संपूर्ण गर्भावस्था के दौरान चार बार प्रसव पूर्व जांच जरूरी
जिला स्तर पर ख़ास पहल ! महिला जागरूकता |
गया : उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था तथा एचआईवी प्रबंधन को लेकर स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिला स्तर पर विशेष प्रयास किये जा रहे हैं।
उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था का प्रमुख कारण एनीमिया :-
उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान कर उनकी नियमित ट्रैकिंग तथा चार बार आवष्यक प्रसव पूर्व जांच सुनिश्चित हो सके, इसके लिए जिला में वंडर एप प्रोजेक्ट का संचालन किया जा रहा है।
प्रसव पूर्व जांच में एचआईवी की जांच सुनिश्चित :-
जिला स्वास्थ्य समिति तथा यूनिसेफ के संयुक्त तत्वाधान में कार्यशाला का आयोजन कर जिला के सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों के चिकित्सकों तथा जीएनएम का क्षमतावर्धन किया गया।
जिला स्वास्थ्य समिति तथा यूनिसेफ का संयुक्त प्रयास |
सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों के चिकित्सकों व जीएनएम का हुआ क्षमतावर्धन :-
इस दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका से डाॅ मुत्थु, गाइनेकोलॉजिस्ट एवं सर्जन डाॅ समर्थ राम, केरल से स्टाफ नर्स मिस स्मिथा, मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से डाॅ लता शुक्ला, युनिसेफ से डॉ आभा सिंह सहित सिविल सर्जन डाॅ रंजन कुमार सिंह, डीपीएम नीलेश कुमार, एसीएमओ डॉ श्रवण कुमार, युनिसेफ से संजय कुमार सिंह तथा डाॅ नेहा थॉमस आदि मौजूद रहे. कार्यशाला के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से डॉ नर्मदा कुप्पुस्वामी ने वंडर एप कार्यक्रम के सफलतापूर्वक संचालन के लिए जिलाधिकारी डाॅ त्यागराजन एसएम को धन्यवाद दिया।
वंडर एप प्रोजेक्ट के लिए डाॅ नर्मदा कुप्पुस्वामी ने डीएम को दिया धन्यवाद :-
सिविल सर्जन ने बताया जिला में गर्भवतियों के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखने की हर संभव कोशिश है। इसके लिए स्वास्थ्यकर्मियों का क्षमतावर्धन किया जा रहा है।
डीपीएम ने कहा कि क्षमतावर्धन कर जिला स्तर पर होने वाली मातृत्व मृत्यु दर को कम किया जा सकेगा। कार्यशाला के दौरान डाॅ रंजना कुमारी ने बताया कि उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था का सबसे बड़ा कारण एनीमिया है। इसके अलावा डायबिटीज, उच्च रक्तचाप भी उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था का कारण बनते हैं।
क्षमतावर्धन से मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाने का प्रयास :-
गर्भवती के लिए एनीमिया प्रबंधन आवश्यक है. खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम हो जाने से महिला को थकान, हंफनी, कमजोरी होने लगता है और यह हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाली स्थिति को जन्म देता है।
गर्भवती को नौ माह में चार बार प्रसव पूर्व जांच जरुरी
एचआईवी के बारे में बताते हुए डॉ आभा सिंह ने बताया कि इसका संक्रमण मां से शिशु तक हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि गर्भवती माताएं अपने प्रसव पूर्व जांच के दौरान एचआईवी की शत-प्रतिशत जांच सुनिश्चित करें।
वंडर एप से हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की हो रही ट्रैकिंग :-
यूनिसेफ के संजय कुमार सिंह ने बताया जिला में उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान करके, उनके स्वास्थ्य की देखभाल और प्रसव पूर्व जांच आदि की सभी प्रकार की जानकारियों को प्राप्त करने में वंडर एप की मदद ली जा रही है।
वंडर एप पर गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जानकारी रजिस्टर की जाती है ताकि समय पर उन्हें आवश्यक इलाज व देखभाल मुहैया कराई जा सके। एप से उनके स्वास्थ्य के अनुश्रवण में काफी मदद मिल रही है।
गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की देख-रेखा जरुरी लापरवाही न बरतें |
महज 25 प्रतिशत गर्भवती का होता है चार एएनसी :-
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के मुताबिक जिला में 15 से 49 वर्ष की 64.3 फीसदी महिलाएं एनीमिया प्रभावित हैं। जबकि इसी आयुवर्ग की 64.4 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं।
वहीं 63 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं की ही पहली प्रसव पूर्व जांच हो पाती है। जबकि पूरी गर्भावस्था के दौरान चार बार प्रसव पूर्व जांच सिर्फ 25 प्रतिशत महिलाओं की ही होती है।
वहीं सर्वे के मुताबिक प्रसव के 100 दिनों या उससे अधिक दिनों तक आयरन व फोलिक एसिड की गोलियों का सेवन सिर्फ 19 फीसदी गर्भवती महिलाएं करती हैं।
दूसरी ओर सिर्फ सात फीसदी गर्भवती महिलाएं 180 दिन या इससे अधिक दिनों तक आयरन, फोलिक एसिड की गोलियों का सेवन करती हैं।
– AnjNewsMedia Presentation