स्वास्थ्य एवं शिक्षा : हमारी प्राथमिकताएं
स्वास्थ्य एवं शिक्षा मनुष्य की दोनों आवश्यक अंग है । मनुष्य को स्वस्थ रहना जिस प्रकार अति आवश्यक है, उसी प्रकार शिक्षित होना भी अति आवश्यक है । कहा गया है- ” स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है”।
इसलिए प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों पर समान रूप से ध्यान दिया जाता था ; और आज भी यही स्थिति है । हमारी शिक्षा व्यवस्था भी इसी प्रकार होनी चाहिए, जिसमें कि हम स्वास्थ्य की शिक्षा भी प्राप्त कर सकें ।
पहले स्वास्थ्य का मतलब केवल शरीर को अच्छी तरह से कार्य करने की क्षमता होता था। ज्यादातर लोगों का मानना था कि केवल शारीरिक दिक्कत या बीमारी के कारण परेशानी का सामना करना ही अस्वस्थ है। हमारे देश की स्वतंत्रता के ठीक 1 साल बाद 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहां की किसी व्यक्ति की संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति उन्नत होना स्वास्थ्य है ; सिर्फ बीमारी का ना होना स्वास्थ्य नहीं है। यही परिभाषा कुछ लोगों द्वारा स्वीकार कर ली गई , लेकिन इसकी काफी हद तक आलोचना की गई थी। यह कहा गया था कि स्वास्थ्य की यह परिभाषा बेहद व्यापक है और इस तरह इसे सही नहीं माना गया। इसे अव्यवहारिक मानकर खारिज कर दिया गया । 1980 में स्वास्थ्य की एक नई अवधारणा लाई गई। इसके तहत स्वास्थ्य को एक संसाधन के रूप में माना गया है और यह सिर्फ एक स्थिति नहीं है।
“आज किसी को स्वस्थ तब माना जाता है जब वह अच्छा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा है।”
यदि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा है तो वह जीवन में विभिन्न कार्यों को पूरा करने के लिए सक्षम और उत्साही भी होता है ।
कोई व्यक्ति जो शारीरिक रूप से अयोग्य है , वह अपने आप की देखभाल भी अच्छी तरह से नहीं कर पाता है, तो भला परिवार की देखभाल कैसे कर सकेगा । इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति मानसिक तनाव का सामना कर रहा है ; और अपनी भावनाओं को संभालने में अक्षम है, तो वह परिवार के साथ अच्छे रिश्ते कैसे बना सकता है ; वह परिवार को खुश कैसे रख सकता है ?
वास्तव में एक शारीरिक रूप से अयोग्य व्यक्ति ठीक से काम नहीं कर सकता । कुशलतापूर्वक काम करने के लिए अच्छा मानसिक स्वास्थ्य अति आवश्यक है । काम पर पकड़ बनाने के लिए अच्छे सामाजिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य भी अति आवश्यक है।
जीवन को सुसंस्कृत और सुचारू रूप से चलाने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है । शिक्षा मानव को एक अच्छा इंसान बनाती है। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। अतः शिक्षा कौशलों, व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। समाज एक पीढ़ी से अपने ज्ञान को दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करने का प्रयास ही शिक्षा है
अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है , शिक्षा के द्वारा ही बच्चे समाज के आधारभूत नियमों समाज के प्रतिमानों , व्यवस्थाओं एवं मूल्यों को सीखता है, और वह समाज के इतिहास में को जानकर समाज से जुड़ता है ।
वास्तव में शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व को विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है।
*शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया।*
व्यक्ति को अपने सुखद और समुन्नत भविष्य के लिए स्वास्थ्य शिक्षा दोनों की आवश्यकता होती है । एक पुरानी कहावत है :- “पहला सुख निरोगी काया” । और यह तभी संभव है जब हम शिक्षा के साथ-साथ अपने समय को नियम बद्ध कर व्यायाम करें और अपने स्वास्थ्य ध्यान दें। स्वस्थ शरीर से ही मानसिक क्षमता का विकास संभव है । यह बहुत जरूरी है की प्रत्येक शिक्षण संस्थान में खेल प्रवृत्तियों का संचालन नियमित हो और बालक अपनी रूचि और क्षमता के अनुसार सहभागिता ग्रहण करें ।
यदि किसी व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य उन्नत नहीं है तो उसके अध्ययन में यह एक बड़ी बाधा है। अच्छी तरह से अध्ययन करने के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के अलावा संज्ञानात्मक स्वास्थ्य बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।
हमें अपने जीवन को सफल बनाने के लिए अपने स्वास्थ का ध्यान रखना अति आवश्यक है । जब हम स्वस्थ होंगे तो अपने जीवन के अन्य पहलुओं की भी देखभाल करने में सक्षम होंगे । तथा यदि हम शिक्षित होंगे तो ही हमारा समुचित विकास हो सकता है । और हम समुन्नत तथा सफल हो सकते हैं। हम शिक्षित होंगे तो हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा होगा ; और जब हम स्वस्थ होंगे तभी शिक्षित हो पाएंगे ।
प्राथमिकता का विचार करें तो दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मनुष्य शिक्षित और स्वस्थ हो तो वह सब कुछ पा सकता है जो उसके लिए आवश्यक है ।
अत: हम कह सकते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य में अन्योनाश्रय संबंध है ।
आचार्य गोपाल जी
उर्फ
आजाद अकेला बरबीघा वाले