सरस्वती पूजा मुख्य रूप से विद्या का महान पर्व
बसंत पंचमी से हुई होली की आगाज
गया : माँ शारदे वीणावादिनी हंसवाहिनी की पूजा- अर्चना धूमधाम से की गई। विद्यादायिनी सरस्वती की पूजा बसंत पंचमी के शुभ दिन पर किया गया। इस मौके पर सरस्वती की पूजा, साधना- आराधना भक्तों ने की। ख़ासकर विद्यार्थियों ने पूरे उमंग और उत्साह के साथ किया माँ शारदे की पूजा- आराधना। सरस्वती भक्तों ने माँ सरस्वती की उपासना जोशोखरोस के साथ किया। विद्या की ज्योति से भक्तों को प्रकाशवान एवं ऊर्जावान बनाएं। माँ शारदे सबों को सद्बुद्धि दें, यही कामना। जिससे देश सुखी हो, और समृद्ध हो, बस ! और किया।
माँ शारदे वीणावादिनी हंसवाहिनी की पूजा संपन्न |
इस अवसर पर लोगों ने वीणा पुस्तक धारणी की जगह- जगह मूर्ति स्थापित कर श्रद्धाभक्ति से सराबोर होकर उनकी पूजा की। सरस्वती पूजा मुख्य रूप से विद्या का महान पर्व है। जो अनोखा है। इसी दिन से होली की शुभारंभ होती है। क्योंकि बसंतोत्सव का आरंभ बसंत पंचमी के दिन से हीं माना जाता है। क्योंकि प्रकृति में भी नयापन होती है और लोकबाग ताजगी की अहसास करने लगते हैं। मौसम भी सुहाना हो जाता है। ना तो ज़्यादा ठंड होती है, और ना ज़्यादा गर्मी। मौसम बिल्कुल मनानुकूल होता है। वसुंधरा के चारो तरह हरियाली होती है। वहीं पेड़- पौधे नए- नए कोमल पत्तियों से लदे होते हैं। जो पतझड़ की प्रतीक है। समझो, तन, मन और बाग़- वन सभी के सभी हरियालीयुक्त होते हैं।
मधुर सुहावन हवा, गुनगुनी धूप बड़े अच्छे लगते। मन को भाते, सुहाना मौसम मनभावन, मनलुभावन होता है। ठिठुरन वाले ठंड से लोगों को निजात मिलती, ख़ुशनुमा मौसम आ धमकता है। समझो, बसंत आ गया। धरती हरियाली से भर जाती है। खेतों में झूम उठते सरसों के पीले- पीले फूल, गेहूँ-चना- मटर, गाजर, टमाटर फ़सल से गदरा उठती है वसुंधरा। इसी बीच शुरू होती है होली की आगाज। ढोलक पर थाप देकर लोग होली गायन करते झूम उठते हैं। जिससे तन- मन तरोताज़ा हो जाता है। इस मद मस्त मधुमास से होली की जवानी चढ़ने लगती है। लोग होली गायन कर हर्षित होते हैं। यही वजह है कि मन- मियाज एकदम सरस सराबोर हो जाता है। पुलकित हो लोग झूम उठते हैं। बसंतोत्सव मानव मन और धरती के कण- कण में समाहित हो जाता है। फागून मद मस्त महीना होता है। जिससे दिल- दिमाग ऊर्जांवित हो अहल्लादित होता है। प्रकृति सहित मानव मन खिलकर निखर उठती है।
गया ज़िले भर में धूमधाम के साथ मनी सरसवती पूजा, इसी के साथ संपन्न हुआ विद्या की देवी सरस्वती की पूजा और आरम्भ हुई होली। जाहिर हो होली फागुन के पवन मौके पर लोग सामूहिक रूप से बैठ कर होली गाते- बजाते हैं। समझो, लोग ख़ुशी से आनंद विभोर हो, गदगद होते हैं। फागुन की सरसता में लोकबाग गोता लगाते अघाते नहीं। सब के सब मधुमास की मादकता में एकदम सराबोर मदमस्त होते हैं। लोग जब एक स्वर में करते हैं, … होली हो…., तो दिल बाग-बाग हो, खिल उठता है। और शरीर ऊर्जान्वित हो, ऊर्जा से भर जाती है। और अब होली की धूम….
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