कर्मवीर महामहिम
कहानी लेखकः अशोक कुमार अंज
आत्मबल के धनी कर्मवीर कोविंद ने फूंस के घर में दीया की लौ तले पढ़ाई कर तरक्की की। तब केवल उम्मीद बलवान था। जिस पर अटूट भरोसा था, सफलता की। सादा जीवन उंच्च विचार का धनी सपूत अपने लक्ष्य पर बढ़ता गया। सुदूरवर्ती परौंख गांव के साधारण कोली परिवार में होनहार कोविंद का जन्म हुआ। उनके पिता का एक छोटी सी दुकान आय का स्रोत था। उसी आमदनी से लालन– पालन होता था। वह गांव शिक्षा और विकास की रौशनी से वंचित था। ना विद्यालय, ना बिजली, ना सड़क, कुछ भी वहां नहीं था। साहसी बालक कोविंद को करीब आठ किलोमीटर पैदल चल कर पढ़ाई करने स्कूल जाना पड़ता था। जो घुमावदार कठीन पगडंडी मार्ग था। उसने आठवीं तक की पढ़ाई गांव से दूर स्थित बुनियादी विद्यालय में किया। अपनी मेहनत ईमानदारी के बल पर आगे बढ़ा। वह समय का बड़ा पाबंद, और लक्ष्य के प्रति गंभीर भी।
![]() |
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, इंडिया |
अपनी योग्यता के बल पर ऊँच सदन में स्थान पाकर मुख्यधारा से जुड़ा। गरीबी को चीरते बड़ी मुश्किल से सांसद बना और संसद
![]() |
बाबा रामनाथ कोविंद और फ़िल्मी पत्रकारबाबू अशोक कुमार अंज |
उत्तरप्रदेश के कानपुर देहात जिला के चर्चित परौंख गांव। जहां मलिन मानवता के भाग्य के सितारा चमक कर देश दुनिया में निखरा।
तब घर ऐसा था, मिट्टी का घर! फूंस की छत बारिश के पानी को रोक नहीं पाता था। बड़ा मुश्किल से बरसात की भयावह रात कटती थी। वैसी विषमता में बालपन भरा जीवन का वक़्त गुजारा। बारिश से बचने के लिए घर के कोने में भाई- बहन जा छुपते थे ताकी भींगने से बचे। फूंसनुमा घर की छप्पर से बारिश का पानी टपटप रिसता था और वे बारिश थमने का इंतेजार करते थे। फूंस की छौनी से बारिश का रिसते हुए पानी में बरसात का महीना बड़ी मुश्किल से गुजरता था। उमड़ते- घुमड़ते, गरजते- बरसते बरसात की अंधेरी रात काटना संकटप्रद होता था। वह विषमता भरा वक्त की लाचारी से लाचार रहा, परंतु हारा नहीं। दैनंदिनी जरूरतों से जूझते हुए अपने धुन में रमा रहा। संघर्ष से निर्धनता की अकड़ को तोड़ते हुए उसने प्रगति पथ बनाया। गरीबी को हरा कर स्वयं शिखर पर पहुंचा। क्योंकि उसे भरोसा हीं नहीं, पक्का अटूट भरोसा था कि एक ना एक दिन समय जरूर फिरेगा, दुख का अस्त और सुख का उदय होगा। वैसे अभाव भरे दिनों में भी पढ़ कर वे वकील बने। संवैधानिक ज्ञान में निपुनता हासिल कर अधिवक्ता का कार्य प्रारंभ किया और वकील साहब की वकालत चल पड़ी। उन्हें सिविल में रूची थी इसलिए ज्यादातर सिविल मुकदमें को निपटाते थे। गरीबों के न्याय के लिए संस्था बनाया।
![]() |
राष्ट्रपति कोविंद बाबा के प्रेरणाप्रद साहसिक ज़िंदगानी |
जिससे गरीबों को भला हो सके। क्योंकि गरीबों को न्याय जल्दी मिलती नहीं, न्याय के लिए गरीबों को बहुत झेलनी पड़ती है। बहुतो चक्कर काटनी पड़ती न्यायालय की और रुपैया भी बहुत खर्च होता। बेचारा गरीब न्यायालय की चक्की में पिसा जाता। लाचारी ऐसे की दम घूंट कर रह जाता। इन्हीं समस्याओं को देख कर उदार दिल वाले कोविंद बाबा ने मलिन मानवता को सहारा देने के ख्याल से मानव सेवा में भी जुटे। जो बड़ी कारगर साबित हुआ और चर्ची भी।
वकील साहब कहते- वगैर रूपया का न्याय नहीं मिलता।
वकालतगिरी की आमदनी से वकीलबाबा के दुखद वक़्त का अस्त हुआ और सुखद वक्त का उदय। अपनी कमाई की आमदनी से सुकून मिला, और आर्थिक साहस भी। सहज स्वभावी ऐसा! किसी से उलझते नहीं, बल्कि उलझनों को सुलझाते। वह ओजस्वी वकील बना हीं प्रखर राजनीतिज्ञ भी। भरोसा कामयाब! अथक परिश्रम व लगन सफलता की चाॅंदनी बनी। पर्वत सा अडिग कर्मठता से सफलता की राह निकली। वह अपने हिम्मत हौसले के बल पर अकेला चला परंतु चलते- चलते जमात बनी। जमात से वह जनप्रतिनिधि बन गया। जिससे लोग चकाचौंध हुए, और अचंभित भी। वह अपने जीवन में कई अवसर पाया और उसे बखूबी निभाया। वह वकील, विधायक, सांसद, राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर तैय किया। इसे कहते बुलंद नसीब! जो वगैर मांगे मिला। उठापटक की स्थिति झेलते हुए वे कामयाब हुए। वे वकील साहब से जनप्रतिनिधि बने और वहीं से उनकी सियासी किस्मत खुली। संवैधानिक मर्मज्ञ वकील साहब! जनप्रतिनिधि बन कर लोगों की सेवा की। कुछ दिनों बाद उनकी किस्मत सोने पर सुहागा का कार्य किया।
![]() |
बिहार राज्यपाल से सीधे राष्ट्रपति निर्वाचित |
इसी कड़ी में एक और सुहाना सुअवसर जुड़ा। वगैर मांगे उन्हें राज्यपाल का गरिमामयी पद मिला। इसी दरम्यान फिर तकदीर का सितारा बुलंद हुआ। वे राज्यपाल से सीधे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। भारी बहुमत से भारत का सर्वोच्च पद हासिल कर राष्ट्रपति का बागडोर संभाले। ऐतिहासिक जीत से उनकी बांछें खिल उठी। आखिरी नागरिक से प्रथम नागरिक तक का उसने सफर तैय किया। प्रधान सेवक की देन से गुदड़ी का लाल! राष्ट्रपति बना। उसने जिसकी अभिलाषा ना की, वह भी उसे स्वतः मिला। जिसने कभी सपनों में भी नहीं सोचा की राष्ट्रपति बनेगें। उनके लिए सौभाग्य हीं वरदान बना। उसने अपने दम पर झोपड़ी से लेकर रायसीना हिल्स तक पहुंचा। ऐसा सुअवसर बिरले किस्मत वाले को मिलता। नसीब निखरा और वह इतिहास रचा। जो इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हुआ।
ग्रामीणों ने कहा– बाबा ने कमाल कर दिया। जिसकी उम्मीद नहीं, वह भी पा लिया।
![]() |
पीएम मोदी सहित माननीयगण से मिलते राष्ट्रपति कोविंद |
राह की रोड़ा चकनाचूर। उल्टे रोड़े भी फूल बन! साथ खिला खिलखिलाया भी। कर्मयोगी वकील कोविंदबाबा सत्ता पर काबिज हुए। गांव का सरताज, देश का ताज बन कर सर्वोच्च पद पर हिमनग की तरह शोभायमान हुआ। वह सिंहासन बेजोड़। महामहिम की कुर्सी तक पहुंचने का गौरव बिरले को नसीब होता है। जो भारत का वास्तविक रखवाला की कुर्सी। जिनके अधिकार में जल, थल, नभ, तीनों की कमान। जिनके आदेश पर तीनों क्षेत्र का पत्ता हिलता- डोलता, आबाद या बर्बाद होता। जिम्मेवारी, महाशक्तिशाली शक्ति की। राष्ट्रपति, देश के असली सुरक्षा प्रहरी होते। राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय विचार धाराओं को सहेजना- समेटना- निपटाना, उनका कर्तव्य। माननीय महामहिम की सिंहासन! महामंडित सर्वोपरि। वहां क्षमारूपी न्याय की खास स्थान होता है। वह संवैधानिक कुर्सी भिन्न और अतुल्नीय भी। महामहिम! मृत्युदंड वाले को क्षमादान देने की हैसियत रखते। वे बहुते श्रेष्ठ होते इसीलिए महामहिम कहलाते। श्रेष्ठत्म राजनैतिक शिखर है राष्ट्रपति पद। जो वास्तविक निर्णय लेकर वाजिव संवैधानिक फैसला देते। अंतिम पायदान का व्यक्ति महान बने और उस पद को गौरवांवित किये। वह बेटा! देश का गौरवशाली शान। कोविंदबाबा की इस जीत से गांव में अद्भूत जीत की जश्न की छंटा बिखरी। उत्साहित लोग ढोल- नगाड़े की थाप पर थिरक उठे। हर्ष में सराबोर गांव के बच्चें, बूढ़े, जवान, नर- नारी झूमकर नाच उठे। कर्मवीर कोविंद बाबा ने गांव का मान बढ़ाया ही, पहचान भी। बाबा के गांव में वह विजय दिवस किसी पर्व- त्योहार से कम नहीं दिखा। कर्मवीर की धरती परौंख की वादियों में कोविंद बाबा की जय- जयकार गूंज उठा।
हर्षितजनों ने कहा गरीब का बेटा राष्ट्रपति बना। हम सब बेहद गौरवांवित हैं। कोविंद बाबा ! शानदार जिंदाबाद। परौंख का बेटा जिंदाबाद ! ख़ुशी ऐसी की परौंख गांव के कण-कण झूम उठा।
परिजन ने कहा- बाबा की कर्मठता सहनशीलता और सहजता शिक्षाप्रद। वे आदर्श हैं हीं प्रेरणा स्रोत भी। ऐसा मौका बिरले भाग्यशाली को मिलता।
![]() |
बिहार राज्यपाल से राष्ट्रपति बने कोविंद |
बिहार से राज्यपाल के पद से ऊँचा पद पाकर दिल्ली जाने के वक्त दिल का उद्गार व्यक्त करते राज्यपाल रामनाथ कोविंद बाबा बोले राष्ट्रपति के रूप में गरीबों का प्रतिनिधि बन कर जा रहा हूॅं। बिहार की महान पवन धरती को नमन कर दिल्ली चले गए और राष्ट्रपति बने।
कोविंद बाबा दानी प्रवृति का इंसान। अपना पैतृक घर सामाजिक कार्य हेतु समाज को दान में दे दी। उनका मिट्टी फूंस का पुराना घर अब ईंट से निर्मित आधुनिक। जब वे बिहार के राज्यपाल थे तभी सपरिवार शिमला की शैर करने गए थे। भ्रमण के दौरान उनकी इच्छा हुई शिमला स्थित प्रेसिडेंसियल भवन में जा ठहरने का।
![]() |
आत्मबल के धनी कोविंद बाबा |
महामहिम राज्यपाल कोविंद वहां गए परंतु वहां विश्राम करने की स्वीकृति नहीं मिली। वह विशेष सुरक्षित प्रेसिडेंसियल भवन सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति के लिए होता है। जाहिर हो वह प्रेसिडेंसियल भवन खूबसूरत आकर्षक भरपूर आधुनिकता से सुसज्जित, अनोखा है। वहां किसी गैर का विश्राम वर्जित है। इस वाकिया उपरांत राज्यपाल कोविंद बाबा, राष्ट्रपति बन गए। प्रेसिडेंसियल भवन में उन्हें ठहरने का हक़ मिला। जो एक संयोग ही है। जीवन धन्य हुआ ही बलेबले भी। सुअवसर ऐसा कि राज्यपाल महामहिम, बड़ा महामहिम राष्ट्रपति बन गए। बिहार के राजभवन से उपलब्धि बुलंद हुई और सफल भी।
जाते- जाते कोविंद बाबा बोले- बिहार को कभी भुलूॅंगा नहीं।
महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविंद महोदय, निर्वाचित होकर महामहिम राष्ट्रपति बने। जय भी गरीब मसीहा की और विजय भी।
![]() |
अशोक कुमार अंज, वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट |
kahani rashtrapati kovind ki
प्रेरणादायी साहसिक कहानी
कहानीकार
अशोक कुमार अंज
वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट
(फ़िल्मी पत्रकारबाबू)
आकाशवाणी- दूरदर्शन से अनुमोदित साहित्यकार व पत्रकार
वजीरगंज, गया- 805131 इंडिया
kahani rashtrapati kovind ki
– प्रस्तुति : अंज न्यूज़ मीडिया
– Presentation : Anj News Media