धार्मिक नगरी गयाजी की संगीत परम्परा अतिप्राचीन
गयाजी एक अति प्राचीन सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी है, यहाँ की संगीत परम्परा भी अत्यंत पुरानी चली आ रही है. इसके वर्तमान स्वरुप में कत्थक – नृत्य के बारें में प० दिनेश कुमार मउआर, तबला वादक प्रकाश डाल रहे है. वे बताते है की-
श्रीमती शोवना नारायण, प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना अपने शोध के सम्बन्ध में गया जी आई थी. उन्हें पता चला की कत्थक नृत्य की पुरानी परम्परा गया जी से प्रारंभ हुई थी.
शोवना नारायण के बारें जाने –
शोभना ने कहा कि हमारी जीवन यात्रा की शुरुआत बिहार और खासतौर पर पटना से हुई. उन्होंने कहा कि मेरा ननिहाल मुजफ्फरपुर में रही. हमारे पिता आरा के थे. काफी समय तक पाटलिपुत्रा कॉलोनी में रही. पिता की नौकरी के कारण पटना से होते हुए दिल्ली गई. उन्होंने कहा कि कथक नृत्य के प्रति मेरा रूझान बचपन से था. जिसमें हमारी मां की अहम भूमिका रही.
मां की इच्छा थी इसमें बेहतर करूं. पढ़ाई में तेज होने के साथ इस विधा से लगाव बचपन से रहा. चार साल की उम्र में पहली बार मुजफ्फरपुर में स्टेज पर अपनी प्रस्तुति दी थी और ईनाम भी मिला था. शोभना ने कहा कि पटना हमारी मातृभूमि रही. हम कहीं भी रहें जब भी मौका मिलता है पटना आने को तो मैं हमेशा तैयार रहती हूं.
शोभना ने कहा कि बिहार की कला-संस्कृति हमेशा से समृद्ध रही. यहां के कलाकारों को कद्र हमेशा से ऊंचा रहा है. सन 1970 के दौरान शहर ने कला के कई रंग देखे. उस दौरान दशहरा महोत्सव का आयोजन बड़े-धूमधाम से होता था. महोत्सव के दौरान विभिन्न घरानों के कलाकारों ने यहां आकर प्रस्तुति दी. कलाकारों की प्रस्तुति देखने के लिए पूरा शहर रात भर जगता था.
मै सन 1972 से लगातार पटना आ रही हूं. इसके बाद यहां शहर के विभिन्न हिस्सों में हमारी प्रस्तुति होते रही है. जिसे पटना के दर्शकों ने खूब सराहा. उन्होंने कहा कि हमारे नृत्य में लखनऊ और बनारस घराने की झलक मिलती है. बनारस घराने के बिरजू महाराज और जयपुर घराने के गुरु कुंदन लाल से भी शिक्षा ली. वैसे तो हमारे लिए एक ही घराना है जो है कथक घराना. नृत्य को हमेशा से जीती रही हूं. इसके आगे और पीछे कुछ नहीं दिखता.
शोवना नारायण के कहना है की यह कत्थक नृत्य का इतिहास ढाई हजार साल पुरानी है. कथक नृत्य के बारे में शोभना ने कहा कि कथा शब्द से कथक आया है. इस कला का जानने का महत्व पहले था, उतना आज भी है. .
वर्तमान में औरंगाबाद जिला के कत्थक ग्राम कथकियों का गांव हैं. जिनमें कथक ग्राम, कथक बिगहा, जागीर कथक हैं. शोवना ने डॉक्यूमेंट्री और आधिकारिक रिकॉर्ड के साथ गया के पास 8 कथक गांवों पर शोध और खोज की है.
प्राचीन कत्थक कितना प्राचीन था, इस पर अपने निष्कर्षों को साझा करते हुए, शोवना ने कहा, “मिथिला में कामेश्वर अभिलेख के एक एपीग्राफिस्ट द्वारा पुष्टि की गई है कि यह मौर्य काल से ईसा पूर्व की है. प्राकृत और ब्राह्मी लिपि के शिलालेख में कथक का भक्तिपूर्ण नृत्य के रूप में उल्लेख है और वाराणसी के क्षेत्र का उल्लेख है.
“आज हम जो कथक नृत्य देखते हैं, वह प्राचीन कथक से बहुत अलग है. आज के खड़े मंदिरों में नृत्य रूपों को दर्शाती मूर्तियां, सबसे अच्छे रूप में, लगभग 1000 से 1100 वर्षों तक की आती हैं तो गुप्त और मौर्य काल के मंदिर और मूर्तियां कला हैं जो वास्तुकला और मूर्तियों से बहुत समृद्ध थे. हम भारत के छोटे संग्रहालयों और अभिलेखागार पर ध्यान नहीं देते हैं, जो सूचनाओं का आश्रय स्थल है. यहीं पर हमें कत्थक नृत्य के रूप और भाव में निरंतरता को देखना और खोजना है.
शोभना ने कहा कि एक बुजुर्ग कलाकार कन्हैया मल्लिक से वर्षो पहले मुलाकात हुई थी. लेकिन वो अब नहीं रहे. मल्लिक ने बताया था कि बिहार में कथकियों की लंबी परंपरा रही है. यहां के कलाकार काफी वर्षो तक टिकारी राज-दरबार की शोभा-बढ़ाते रहे. बाद में धीरे-धीरे समय बदला और राजपाट और ज़मीनदारी भी खत्म हो गया. इनके यजमान जो उन्हें अपने दरबार में बुलाते थे लेकिन वो उनके जाने के बाद इन कलाकारों का कद्र धीरे-धीरे खत्म होता गया. जिसके बाद बहुत से कलाकार बिहार के ईश्वरपुर गांव में जा बसे.
सन 1910 में गए कई परिवारों ने अपना संसार वहां बसाया. जिसके बाद वहां से कई दिग्गज कलाकार बाहर निकले. ये सभी कलाकार पहले गया के कथक गांव में रहा करते थे. शोवना नारायण ने कहा कि तवायफों के आगमन के बाद कथक गांव के कलाकारों का वहां से पलायन शुरू हुआ. वे सब समय के साथ-साथ अपने आजीविका के लिए गाँव को छोड़ कर अन्य स्थान को जा चुके है. अब इन ग्राम में कोई कत्थक कलाकार नहीं है.
टिकारी के कत्थक बीघा गाँव को टिकारी राज परिवार ने अपने जागीर को दे कर बसाया था. कत्थक कलाकारों से गाँव आबाद था. टिकारी राज परिवार में होने वाले पर्व, उत्सव और मांगलिक कार्य में कत्थक कलाकार अपने कला का प्रदर्शन किया करते थे. इसके अलावा कत्थक कलाकार अपने कला के प्रदर्शन के लिए बराबर बाहर जाते रहते थे. गांव के रिकार्ड में कथकियों की कत्थक नृत्य करने की बात आती है.
गया के प० दिनेश कुमार मउआर के अनुसार गया में इस विद्या के कलाकारों में स्व० श्री लखन नटराज जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने लखनऊ घराने के विख्यात नर्तक प० शम्भू महाराज जी से शिक्षा ली थी. वर्तमान समय में घुघरू की खनक अगर सुनाई पड़ती है तो यह उन्ही का देन है. 31 दिसम्बर 1993 को उनका देहावसान हो गया था. उन्होंने अपने जीवन भर इस विद्या की शिक्षा अनेको छात्र एवं छात्राओं को दिये.
ये दिल्ली के बाल-भवन में भी कुछ दिन तक गुरु पद रहे थे. आज भी इनके शिष्य एवं शिष्याएं सक्रीय है. जैसे- श्रीमती किरण अग्रवाल, भुवनेश्वरी देवी, श्रीमती राखी चौरसिया, मुग्धा अग्रवाल, श्रीमती पुष्प सिंह, दिनेश कुमार (तबला वादक) स्व० केदार नाथ गायब जी एवं सैकड़ों लोग को उन्होंने सिखाया था. वे सभी लोग देश-विदेश में रह रहे है.
लखन नटराज जी गया ही नहीं बल्कि देश के एकमात्र नर्तक थे, जो जिन्दा सर्प धारण कर शंकर का वेश धारण कर “शिव-तांडव” नृत्य करते थे. मै तो उनके साथ अनेक प्रोग्राम में गया हूँ. तबला संगत, बोल पढंत मै साथ-साथ किया करता था.
नटराज जी मृत्यु के बाद गया के दुसरे नर्तक गुरु स्व. श्री रामचंद्र प्रसाद केवट जी थे. ये पटना के श्री भगवती प्रसाद के शागिर्द थे. ये भी लखनऊ घराना और जयपुर घराना के खासियत से परिचित थे. गया जी की कत्थक परम्परा में इनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा है, दो वर्ष पहले 27 जुलाई 2019 को इनका निधन हुआ है. मुझे लगभग 20 वर्षों तक इनके साथ संगत करने का व सिखने का मौका मिला है. आज भी इनके बड़े लड़के श्री राम गोपाल जी इस परम्परा को चला रहे है. इनके अनेक छात्र एवं छात्राओं हुए है जैसे रिया चक्रवर्ती, श्रुति भट्टाचार्य, बाबु लाल केवट, निशा पंडित, मोनालिसा बनर्जी, श्रीमती भुवनेश्वरी देवी, मधु कुमारी, गणित देवी, सुगंधा मिश्रा, अर्पिता वैगरह है.
इनदोनों के अलावे गया में श्री दशरथ जी महाराज भी कुछ वर्षों के लिए गया में रहे. उन्होंने भी बहुत छात्रों एवं छात्राओं को कत्थक नृत्य की शिक्षा दिये. वे लोहरदग्गा, झारखण्ड के निवासी थे. मुझे भी इनके साथ कई प्रोग्राम में जाने का अवसर मिला था. ये सुबरे महाराज के शागिर्द थे. ये आरा जिला के ज़मीनदार बाबु ललन सिंह के संरक्षण में रह कर नृत्य साधना किये थे. वे बड़े गुणी नर्तक थे. इनके शिष्यों में प्रकाश सिन्हा, अर्पिता गाईन, मुग्धा नगेन वैगरह अनेक कलाकार हुए है. ये भी लगभग 15 वर्ष पूर्व लोहरदग्गा में अंतिम सांस लिए थे.
वर्तमान समय में श्री राम गोपाल इस परम्परा को चला रहे है. ये मेरे साथ बोध गया में जीवन विकाश विद्यालय में नृत्य की शिक्षा दे रहे है. स्व. रामचंद्र के शिष्य डा. राहुल कुमार भी नृत्य शिक्षक के रूप में कार्यरत है.
डा. राम गोपाल जी के शिष्यों में- कुमार शेखर, कुमारी मधु सिंह, रिम्मी कुमारी, शिवम् कुमारी, पूजा कुमारी वैगरह है, मुख्य रूप से इस कत्थक नृत्य क्षेत्र में आज भी काफी सम्भावना है.
स्व. जयंत भट्टाचार्य उर्फ़ बोलू दादा का भी कत्थक नृत्य क्षेत्र में बहुत ही सराहनीय योगदान रहा है.
रचनाकार –
प० दिनेश कुमार मउआर
तबला वादक, गया धाम
– Presentation, AnjNewsMedia