हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी वसंतोत्सव
नव नालन्दा महाविहार, नालन्दा में वसंतोत्सव के शुभ अवसर पर माघ शुक्ल षष्ठी (विक्रम संवत 2079) को संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में “भारतीय परम्परा में वसन्त ” विषय पर विशेष व्याख्यान हुआ।
वसंतोत्सव व्याख्यान- 2023 |
यह व्याख्यान देश बंधु महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली) के संस्कृताचार्य डॉक्टर आनंद कुमार के द्वारा दिया गया।
अपने उद्बोधन में डॉ. आनन्द कुमार ने कहा कि त्याग और शौर्य का प्रतीक है वसन्त। इसीलिए रंग दे बसन्ती चोला की बात आती है।
अपने उद्बोधन में आपने कहा कि बौद्ध-साहित्य में भी साधकमाला में यह मान्यता है कि वसन्त ज्ञान और समृद्धि प्रदान करती है। निजामुदीन औलिया और चिश्ती के दरगाह पर भी वसन्तपंचमी को बसन्त मनाया जाता है। यह भी भारतीय परम्परा ही है।
आचार और मेघा का आधार मां सरस्वती है। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। वास्तव में सरस्वती का विस्तार ही वसन्त है।
अपने उद्बोधन में आपने विद्यापति, निराला तथा अन्य साहित्यकारों के कथनों को रेखांकित कर भारतीय परम्परा में निहित वसन्त के महत्त्व को विस्तार पूर्वक वर्णन प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता नव नालन्दा महाविहार, नालन्दा के माननीय कुलपति प्रो. वैधनाथ लाभ कर रहे थे। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. लाभ ने कहा कि आनन्द की प्राप्ति ही वसन्त का पर्याय है। जीवन्तता का प्रतीक है वसन्त।
प्रो लाभ ने महाकवि कालिदास के कथनों को रेखांकित करते हुए कहा कि सारी शुष्कता की समाप्ति होकर नवयौवन का संचार करता है वसन्त। शैक्षिक जगत् में भी इसी प्रकार से सुखापन समाप्त होकर नव उत्साह का संचार हो और हमारे महाविहार में भी नया उत्साह आए ऐसी मंगल कामना है।
कार्यक्रम के मुख्य संयोजक प्रो. विजय कुमार कर्ण (संस्कृत विभागाध्यक्ष सह छात्र कल्याण अधिष्ठाता, नव नालन्दा महाविहार,नालन्दा) ने विषय प्रवेश तथा अथितियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रथम ऋतु वसन्त की स्थिति का मुक़ाबला नहीं, शीत ग्रीष्म वसन्त इन तीनों का समावेश ऋतुसन्धि है।
प्रो कर्ण ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रेम के देव कामदेव और देवी रति है, जिनके बाण फूलों के हैं और वसन्त काल में सर्वाधिक खिलते हैं। प्रकृति और मानव मन के साथ सुन्दर सम्बन्ध है। मन में उमंग हृदय में सरसता लाने के लिए भी बसन्त ही समर्थ है।
कार्यक्रम में मंगलाचरण संस्कृत विभाग की छात्रा सुश्री नेहा आर्य तथा सरस्वती वन्दना कौशल कुमार ने प्रस्तुत किया।
उक्त कार्यक्रम का संचालन डॉ. नरेन्द्र दत्त तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राजेश कुमार मिश्र ने किया।
समारोह में डॉ. पी. के. दास, प्रो. विश्वजीत कुमार सिंह, डॉ. मुकेश कुमार वर्मा, प्रो. रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव, डॉ. धम्मा ज्योति, डॉ. शुक्ला मुखर्जी आदि शिक्षक गण, कर्मचारीगण तथा महाविहार में अध्ययनरत शोध-छात्र/ छात्राएं आदि सैकड़ों की संख्या में उपस्थित थे।
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