मृदा एवं जल-संरक्षण की दिशा में सैनिक स्कूल नालंदा की अनूठी पहल
सिलाव, नालंदा (बिहार) : देश वैश्विक महामारी कोविड-19 की दर्दनाक पीड़ा झेल रहा है, प्रतिदिन हजारों लोग असमय काल के गाल में समाहित हो रहे हैं |
ऐसे में भारतीय सशस्त्र सेना एवं उसके विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रत्येक स्तर पर खुल कर मदद पहुँचाई जा रही है | पूरे देश में चाहे कोविड अस्पताल हो, ऑक्सीजन की आपूर्ति हो या सेना के डॉक्टर या नर्सिंग स्टाफ हों, कश्मीर से कन्याकुमारी तक विभिन्न राज्य-सरकारों के कंधे से कंधा मिलाकर देशभक्ति एवं राष्ट्र-रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साकार कर रहे हैं |
हम बात करेंगे बिहार राज्य में स्थित ऐसे ही एक संस्थान सैनिक स्कूल नालंदा के बारे में, जो बिहार की राजधानी पटना से 100 कि० मी० की दूरी पर नालंदा जिले में स्थित है |
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यह विद्यालय, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से 7 कि० मी० पूर्व नानंद ग्राम पंचायत में पंचाने नदी के तट पर स्थित है | इस प्रीमियर संस्थान की स्थापना वर्ष 2003 में तत्कालीन रक्षा-मंत्री के कर-कमलों से हुई थी | इसका मुख्य उद्देश्य बिहार अधिवास के छात्रों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से तैयार कर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए तैयार करना, जहाँ से प्रशिक्षण पाकर ये छात्र भारतीय सशस्त्र सेना के अधिकारी संवर्ग में सम्मिलित हो देश को अपनी सर्वोच्च सेवायें प्रदान करते हैं | सैनिक स्कूल नालंदा में अध्ययनरत छात्रों को त्याग, समर्पण, बलिदान एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं संवर्धन का प्रशिक्षण बाल्यकाल से दिया जाता है |
सैनिक स्कूल परिसर एवं पंचाने नदी के बीच स्थित भूखंड में अवैध बालू खनन के कारण समतल भूमि बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो गयी है, जिससे पंचाने नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है | आम तौर पर लोग सोचते हैं कि पर्यावरण की समस्या केवल प्रदूषण है और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएं शहरों के मुकाबले कम हैं परन्तु असलियत ठीक इसके विपरीत है | जब अवैध खनन के कारण जल,जंगल,जमीन और जन के बीच का रिश्ता और संतुलन बिगड़ जाता है तो पर्यावरण पर संकट माना जाता है और इससे न केवल प्रकृति बल्कि मानव जीवन, समाज,अर्थव्यवस्था तथा यहाँ तक की हमारे मनोविज्ञान पर भी असर पड़ता है | देश के जिम्मेदार नागरिक इसकी अनदेखी नहीं कर सकते | यदि इस भूखंड को समतल कराकर एवं पंचाने नदी में जल संग्रह कर झील के रूप में विकसित किया जाय तो न केवल भूमिगत जल स्तर में सुधार हो बल्कि इस क्षेत्र के सुन्दरीकरण से नौका-विहार, घुड़सवारी की व्यवस्था कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है |
इस क्षेत्र में भूमि के कटाव को रोकने की दिशा में 05 जून अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर सैनिक स्कूल नालंदा के सैन्य-छात्रों एवं समस्त विद्यालय परिवार के सदस्यों द्वारा उक्त भू-खंड पर फलदार वृक्षों का पौध-रोपण कर मृदा-संरक्षण की दिशा में एक अनोखी पहल की जा रही है | वृक्षारोपण कार्यक्रम के माध्यम से सैनिक स्कूल नालंदा परिवार, पद्मविभूषण महान पर्यावरणविद स्व० सुन्दरलाल बहुगुणा को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहा है ज्ञात हो कि विगत 21 मई को चिपको आन्दोलन के प्रणेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री सुन्दरलाल बहुगुणा का निधन हो गया था | इस कार्यक्रम के द्वारा आस-पास के ग्रामीणों को अपने पर्यावरण एवं प्रकृति की संरक्षा के प्रति जागरूक रहने का सन्देश भी दिया जा रहा है |