पार्टी टूटी तो सोये चिराग की नींद टूटी
भटकन का यह आशीर्वाद यात्रा ! बस, और क्या
यह है चिराग पासवान का बैक गेयर
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नेता तो उनके पिता थे। मिस्टर चिराग तो विरासती नेता हैं। सच्चाई यह है कि चिराग गरीबों का नेता कहां रहे, वे तो अमीरों का नेता हैं। पार्टी टूटी कमजोरी की नौबत आई तो थोड़ा puplic को दिखाने के लिए ड्रामा करने निकल गए। वास्तविकता यही है। जाहिर है वे ड्रामेबाज कलाकार हैं। कुछ अपनी कला दिखाने निकल दिए, इसी बहाने से।
सांसद चिराग के भटकन की आशीर्वाद यात्रा |
युवा सांसद चिराग को अब निंद टूट गई है कि हम और हमारी पार्टी की नैया डगमगा गया है। इसी कमजोरी की प्रतीक है यह आशीर्वाद यात्रा। जब तक उनके पिता ज़िंदा थे तो उन्हें जनता की आशीर्वाद का ज़रूरत नहीं पड़ी थी। जब उनके पिता दुनिया में नहीं रहें तो उन्हें आटा- दाल का भाव समझ में आने लगा। क्योंकि पार्टी चर्मराई और टूट कर बिखरगई। बस, एक झटके में ही पार्टी चटक गया।
यूँ, समझें ! पार्टी कमजोर से भी कमजोर हो कर रह गई। अब पार्टी की नींव को पुन: से मजबूति देने के लिए आशीर्वाद यात्रा के तहत District To District ठोकरें खाए चल रहे हैं। चिराग जब मजबूति में थे तो चेहरे पर चार्मिंग झलकती थी, आज चेहरे की रंग उड़ी हुई बदरंग है। जो पार्टी के बिखराव की प्रतीक है।
ना जानूँ, अब वे मजबूती कैसे लौटाएँगे। पिता के विरासत पर की गई राजनीति खूब चमकी, वह चमक अब टूटता दिख रहा है। यूँ, समझें ! अब पार्टी पलटी मार दी है। अब चिराग बेचारे बन गए। जब बात नहीं बनी तो जनता की आशीर्वाद लेने चल दिये, चिराग। वर्ना, उन्हें ऐसी झंझट से क्या मतलब थी। वे ऐसो आराम की ज़िन्दगी में जीते थे। वे ऐसी झंझट के लिए निकलते हीं कहाँ थे। पिता नहीं रहे तो अब वे धूल फाँके चल रहे हैं।
विपरीत वक्त भटकाने लगा |
यह है विषम विपरीत बेला, समझो, पिता का विरासत खत्म। उन्हें अपना कुछ बनाने का वक़्त आया है। देखना है युवा सांसद चिराग पासवान कितना बना पाते हैं। वे आगे उठेगें या …?
विपरीत वक़्त अब उन्हें भटकाने लगा। क्योंकि पिता की मजबूति के दम पर की गई राजनीति की डोर टूट चुका है। चिराग, वही हैं परंतु अब उनके अंदर मजबूती की खोखलापन है। जो झलकती है। पिता के विरासत पर चिराग सांसद बने, अब चिराग फिर बन गए बेचारा।
मजबूती बिखरते हीं ऊहापोह की राजनीति जारी है। गरीबों का नेता थे त्यागी कर्मठ कर्मवीर स्वर्गीय रामविलास पासवान। जो मंत्री पद तक को सुशोभित किये।
वे नहीं रहे तो सब चटक गया, भटक गया, अटक गया, लटक गया। समझो, सब बिखर गया। उनके सपने पर पानी फिर गया।
इसी वजह से चिराग भी भटक गए। वही भटकन का हीं यह आशीर्वाद यात्रा है। बस, और क्या?
इस भटकाव की यात्रा में मिस्टर चिराग को ना जानूँ, कितना आशीर्वाद मिला, वो तो वक़्त ही बताएगा।
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