जीतन की जीत jitan ki jit
कहानी लेखक : अशोक कुमार अंज
एक दीन-हीन मांझी परिवार में विषम परिस्थिति के बीच जीतन राम मांझी का जन्म हुआ। होनहार बालक जीतन का जन्म सुदूरवर्ती ढ़िबरा स्थान से महज कुछ दूरी पर स्थित बधार में जल स्रोत पईन के नजदीक हुआ। जहां चार घर गुलगुलिया और दो घर मुसहर जाति के लोग रहते थे। ढ़िबरा स्थल आधारभूत सुविधाओं से वंचित था। वहां विकास की किरणें नहीं पहुंची थी, बिल्कुल ही निरीह स्थान था। उनके परिजन रहने-खाने की भी गंभीर समस्या से जुझते आगे बढ़ते गये। एक बार की बात है कि वहां प्रलयंकारी बाढ़ आ गई थी। पूरा क्षेत्र पानी से आच्छादित हो गया था।
जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री |
उस वक़्त जीतन राम मांझी करीब डेढ़ वर्ष के थेे। उनके पिता ने उन्हें एक पेड़ की डाली पर धोती में बांध कर लटका दिये थे, ताकी जीतन सुरक्षित रहे। बाढ़ के पानी की तेज धारा से पेड़ भी हिचकोला खाता था, जिससे उनके परिजन डरे सहमे थे। मानो, जायेगें तो सभी चले जायेगें। वे बाढ़ में जिंदगी मौत से जुझ रहे थे। ये घटना जीतन के बाल्यावस्था की है। भगवान का लाख शुक्र रहा कि करीब दो-तीन घंटे बाद भयंकर प्रलयंकारी बाढ़ चली गई, और जीतन सलामत रह गया। डाली में धोती से बंधा नन्हा सा जीतन सलामत रहा।
उसी वक़्त उनका नाम जीतन पड़ा। यानि राम की कृपा से जीतन जीत गया। बचपन से ही जीतन होनहार रहे हैं। सच, चरितार्थ है कि होनहार के होत चिकने पात। ये दर्द भरी दास्तां वर्ष 1944-45 की है। जीतन का जन्म 06 अक्टूबर 1944 को ढ़िबरा से करीब एक किलो मिटर की फासले पर एक पईन है। उसी पईन के जल स्रोत के पास उनका जन्म हुआ। ऐसी विकट स्थिति में उनका शुभ अवतार हुआ। गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के अंतर्गत ढ़िबरा उनका शरणस्थली है। वर्ष 1945 में ही उनके पिता ने जीतन के जन्म स्थल पईन के जल स्रोत से ढ़िबरा आ गए।
जो महकार ग्राम के सटे था। उसी गंदगीयुक्त, निरीह स्थल पर जा बसे। आखिरकार, उपाय ही क्या बचा था। लाचारी का नाम शुक्रिया, उसी परिस्थिति में वहां रहने लगे। बड़ी मुश्किल से संकट की छाये में रात गुजरती थी। उसमें भी बरसात की रात और भी भयावह होती थी। उनके पिता के पास रहने के लिए केवल आधा कठ्ठा जमीन था। जीतन के पिता मजदूर थे। वे मजदूरी कर परिवार का जीवन-यापन किया करते थे। वाक्या ऐसी है कि वे मुश्किलों के बीच जिंदगी काटते रहे। तभी ढ़िबरा ग्राम से सटे करीब एक किलो मिटर की दूरी पर अवस्थित महकार ग्राम का एक किसान ने उन्हें जमीन दी और तब ढ़िबरा में झोपड़ी बना कर रहने लगे।
उस वक़्त निरीह ढ़िबरा स्थल पर सिर्फ इन्हीं का एक झोपड़ीनुमा घर दिखता था। उस स्थान के अगल-बगल में सिर्फ गंदगी का अंबार था। उसी गंदगी के बीच इनका एक झोपड़ी खड़ा था। तब से आज तक जीतन राम मांझी महकार गांव स्थित ढ़िबरा में बसे हुए हैं। जहां पहले एक झोपड़ी और गंदगी थी, वहीं आज महल खड़ा है। ये सब ईश्वर की असीम अनुकंपा का प्रतिफल है। जीतन ने अपने कठोर कर्म से विशाल कामयाबी का इतिहास रचे हैं।
महकार गांव का ढ़िबरा उनके लिए प्रिय है ही, लोकप्रिय भी। उसी मिट्टी की दर्द-कसक उनके हृदय में धड़कता है। वे इसी गांव की मिट्टी की कृपा से बड़ा बने हैं। यहीं से दिन-दूनी और रात-चैगुनी उनकी तरक्की हुई है। जिसका आज कद्र है। सच, वे गुदड़ी का लाल हैं। वे गुदड़ी में जी कर, बेहतरीन कर्म के बदौलत आज राजनीति की उंच्चाई पर कायम हैं। बदहाली के साये में विकट संकट से जुझते समय गुजरता गया। जीतन अन्य सहपाठियों के अपेक्षा विद्यालय में भिन्न रहे।
वे हमेशा उपर उठने का सोंच रखते, और आगे बढ़ते गए। इसी बदहाली तले वे किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की। गाथा ऐसी है कि उनके पिता जी दारू के शौकीन थे। वे बराबर दारू पिया करते थे। वे दारू खुद बनाते और पीते भी। पिता के इस बूरी लत को देख, एक दिन जीतन अपने पिता पर गुस्साये। दारू चुआना, छोड़िये वर्ना हम नाराज हो जायेगें। ऐसे में हमारी पढ़ाई कैसे होगी। हमें पढ़ाई-लिखाई में आगे बढ़ाना है, तब शराब छोड़ना पड़ेगा, वर्ना हमारी पढ़ाई में बाधा आयेगी।
पिता ने होनहार बालक जीतन की बात मान ली, और शराब छोड़ दी। ये जीतन की कामयाबी है। जीतन, जो ठान लेता, वो कर दिखाता है। जब घर का माली हालात थी, तब भी जीवट जीतन पढ़ाई की महत्व को समझा और वे भूखे पेट भी स्कूल पढ़ने चला जाता। वे नैली हाई स्कूल से बोर्ड की परीक्षा उतीर्ण किये और शिक्षा हासिल करते निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर होते गए। इतिहास गवाह है कि जीतन हमेशा से जीतते आया है और सदा विजय रहे हैं। ज्ञात हो कि जीतन अभाव के बीच भी पढ़ाई करते गये। वे गया स्थित दूरभाष विभाग में किरानी रहे।
किरानीगीरी छोड़ वे राजनीति में कदम रखे। वे वर्ष 1980 से राजनैतिक क्षितिज पर कायम हैं। वे जीरो से हीरो, विधायक से मंत्री और मंत्री से मुख्यमंत्री बने। वे 35 वर्ष की राजनैतिक जीवन में 23 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, और मांझी की सरकार चल पड़ी। वे आज देश ही नहीं, दुनिया का आदर्श बने हैं। उनका पहनावा धोती-कुर्ता और बंडी है। जीतन राम मांझी विकट परिस्थिति में स्नातक पास कर, राजनीति में कूद पड़े। विदित हो कि उनके घर में राजनैतिक माहौल नहीं था। वे ठोकर खाते आगे बढ़े हैं।
वे अपना भविष्य राजनीति में बनाये और सफल हुए। उनका राजनैतिक शुरूआत 1980 से हुई। 1980 से लगातार 1990 तक कांग्रेस से जुड़े रहे। जीतन राम मांझी पहली बार 1985 में नेशनल काॅग्रेस पार्टी की टिकट से विधान सभा का चुनाव जीते। वे 1985 से 1990 तक विधायक रहे। उसके बाद 1996 में जनता दल में शामिल हो गए। फिर उन्होंने 1996 से 2005 तक राष्टीय जनता दल में रहे। इसी कड़ी में 2005 में जनता दल यूनाइटेड का दामन थामे। वे 20 मई 2014 को जदयू में मंत्री से मुख्यमंत्री बने। फिलवक्त मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी जहानाबाद के मखदुमपुर विधान सभा क्षेत्र से विधायक के रूप में जीते हैं।
विदित हो कि मखदुमपुर सुरक्षित विधान सभा क्षेत्र है। इसके पूर्व वे गया जिले के फतेहपुर विधान सभा तथा बाराचट्टी तथा इमामगंज सुरक्षित विधान सभा से भी चुनाव जीत चुके हैं। वे कई सरकार में विधायक और मंत्री रहे। क्रमशः बिहार सरकार, चंद्रशेखर सिंह, बिन्देश्वरी दूबे, सत्येन्द्र नारायण सिंह, जगन्नाथ मिश्रा, लालू प्रसाद, राबड़ी देवी तथा नीतीश कुमार की सरकार में शामिल रह कर मंत्री रहे। वे राजनैतिक क्षितिज पर छाये रहे। उनका राजनैतिक व्यक्तित्व व कृतित्व महान है। वे अनुभवी, दिग्गज राजनीतिज्ञ की श्रेणी में हैं।
उन्होंने कई दिग्गजों के दल और पार्टी में रह कर राजनीति की है। 77 वर्षीय मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का राजनैतिक जीवन खट्टे-मिठ्ठे अनुभवों के बीच बीता है। इस दौरान वे बहुत कुछ खोये और पाये हैं। वे जमीं से आसमां तक का सफर की, जो काबिले तारीफ है। इस तरह की ख्याति और पद बिरले को नसीब होता है।
नीतीश कुमार माननीय मुख्यमंत्री बिहार |
माननीय mukhmantri nitish kumar ने मांझी को mukhmantri की कुर्सी प्रदान कर राजगद्दी दिया। इस तरह कल्याण मंत्री मांझी की सितारा एकाएक बुलद हो बिहार की राजनीति में चमचमा उठा। और यह देन माननीय mukhmantri nitish kumar की।
जीतन राम मांझी पुरूषों में उत्तम हैं ही, और राजनीति में श्रेष्ठ भी। उनकी राजनीति से कई राजनैतिक लोग प्रेरणा ले रहे हैं। उनके ओजस्वी भाषण लोकप्रिय है। उनका भाषण सहज, सरल और थोड़ा व्यंगात्मक होता है। वे हंसोड़ राजनीतिज्ञ हैं। वे लोक नायक की उपाधि से भी जाने-जाते हैं। मुख्यमंत्री खुद कहा करते हैं कि हमारी सरकार गलतफहमी में बनी है।
इसी लिए हम न्याय के साथ विकास का चैक्का-छक्का लगाये जा रहे हैं। ईश्वर की ऐसी कृपा है कि बगैर मांगे हीं, हमें मिल जाता है। हम मुख्यमंत्री बनने का स्वप्न में भी नहीं सोंचा, परंतु ऐसी परिस्थिति उभर कर आई की हम मुख्यमंत्री बन गए, और चहुँमुखी उत्थान का कार्य कर रहे हैं। वे 77 वें बसंत देख चुके हैं।
श्री मांझी अनुसूचित जाति का प्रखर नेता हैं। वे नेताजी के नाम से भी जाने जाते हैं। अपने 41 वर्षीय राजनैतिक जिंदगी में राजनीति को धार दी, और अब वे राजनीति से सन्यास लेने का सोंचे हैं। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के माता सुकरी देवी और पिता रामजीत राम मांझी थे। जीतन राम मांझी का विवाह श्रीमति शांति देवी से हुई। उन्हें दो पुत्र और पांच पुत्री है।
सभी का सुखमय जीवन बीत रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने अपने बड़े बेटे को राजनीति में उतार कर बिहार की सेवा में लगाया है। पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने अपनी राजनीति की दम पर अपने बड़े पुत्र को एमएलसी से मंत्री पद तक दिलाया। मांझी पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी ज़िन्दगी में ऐतिहासिक कार्य करते राजनीति की शिखर पर पहुंचे और मुख्यमंत्री तक बने।
गरीबी से उठे और अपने जीवन को अपनी जीत से हराभरा गुलफूल बनाने का काम किया कर्मवीर पूर्व मुख्यमंत्री मांझी। अब सब बल्लेबले। बिहार की राजनीति को उलटफेर में भी उनकी बड़ी भूमिका रही। जो जगजाहिर है।
अशोक कुमार अंज वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट |
करीब- करीब सभी बड़ी राजनैतिक पार्टियों में उनकी बेजोड़ पकड़ रही। जिसके कारण जीतन अपने जीवन में कभी फेल नहीं हुआ। वह ज़ीरो से हीरो बना। जो इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हुआ। उसने बिहार राजनीति में प्रोटोम स्पीकर तक की गौरवशाली भूमिका अदा किया। ऐसे होनहार निकले अकिंचन जीतन। जो हरेक परिस्थिति को वखूबी झेलते हुए राजनैतिक शिखर तक पहुंचे।
कहानीकार,
अशोक कुमार अंज
वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट
(फ़िल्मी पत्रकारबाबू)
आकाशवाणी- दूरदर्शन से अनुमोदित साहित्यकार- पत्रकार एवं लघु फिल्म निर्माता-निर्देशक
संपर्क : वजीरगंज, गया, बिहार, इंडिया, पिन- 805131
Kahani : jitan ki jit By Ashok Kumar Anj
Story of former Chief Minister Manjhi
प्रस्तुति : अंज न्यूज़ मीडिया – Presentation : AnjNewsMedia
बहुत बढ़िया।