पीएम मोदी की वोट और सत्ता

वोट में सत्ता की महाशक्ति

मोदी राजनीति में महा माहिर धनुषधर अर्जुन की तरह

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी का फिर ज़िंदाबाद

लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी का ज़िंदाबाद

वोट बड़ी कीमती चीज़ होती है। जिसकी बहुमत से सीधे सत्ता हासिल होती है, उसकी ऐसी अपरम्पार महिमा। राजनैतिक पार्टियों के लिए पूजनीय है, वोट समझो, वोट में सत्ता की महा शक्ति समाहित होती है वोट ऐसा मणि है, जिससे सत्ता सिंहासन जगमगा उठता है वोट पाने के लिए आपाधापी की होड़ होती है, इस होड़ में जो मतदाताओं के भरी मतों का वोट पा लिया! समझो, वही सत्ता का सिकंदर। उसके लिए चुनाव आयोग को कितनी व्यवस्था करनी पड़ती है। दुरूस्त प्रशासनिक व्यवस्था से लेकर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था तक की ज़िम्मेवारी चुनाव आयोग की होती है। चुनाव के माध्यम से चुने गए सांसद- विधायक हीं लोकसभा या विधानसभा के सदस्य चयनित होते हैं। ऐसे में राजनैतिक पार्टियों के नेता वोट की राजनीति करते हैं। पांच साल पर लोकतंत्र के यह चुनावी महापर्व आता है। जिसमें कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा, तो कभी पंचायत चुनाव शामिल है। चुनाव के दौरान सभी नेता, विधायक, सांसद, कार्यकर्त्ता, शासनिक, प्रशासनिक तंत्र सहित प्रेस, मीडिया मैन पूरी तरह सक्रिय होते हैं। वैसी सक्रियता और जिम्मेवारी केवल चुनाव में ही दिखता है। चुनाव आयोग ने मतदान के लिए ईवीएम और वीवीपैट की आधुनिक व्यवस्था के जरिये चुनाव कराया गया। चुनाव प्रचार के लिए नेताओं की जितनी सक्रियता होती है उतनी चुनाव जीतने के बाद नहीं। ऐसी सक्रियता केवल वोट के लिए दिखती है। नेताओ ने सारे काम छोड़ कर चुनाव प्रचार करते हैं। आसमान में उड़नखटोला यानि हेलीकॉप्टर पर उड़ते दिखते हैं। चुनाव महा चुनौती होती है और उस चुनौती का मजबूती के साथ सामना करना पड़ता है परन्तु जीतने के बाद की स्थिति बिलकुल बदल जाती है। वोट के बाद नेताओ की नजरिया पांच साल के लिए स्थिर हो जाती है। असली माजरा वोट की हीं है। वोट अपनी झोली में जैसे भी लाएँ, परंतु वोट आनी चाहिए। जो भी खेल है, वो वोट की खेला है। जिसके पीस वोट की शक्ति वही असली राजनीतिज्ञ है। नेता बहुत होते परंतु जनाधार बटोरने वाले नेता विरले कोई होता है। नेताओं के नाम पर वोट की लहर चलती है। उनके व्यक्तित्व और चेहरे पर भी वोट, वोटर्स करते हैं। बदलते दौर में मतदाता बहुत जागरूक हो चुके हैं। अपना बहुमूल्य वोट बहुत सोच समझ कर देती है। वोटर्स वोट की क़ीमत समझती है। वोट बहुमूल्य है लोकतांत्रिक व्यवस्था की मज़बूती के लिए। वोट की बहुमत से हीं सत्ता तक पहुँची जाती है। जिसे सरकार कहते हैं। वहीं सरकार देशहित सहित रक्षा- सुरक्षा, शांति- भाईचारे के साथ विकासशील देश के लिए शासन करती है। चुनाव से जो जीत कर जाते हैं वहीं लोकसभा में सांसद या विधानसभा में विधायक होते हैं। सांसदों ने जिसे नेता चुनते वह प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होते हैं। ठीक इसी तरह विधानसभा के विधायकों द्वारा जो नेता चयनित होते हैं वे हीं मुख्यमंत्री होते हैं। जिसमें चुनाव आयोग की हीं मुख्य भूमिका होती है। जो पार्टी चुनाव जीत कर बहुमत से निकलते हैं। असली जीत उसी की, वर्ना विपक्ष की भूमिका में होते हैं। वोट हासिल करना आसान नहीं, बहुत हीं मुश्किल कार्य है। राजनैतिक पार्टियों के नेता वोट हासिल करने के लिए कितने दाव- पेंच, छक्का- पंजा करते हैं। इस में जो जितने माहिर होते हैं, वे उतने अधिक वोट बटोरते है। वोट बटोरने की क्षमता अलग- अलग होती है। चाहे, जो हो वोट की राजनीति है। असल में वोट प्यारा होता है। उसी से राजनैतिक भविष्य निखरती है। जो सत्ता के गलियारे की राह दिखाती है। वर्ना, राजनैतिक राह पूरी तरह विफल होते हुए बंद हो जाती है। वैसे नेता पार्टियों की ठोकर खाते दर- दर भटकते हैं। यही वजह है कि लोकतंत्र में वोट सर्वोपरि है। जिसमें जनता मालिक होती है। जनता मालिक जिसे वोट की ताकत प्रदान करती है, सत्ता रूपी सिंहासन उसी की होती है। वैसे वोट को पाने के लिए नेता रात- दिन क्षेत्र में मेहनत करते है। कड़ी धूप में भी पैदल चल कर मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने के लिए घर- घर जाकर वोट माँगते फिरते हैं। वोट माँगने में कोई चूक नहीं करते हैं। जैसे भी हो बस, वोट अपनी झोली में आनी चाहिए। जो जिस पार्टी या दल से होते हैं, वे उसी पार्टी या दल के लिए ज़ोर लगाते फिरते हैं। वोट के लिए वोटर को मनाना आसान काम नहीं। वोट माँगने में कहीं मतदाताओं का प्यार भी मिलता है तो कहीं बहुत कुछ उलटा- पुलटा सुनना भी पड़ता है। परंतु सब, बर्दाश्त करते हुए वोट की सफर चलता है। वोट के लिए नेता एड़ी- चोटी एक कर देते हैं। वातानुकूलित रहन सहन से निकल कर कड़ी धूप में मतदाताओं के दर- दर ठोकर खाते धूल फाँकते फिरते हैं, वोट की ऐसी महिमा। वर्ना सांसद और दिग्गज नेता वातानुकूलित वातावरण से निकलते हीं नहीं। इतना तय है जब मन मिलता है, तभी मत मिलता है। वर्ना लाख, उपाय कर लें, जनता मालिक वोट नहीं देती। जनता मालिक नेता के काम और चौकसी देखता है। उसका व्यवहार कुशलता समेत शासन प्रणाली देखती, और देखती है देशहित। वोटर सब कुछ परख कर, वोट समझ-बूझ कर करती है। बिडंबना ऐसी है मालिक बेचारा बन कर रह जाता है। और जिसे सेवक बनाता, वह बहुत आगे निकल जाता है। वह धन- दौलत- इज़्ज़त- शोहरत से लबालब भर जाता है। लोकतंत्र के धुरंधरों ने फिर पाँच साल में यदाकदा क्षेत्र में दर्शन दे जाते हैं। ऐसा हो जाता है प्रतिनिधि का व्यवहार। वहाँ दो नीति हावी हो जाती है। अवसर के बाद ऐसे हो जाते हैं सांसद या विधायक। वे बात काट कर निकलते हैं कि काम हीं इतना है कि क्षेत्र में भ्रमण का मौका हीं नहीं मिलता। ज़रा, सोचिए ! वोट लेने के लिए सभी काम छोड़ कर वोट के लिए हाथ जोड़े चले। कहते फिरे आपके बीच में हीं रहेंगे, परंतु जीतने के बाद वह सांसद या विधायक बहुत भाव खाने लगते हैं। जीतने के बाद बदल जाती है नेताओं की मूड। जनता मालिक के प्रति नज़रिया बदल जाती है। क्योंकि वोट लेने की नज़रिया अलग होती है और जीतने के बाद की नज़रिया कुछ और होती है। जो सौ प्रतिशत सही है। वोट के लिए नेताओं की मूड बिल्कुल अलग होती है। उनमें अधिक से अधिक वोट हासिल करने की बेचैनी होती है। परंतु जीतने के बाद वह बेचैनी ख़त्म हो जाती है और वे स्थिर हो जाते हैं। वे वोट की फ़ंडा से उबर जाते और सत्ता की आसमां में उड़ने लगते हैं। जनता मालिक बेचारा बन कर रह जाता है। परिस्थिति ऐसी हो जाती कि अपने सेवक नेता से मिलने के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता है, दुख तब ज़्यादा होता है, जब बड़ी आसानी से कह दिया जाता है नेताजी नहीं मिल पाएँगे, अभी बहुत व्यस्त हैं और उन्हें बाहर भी जाना है। अभी टाईम नहीं है उनके पास, जाइए ! बाद में आईएगा। उस वक़्त जनता मालिक पर पहाड़ टूट पड़ता है। कितनी इच्छा और आकांक्षा लिए जनता मालिक अपने नेता से मिलने जाते हैं। जननायक नेता बिरले कोई होता है। जो जनता को सर्वोपरि समझता है। वैसे जननायक नेता पहले जनता मालिक से मिलते तब कोई काम में जुटते। आज के नेताओं में स्वार्थपन की भाव ज़्यादा झलकती है। नेताओं में ऐसी विचित्र भाव पनपा है। वे मिलने- जूलने में भी राजनीति करते हैं। वैसे में वोट की सोच और राह अलग होती, जो सत्ता- सिंहासन देती। परंतु जननायक नेता बनना आसान नहीं। जिनके लिए वोट इंतज़ार करता है। जननायक नेता और अवसरवादी नेता में फ़र्क़ यही है। जिसके हृदय में हिन्दुस्तान की विशालता भरी होती है। नेता बनना आसान परंतु जननायक बनना मुश्किल। वैसे वोट की चोट पर देश की राजनीति टीकी है। क्योंकि वोट में सत्ता की महाशक्ति समाहित है। वह अनमोल रत्न है। जिसे मिल जाता वह देश का राजा बन जाता है। यही विशेष गुण है वोट की। वोट और सत्ता बड़ी मुश्किल से हासिल होती है, पीएम नरेंद्र मोदी वोट भी हासिल किये और सत्ता भी सच, मोदी राजनीति में महा माहिर हैं, धनुषधर अर्जुन की तरह। ऐसे संसद तक सिंहासन के साथ पहुंचे पीएम नरेंद्र मोदी। ऐसे दुबारा सत्ता हासिल किये पीएम मोदी, भारतीय संसद का गरिमा बढ़ाये हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी का फिर ज़िंदाबाद हो गया

अशोक कुमार अंज, लेखक- फ़िल्मी पत्रकार बाबू

लेखक,
अशोक कुमार अंज
फ़िल्मी पत्रकार बाबू, आकाशवाणी- दूरदर्शन से अनुमोदित
वजीरगंज, गया, बिहार 

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