जल जीवन हरियाली दिवस के अवसर पर
कृषि विषयक परिचर्चा सामायिक
बदलते हुए जलवायु परिवर्तन अनुकूल : DM Gaya
गया : जल जीवन हरियाली के सभी अवयवों को प्रमुखता के साथ प्रचार प्रसार एवं इसके क्रियान्वयन के उद्देश्य से ग्रामीण विकास विभाग, बिहार के दिशा निर्देश के आलोक में गया जिला में आज जल जीवन हरियाली दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें जल जीवन हरियाली के विभिन्न अवयवों पर विस्तार से चर्चा की गई।
चर्चा में: जिला पदाधिकारी अभिषेक सिंह |
इस कार्यक्रम में जल जीवन हरियाली के प्रमुख अवयव कृषि विषयक एक परिचर्चा का आयोजन किया गया है, जिसका विषय वैकल्पिक फसलों, टपकन सिंचाई, जैविक खेती एवं अन्य नई तकनीकी का उपयोग पर पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, किसानों, जीविका दीदियों द्वारा विस्तार से चर्चा करते हुए किसानों से अपील की गई कि बदलते समय की परिप्रेक्ष्य में हम कृषि की नई तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन को बढ़ावे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला पदाधिकारी, गया श्री अभिषेक सिंह द्वारा करते हुए उन्होंने सभी आगत अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि जल जीवन हरियाली दिवस के अवसर पर कृषि विषयक परिचर्चा सामायिक एवं आज के बदलते हुए जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हैं।
कृषि की नई तकनीक का उपयोग अधिक पैदावार |
उन्होंने परिचर्चा में उपस्थित किसानों एवं जीविका दीदियों के माध्यम से जिले के किसानों से अपील किया कि वे कृषि की नई तकनीक का उपयोग कर अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त करें। उन्होंने कहा कि हमें कम पानी वाले फसलों का चयन करना चाहिए तथा जलवायु के अनुकूल कृषि तकनीक को अपनाने पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि परंपरागत खेती धान, गेहूं के बदले अन्य फसलों का चयन हमें करना चाहिए, जो कम समय में कम पानी का उपयोग करते हुए अधिक उपज प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो।
जल जीवन हरियाली के अवसर |
परिचर्चा को संबोधित करते हुए उप विकास आयुक्त, गया श्री सुमन कुमार ने कहा कि ग्रामीण विकास विभाग, बिहार द्वारा जल जीवन हरियाली के अवसर पर प्रत्येक माह के प्रथम मंगलवार को जल जीवन हरियाली दिवस का आयोजन किया जा रहा है ताकि लोगों/किसानों के बीच जल जीवन हरियाली का संदेश जाए तथा लोग जागरूक होकर पर्यावरण, जल संरक्षण, कृषि की नई तकनीक, वृक्षारोपण, नए तालाब, पोखर, पाइन, चेकडैम, आहर का निर्माण एवं जीर्णोद्धार के प्रति जागरूक हो सके। उन्होंने बताया कि ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रत्येक माह के प्रथम मंगलवार को माह नवंबर, 2021 तक जल जीवन हरियाली के विभिन्न अवयवों पर विशेष परिचर्चा का आयोजन किया जाएगा ताकि जल जीवन हरियाली के विभिन्न अवयवों का क्रियान्वयन तेजी से किया जा सके।
वैकल्पिक फसल समय की मांग |
परिचर्चा में जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा बताया गया कि वैकल्पिक फसल समय की मांग है क्योंकि वर्षापात में लगातार हो रही कमी/अनियमित वर्षापात के कारण फसलों को किसान अधिक पानी देने की स्थिति में नहीं है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण भी मौसम में अचानक बदलाव के कारण धान, गेहूं के अपेक्षित उपज हम नहीं ले पा रहे हैं। अतः किसानों को वैकल्पिक फसल के रूप में उसी भूमि पर मक्का की खेती करनी चाहिए क्योंकि मक्का में स्टैंडिंग वाटर की आवश्यकता नहीं पड़ती है। साथ ही धान के स्थान पर मडवा की खेती की जा सकती है क्योंकि मड़वा एवं मक्का का एक किलोग्राम उत्पादन 400 से 600 लीटर पानी में हो जाता है। गया जिले में धान के ऐसे प्रभेद का उपयोग किया जा रहा है, जो कम अवधि में सूखा सहन करने वाली फसल प्रभेद यथा “सहभागी एवं सबौर अर्द्धजल” को बढ़ावा दिया जा रहा है। गया जिला के परिप्रेक्ष्य में सुगंधित पौधा लेमन ग्रास की खेती की अच्छी संभावना है। इसके साथ सुष्क बागवानी के अंतर्गत नींबू, बैर, अनार, संतरा आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जल- जीवन- हरियाली : जलवायु परिवर्तन के अनुकूल |
परिचर्चा में टपकन सिंचाई के संबंध में श्री शशांक कुमार, सहायक निदेशक, उद्यान ने कहा कि टपकन सिंचाई से किसान 60% तक जल की बचत कर सकते हैं, 20 से 25% उर्बरक बचा सकते हैं, 30 से 35 प्रतिशत लागत में कमी आती है तथा 25 से 35% अधिक उत्पादन, बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि टपकन सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) के अंतर्गत सरकार द्वारा 90% अनुदान दिया जा रहा है। ड्रिप सिंचाई लागत 57946 रुपये पर 52151.40 रुपये अनुदान दिया जा रहा है। इसी प्रकार मिनी स्प्रिंकलर लागत ₹47667 पर ₹42810 अनुदान दिया जा रहा है।
परिचर्चा में नीमचक बथानी के सिंघोल पंचायत अंतर्गत ग्राम बरहनी किसान श्री विनोद कुमार द्वारा परिचर्चा में भाग लेते हुए बताया कि उनके द्वारा टपकन सिंचाई का उपयोग कर 6 एकड़ में टमाटर की खेती, शिमला मिर्च, प्याज की खेती इत्यादि की जा रही है।
बेलागंज के किसान श्री सुरेंद्र कुमार द्वारा भी टपकन खेती के बारे में बताया गया।
परिचर्चा में जैविक खेती के बारे में श्री नीरज कुमार वर्मा, उप परियोजना निदेशक, आत्मा द्वारा बताया गया कि जैविक खेती से खेतों की उर्वरा शक्ति की रक्षा होती है तथा पर्यावरण भी सुरक्षित रहती है। कृषि विभाग द्वारा वर्मी कंपोस्ट योजना हेतु किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जैविक खेती का केंद्र बिंदु मृदा को स्वास्थ एवं जिंदा रखते हुए खेती करना है।
टनकुप्पा प्रखंड के बरसौना गांव निवासी श्री ईश्वर वर्मा जो किसानी करते हैं द्वारा बताया गया कि रासायनिक खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बर्बाद हो रही है तथा स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जैविक खेती के उपयोग से मृदा में सुधार, मृदा जल का प्रदूषित होने से बचाव, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक में कमी, गुणवत्तायुक्त फसल उत्पादन तथा मनुष्य एवं पशु की स्वास्थ्य की व्यवस्था की जा रही है। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा वर्मी कंपोस्ट गोबर की खाद, मुर्गी की खाद, फसल अवशेष का उपयोग, जैव उर्वरक, गौमूत्र, हड्डी का चूरा इत्यादि सामग्रियों का उपयोग किया जा रहा है। कीटनाशक के रूप में नीम के उत्पाद, फेरोमेन ट्रैप, ट्राइकोडरमा, ट्राइकोग्रामा इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है।
परिचर्चा में कृषि की नई तकनीक |
परिचर्चा में कृषि की नई तकनीक का उपयोग के बारे में बताते हुए कहा गया कि धान की सीधी बुआई, जीरो टिलेज, गेहूं की बुवाई कर हम इंधन, बीज की बचत कर सकते हैं। साथ ही 5 से 15 दिन पहले फसल तैयार कर सकते हैं।
परिचर्चा में विभिन्न जीविका दीदी द्वारा भाग लेते हुए बताया गया कि वह गांव के किसानों को नई तकनीक टपकन सिंचाई, जैविक खेती के बारे में बता रही हैं।
परिचर्चा में आगत अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन श्री रविंद्र कुमार, परियोजना निदेशक द्वारा किया गया।
परिचर्चा में नगर आयुक्त, नगर निगम, गया श्री सावन कुमार, निदेशक डीआरडीए श्री संतोष कुमार, जिला पंचायती राज पदाधिकारी श्री सुनील कुमार, जिला जनसंपर्क पदाधिकारी, शंभूनाथ झा, कृषि विभाग के पदाधिकारी, जीविका दीदी, जनप्रतिनिधिगण सहित अन्य पदाधिकारी एवं आमजन उपस्थित थे।
– AnjNewsMedia