहली फिल्म इफ्फी में दिखाई जा रही है।
यह उनके लिए एक खास क्षण था और दिवंगत पिता को सम्मान देने का एक तरीका था। निर्देशक और अभिनेता दोनों के लिए, एक बहुत बड़ा क्षण था जब अनुपम खेर ने उनके साथ मंच साझा करते हुए अनायास घोषणा की कि वह प्रतीक्षा को हिंदी में बनाएंगे, जहां वह पिता की भूमिका निभाएंगे।
उन्होंने पटनायक को फिल्म के अधिकारों के लिए एक टोकन साइनिंग अमाउंट दिया। यह फिल्मों का एक स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण क्षण था। इफ्फी ! एक ऐसा मंच है, जो फिल्मों के जादू का उत्सव मनाता है।
– AnjNewsMedia Presentation