Experimental Politics: माननीय नीतीश का पॉलिटिकल टेस्टिंग

बिहार के चाणक्य की सोच


माननीय नीतीश का यह experimental politics


आगे… माननीय नीतीश का संयास काल


एक दौर

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था तब सभी ऊपरी पदों पर माननीय नीतीश कुमार के नाम होता था। लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बड़े- बड़े पदों से कन्नी काटने लगे हैं। जो उनके संयास की प्रतीक है।

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बिहार के चाणक्य माननीय नीतीश

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से भी माननीय नीतीश कुमार जुदा हो गए हैं। जदयू का मतलब हीं है नीतीश कुमार, लेकिन अब वह आत्मबल वाली छवि खत्म हो रही है। यही वजह है कि जदयू के नेताओं में भी ऊहापोह की स्थिति बनने लगी है। माननीय नीतीश के पदों से दूर जाने से दिग्गज नेताओं के दिमाग भ्रमित हो घूमने लगा है।

संयास के करीब जा रहे हैं माननीय नीतीश, उसी का द्योतक है पदों से हटना। वर्ष 2021 का मुख्यमंत्री पद भी उनका आख़िरी हीं है। जो उनका संयास काल है।

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मुख्यमंत्री नीतीश: संयास काल 

माननीय नीतीश का यह experimental politics है। जिसके लिए वे जाने जाते हैं। इस प्रयोगात्मक राजनीति से पार्टी में नई ऊर्जा आती है।  इसी कमी को पूरा करेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष सिंह। ऐसी उम्मीद की जा रही है। लेकिन आगे क्या होगा, वक़्त ही बताएगा। इस experimental politics से कितना उतार- चढ़ाव पार्टी में आएगी। यह तो उनका कार्यकाल बताएगा कि ज़िम्मेवारी किस तरह से अदा की जा रही है। दायित्व कितना खरे उतरेगा, experimental politics आगे पता चलेगा। माननीय नीतीश का सपने पूरे होने की उम्मीद तो जगी है परंतु…?

राष्ट्रीय पद खुद के अलावे औरों को देना राजनैतिक चाल या त्याग है। उससे पार्टी में मजबूती भी आ सकती है या बिखराब भी। माननीय नीतीश का यह Political Testing है। जिसमें जातिगत फ़ायदा और नुक़सान दोनों समाहित है। इस आधार पर जातिगत राजनीति को मजबूती देने की कोशिश है। शायद, इस प्रयोग से पार्टी को अधिक मजबूती मिलेगी। 

इस तरह की Testing वे करते हीं रहते हैं, जो बिहार में जारी है। जमात बना कर एकजुट होना उनका लक्ष्य है। जिससे राजनीति मजबूत होगी। नाख़ुश नेतागण इस बहाने से इस खेमे में आ धमकेगें। इससे नीतीश कुमार और भी ताक़तवर होंगे। राष्ट्रीय पद औरों को देना बड़े राजनीति को समेटने की राह है।

क्योंकि बिहार के चाणक्य माने जाते हैं माननीय नीतीश। उनकी चाल समझ पाना थोड़ा मुश्किल है। वे एक तीर से कई निशाने साधते हैं। जो वोट बैंक बन जाता है। राजनीति का मतलब हीं है वोट। बिहार में वोट जातीय आधार पर आधारित होती है। उसी का नतीजा है राष्ट्रीय पद सिंह को देना। शायद, नाराज सिंह समाज उनकी ओर अग्रसर हो जाय। जिससे राजनीति में ताकत आएगी ही, पार्टी में भी। इसी सोच पर यह राजनैतिक खेल आधारित है।

खुद मजबूत होकर औरों को कमजोर करो, यही तो राजनीति है। जिसमें माहिर हैं माननीय नीतीश।

अब है कि बारीकी से इस चाल पर उन्हें खरे उतरना होगा। जिससे मजबूती दिखे।

बदलते दौर में राजनैतिक चाल भी बदल चुकी है। जो अगले पाँच साल में पता चलेगा। जब बिहार चुनाव होगा। माननीय नीतीश, तब राजनीति से संयास लेने के कगार पर होंगे। वे निरंतर अपने संयास की तरफ़ बढ़ रहे हैं। आगे… माननीय नीतीश का संयास काल है।


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