पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की बेजोड़ जोड़ी
वे दोनों दोस्त वहाँ पहुँच गए जहाँ तक की सोचे भी नहीं
पीएम नरेंद्र मोदी |
वर्षों पहले जब नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों की दोस्ती हुई थी, तब उन्हें ऐसे दिन का अंदाज़ा नहीं था। ना, वे ऐसे सपने देखे कि दोनों की जोड़ी इतना बड़ा कारनामा कर गुज़रेगी। मोदी पीएम होंगे और अमित शाह
गृहमंत्री। बस, दोनों की दोस्ती एक दूसरे पर विश्वास के साथ निरंतर बढ़ता गया। इस तरह दोस्ती और सोच गहराता रणनीति की पटरी पर बढ़ता गया। उसी के साथ एक दूजे का सहयोग और भरोसा प्रगाढ़ हुआ। ऐसे में दोनों यार का दिन फिरा। वे दोनों ज़मीं से आसमां तक की सफर तय कर ली। ऐसी दोस्ती, बहुत हीं कम देखने को मिलता है। खास कर राजनीति में तो बिल्कुल हीं नहीं के बराबर। राजनीति ने दोनों को एक मोड़ पर लाकर खड़ा किया। मोदी आरएसएस से जुड़े थे और शाह एवीपी से, परंतु संयोगवश राजनीति ने दोनों की दोस्ती करा दी। जो बढ़ते- बढ़ते सत्ता तक पहुँचे। इस तरह सफर बढ़ता और गहराता चला। समझो, चलते- चलते मंज़िल मिल गई। वे वहाँ पहुँच गए जहाँ तक की सोचे भी नहीं थे। ऐसी दोस्ती में आदर्श झलकती है। राजनैतिक दोस्ती कभी प्रगाढ़ तो कभी नाज़ुकपन की मिलती है। वैसे में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की
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गृहमंत्री अमित शाह |
राजनैतिक दोस्ती प्रगाढ़ और अटूट प्रेम- भाईचारे की रही है। जो राजनैतिक क्षितिज पर कदम रखने से लेकर आज तक क़ायम है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की राजनैतिक दोस्ती ऐसी कि जीरो से हीरो बनने तक की विचित्र कहानी है, विधायक- सांसद से लेकर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक, सरकार में शामिल होने तक पूरी मज़बूती के साथ सरकार के साथ ऊँच पद पर सुशोभित हुए। राजनीति की यह बेमिशाल दोस्ती है। वे दोनों दोस्त मुश्किलों से जूझते पार्टी को सिंचते हुए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक पहुँचे। यानि प्रचंड बहुमत से सरकार बनने तक की कठोर मेहनत रंग लाई, जिससे पूरे विश्व में गुल खिल रही। वह शानदार जीत ऐतिहासिक है हीं, बेमिशाल भी। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की अद्भुत राजनैतिक दोस्ती प्रेरणाप्रद है। पक्के इरादे की दोस्ती सत्ता के गलियारे तक पहुँची है। वे दोनों सम और विषम परिस्थितियों का बोझ उठा कर झेलते हुए निकले चुनावी राजनैतिक चुनौती से लड़ने, और आख़िरकार, ऐतिहासिक अद्भुत सफलता हासिल कर दम मारे। वे दोनों चुनौतियों से कभी डरे नहीं, हारे नहीं। बस, अपनी चट्टानी इरादे के बल पर चुनावी जंग जीतते निरंतर आगे बढ़ते गए। आख़िरकार, भारी बहुमत से जीत हुई, और मजबूत मोदी सरकार बनी। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की राजनैतिक दोस्ती को देशवासियों ने लोहा मान लिया। मोदी और शाह की दोस्ती एनडीए गठबंधन के भाजपा के लिए वरदान साबित हुआ। चुनाव में मोदी लहर की ऐसी, सुनामी चली की अन्य राजनैतिक पार्टी- दलों की बुरी तरह हार हुई। मोदी लहर को कामयाब करने में अमित शाह की अहम भूमिका रही। जो देश की चुनावी हवा को अपने पक्ष में कर ली। उस हवा से सिंहासन की बहुमत मिली। जो क़ाबिले तारीफ़ है। ऐसे, मोदी हवा कमाल कर दिखाया। बस, मोदी के चेहरे पर देशवासी चहक उठे, और एक बार फिर मोदी की मजबूत सरकार बनाने में भरपूर वोट की मज़बूती दी। वर्ष 2014 में मोदी अच्छे दिन का स्लोगन लेकर सत्ता पर सुशोभित हुए और अबकी बार वर्ष 2019 में मैं भी चौकीदार का स्लोगन लेकर दिल्ली के सिंहासन पर दूसरी बार पीएम नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के गद्दी पर बैठे। इस बड़ी उपलब्धि वाली सफलता से मोदी की बाँछें कमल की तरह खिल कर निखर उठा। ऐसी, अतुलनीय चुनावी परिणाम से कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल दिखा। जीत वाली पार्टी में बेहद हर्ष झलके तो वहीं हार वाली पार्टी- दलों में हार की समीक्षा दिखी। जनता- जनार्द्धन द्वारा मिले चुनावी नतीजे स्वीकार हुआ हीं, सार्थक भी। जनता मालिक की दी हुई बहुमत से महाशक्तिशाली मोदी सरकार बनी। ऐसे में देश का चुनावी महा त्योहार सफलतापूर्वक सफल हुआ। सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपने- अपने हिसाब से चुनावी चाल चल रहे थे, लेकिन उस चुनावी चाल में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की चाल कामयाब हुआ। इतना हीं नहीं दोनों राजनैतिक योद्धा रूपी युगल जोड़ी राजनैतिक दोस्त की दोस्ती सत्ता की दोस्ती में तब्दील हो गया। ऐसे, दोस्ती का सितारे चमके। जिससे देश चमक उठा। दोस्ती सफल हुआ हीं, राजनीति की रणनीति भी। इस अटूट दोस्ती से चुनावी मुहिम की ज़िन्दाबाद हुआ हीं, सिंहासन की जय भी। वे अल्प उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। 1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से हुई। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और छात्र जीवन से ही राजनैतिक रुझान आरम्भ हुआ, शाह 1986 में भाजपा में शामिल हुए। 1987 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया था। शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला वर्ष1991 में मिला, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से वे चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाले। वहीँ दूसरा मौका 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय की। चुनाव 2019 में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाले। पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप-चुनाव जीतकर अपने राजनैतिक करियर की आरम्भ की। वर्ष 1999 में वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट भी चुने गए थे। वर्ष 2009 में वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने थे। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने थे। वर्ष 2003 से 2010 तक उन्होने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाले। वर्ष 2012 में नारनुपरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने तीन बार सरखेज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे गुजरात के सरखेज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार क्रमश: 1997 (उप-चुनाव), वर्ष 1998, 2002 और 2007 से विधायक निर्वाचित हुए। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी हैं। वे इस तरह राजनैतिक सुर्खियों में हमेशा बने रहे। मोदी और शाह की मित्रता बेजोड़ है। जो देश को दम दिया है। साहस की द्योतक है उनकी दोस्ती। जो एक दूजे के लिए राजनैतिक अमृत की घूँट्टी सा हैं। एक दूजे की सोच से देश सशक्त बनता जा रहा है। दो दोस्त की कार्य योजना से देश चहुँमुखी विकास की ओर सफलता के साथ बढ़ चला है, विकास की पटरी पर। अच्छे दिन की कल्पना के साथ और भी बेहतरीन दिन की उम्मीद है, नई मोदी सरकार से। जहाँ मोदी और शाह की दोस्ती, वहाँ कौन कमी, विकास की धारा तेज गति से बढ़ेगा। चुनावी जीत के बाद पीएम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की ज़िम्मेवारी और भी भारी हुआ है। जिस पर खरे उतरना, चुनावी जीत से कम नहीं। दायित्व का निर्वहन देश की जनता- जनार्द्धन के लिए होगी, जिसकी रफ़्तार देशहित की पटरी पर झलकेगी।
लेखक,
अशोक कुमार अंज
(फ़िल्मी पत्रकारबाबू)
आकाशवाणी- दूरदर्शन, पटना से अनुमोदित
वजीरगंज, गया, बिहार