कोरोना महामारी काल में शिक्षा व्यवस्था चरमराई
अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है , शिक्षा के द्वारा ही बच्चे समाज के आधारभूत नियमों समाज के प्रतिमानों , व्यवस्थाओं एवं मूल्यों को सीखता है, और वह समाज के इतिहास में को जानकर समाज से जुड़ता है ।
वास्तव में शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व को विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है।
शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया।
शिक्षा शब्द का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है,
1.व्यापक रूप में
2.संकुचित रूप में
व्यापक अर्थ में : शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है।
संकुचित अर्थ में : शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा विद्यार्थी निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर संबंधित परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है।
इस कोरोना महामारी के समय शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है, विशेषकर प्राइमरी शिक्षा । माध्यमिक और उच्च शिक्षा में तो बच्चे ऑनलाइन ऐप दूरदर्शन या अन्य माध्यमों से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं इसके लिए सरकार के द्वारा दी जाने वाली दूरदर्शन पर शिक्षा दीक्षा ऐप उन्नयन योजना ऐप यूट्यूब टीचर्स ऑफ बिहार जो एक सरकारी शिक्षकों का समूह है उसके द्वारा भी फेसबुक पर लाइव कक्षाएं स्कूल ऑन मोबाइल कार्यक्रम इत्यादि प्रारंभ किए गए है परंतु इन सब से समुचित शिक्षा नहीं मिल पाती है ।
समुचित शिक्षा के लिए शिक्षा के दोनों को व्यापक और संकुचित का समन्वय अति आवश्यक है ।
आज की शिक्षा नीति के अनुसार जो निर्धारित पाठ्यक्रम है उसे पूरा करना आवश्यक है । सभी बच्चों के पास ना तो टेलीविजन है नहीं एंड्राइड मोबाइल नेटवर्क भी सही से नहीं मिल पाता है ना कोई अन्य साधन जिससे वे इस शिक्षा की नई तकनीकी को पूरा कर पाए। आखिर बच्चे अपने पाठ्यक्रम को किस प्रकार पूरा कर सकेंगे ।
दूसरी तरफ सरकार (शिक्षा विभाग) सारी बोर्ड परीक्षाओं के फार्म भरवाने में व्यस्त है नामांकन जारी है आखिर बच्चे बिना पढ़े किस प्रकार परीक्षा देंगे वह पूरे साल भर की पढ़ाई चार-पांच महीने में किस प्रकार पूरा कर पाएंगे । यह विकट समस्या बच्चों और अभिभावकों के सामने तो है ही साथ ही साथ शिक्षक भी यह सोच कर परेशान हो रहे हैं कि आखिर किस प्रकार बच्चे को परीक्षा के योग्य बनाया जा सके ।
सीबीएसई ने अपने सिलेबस को 30% कम कर दिया है फिर भी यह पाठ्यक्रम 4 से 5 महीने में पूरा नहीं होगा । तथा यह बात भी विचारणीय है की कम सिलेबस पढ़ने वाले बच्चों को आगे कठिनाई का सामना तो करना पड़ेगा ही जिस पाठ्यक्रम को वह नहीं पढ़ पाए हैं उसकी जानकारी तो उन्हें नहीं हो पाएगी और कहीं ना कहीं तो पिछड़ेंगे ही तो फिर ऐसी परीक्षा से क्या फायदा सिर्फ कक्षाएं बढ़ाने से हम किसी को ज्ञानी नहीं बना सकते ।
आखिर कुछ सोच कर ही अमेरिका जैसे विकसित देश अपने पाठ्यक्रम को 1 साल के लिए रोक दिया फिर ऐसा प्रयोग हमारे देश में क्यों नहीं ?
हमें कुछ ना कुछ तो अवश्य करना होगा जिससे न तो बच्चों पर अतिरिक्त बोझ पड़े ना ही उनका समय बर्बाद हो। वह शिक्षित भी हो स्वस्थ रहें और सजग रहें इसके लिए शिक्षाविदों को प्रयास करना चाहिए
लेखक,
आचार्य गोपालजी
बरबीघा, शेखपुरा
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