नागार्जुन विश्व दृष्टि के मूल कवि : डा. शीतांशु
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हिन्दी विभाग विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद और विश्व संस्कृत हिंदी परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में जनकवि नागार्जुन की 110वीं जयंती के अवसर पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल संगोष्ठी का हुआ आयोजन।
जनकवि नागार्जुन: 110वीं जयंती अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी |
मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुए डा. शीतांशु ने कहा कि नागार्जुन की कविता जन मन से जुडी हुई है और उसमें गहरी संवेदना है। नागार्जुन विश्व दृष्टि के मूल कवि हैं।बीज वक्तव्य देते हुए डा जे बी पाण्डेय ने कहा कि नागार्जुन सही मायने में भारत के जनकवि हैं।नागार्जुन के रचनाकार का व्यक्तित्व बहुआयामी और बहुस्तरीय है। नागार्जुन का लेखन मार्क्स वादी दर्शन से प्रभावित होने के साथ साथ बौद्ध मत की करुणा, मैत्री और मानववादी दृष्टि से भी प्रभावित परिचालित है। उनकी निष्ठा समाजवाद और जनतंत्र में है। अध्यक्षता कर रहे प्रो अजीत कुमार वर्मा ने कहा कि जनताके पक्ष में कविताएं लिखने वाले और भी हैं लेकिन जनता को अपने में आत्मसात् कर कविता लिखने वाले नागार्जुन अपने ढंग के अकेले कवि हैं। जन कवि नागार्जुन के सुपुत्र शोभाकांत मिश्र ने अपने पिता से संबंधित अनेक संस्मरण सुनाए।पोलैंड से जुडे डा सुधाशु कुमार शुक्ल ने नागार्जुन बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार हैं और उनकी लेखनी में तलवार की धार है। डा. देवेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा नागार्जुन की भाषा में नाटकीयता और व्यग्यं है।
उन्होंने कहा कि भाषा दो प्रकार की होती है काव्यात्मक और सामान्य।सामान्य भाषा को काव्यात्मक संवेदना की भाषा बनाने वाले तीन महाकवि हुए:कबीर निराला और नागार्जुन।लेकिन स्वतंत्रता पुकारती जैसा स्वर नागार्जुन में नहीं है। डा. संध्या प्रेम ने नागार्जुन को जनता का कवि कहा। कर्नल एम के सिंह, डा. जनार्दन मिश्र और डा. अमरेंद्र कुमार सिन्हा ने भी नागार्जुन को हिन्दी का बडा कवि बताया।
उद्घाटन करते हुए कुलपति डा अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि नागार्जुन हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं।आगत अतिथियों का भव्य स्वागत डा एस.एन.पी टंडन (अध्यक्ष हिन्दी विभाग)ने किया। सरस्वती वंदना सुश्री श्रृतुजा मिश्रा, कार्यक्रम का सुन्दर संचालन डा सुनीता कुमारी तथा शानदार धन्यवाद ज्ञापन डा रीता सिंह ने किया। समवेत राष्ट्र गान से समापन हुआ।
मुख्य वक्ता डा. सतीश कुमार राय ने कहा नागार्जुन प्रति हिंसा को अपनी कविता का स्थायी भाव मानते हैं। समाज की हर विषमता हर असंगति की ओर उनकी दृष्टि जाती है और वे उसपर चोट करते हैं। कविता एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की बात हमने बहुत बार सुनी है लेकिन उसका सबसे सचेष्ट और सबसे प्रभावी प्रयोग हिंदी में नागार्जुन ने ही किया। उन्होंने कहा:-
जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊं?
जनकवि हूं मैं साफ कहूंगा, क्यों हकलाऊं?
अध्यक्षता कर रहे डा. तालकेश्वर सिंह ने कहा नागार्जुन सच्चे अर्थो में स्वाधीन भारत के प्रतिनिधि जनकवि है। किसानों और मजदूरों पर चलने वाली बंदूक का नागार्जुन ने अपनी कविताओं में विरोध किया:-
खडी हो गई चांप कर, कंकालों की हूक।
नभ में विपुल विराट सी, शासन की बंदूक।
जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक।
बाल न बांका कर सकी, शासन की बंदूक।
डा. राम रत्न सिंह रत्नाकर ने कहा नागार्जुन ताजीवन किसान, मजदूर और सर्वहारा वर्ग के पक्ष में लिखते रहे और संघर्ष करते रहे।
इस सत्र में डा. दिलीप गिरि, डा. अवधेश प्रसाद पाण्डेय, डा. शिवनंदन प्रसाद सिन्हा, डा. पुष्पिता अवस्थी, डा. कुमार वीरेन्द्र आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। आगत अतिथियों का भव्य स्वागत डा. मुकुंद रविदास ने किया। सरस्वती वंदना डा. प्रियंका कुमारी, कुशल संचालन डा. कुमुद कला मेहता और धन्यवाद ज्ञापन डा. मृत्युंजय कुमार सिंह ने किया।प्रो नागेंद्र नारायण ने तकनीकी सहयोग प्रदान कर संगोष्ठी में चार चांद लगा दिया तथा समग्र आभार प्रकट किया।