Bihar servant’s confidence weakens
बिहार सेवक का आत्मविश्वास हुआ कमजोर
Advertisement
वैश्विक महामारी के दौर में कोरोना का अचूक दवा है लॉकडाउन
गया : जब आत्मबल कमजोर हो जाता है, तब विचार मंथन ज़्यादा होता है। क्योंकि खुद निर्णय लेने की क्षमता खत्म हो जाती है।
ठीक, यही वाक्या बिहार में लॉकडाउन लगाने को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। पहले के अपेक्षाकृत मुख्यमंत्री नीतीश का आत्मबल अब बहुत ही कमजोर हो चुका है। यही वजह है कि वे खुद निर्णय लेने के लायक़ नहीं। अपनी राय से अधिक दूसरे सहयोगियों के निर्णय पर भरोसा करते हैं। जो उनकी कमजोरी की हीं प्रतीक है। जो साबित करता है कि मुख्यमंत्री का आत्मबल अब रसातल में चला गया है। जब खुद फ़ैसले लेने की हिम्मत टूट जाय तो समझो, वैचारिक शक्ति से मुख्यमंत्री कमजोर हो चुके हैं, इसमें कोई दो राय नहीं।
अब तक जितने भी कोरोना गाइडलाइन सरकार की ओर से दी गई है। वह उतनी असरदार नहीं, जीतनी होनी चाहिए। वह दिशा- निर्देश कोरोना के चैन को तोड़ने में बहुत कारगर साबित नहीं हो रहा है। यह सभी जानते हैं। कोरोना संक्रमण को नाश करने के लिए कठोर विकल्प रूपी- लॉकडाउन की ज़रूरत है।
बिहार सेवक को बिहार में अनिवार्य रूप से कुछ दिनों के लिए लॉकडाउन लगानी चाहिए। बिहार को बचाने के लिए लॉकडाउन जरूरी है। लॉकडाउन लगाने में मुख्यमंत्री नीतीश, ना जानूँ ! क्योंकि पिछड़ रहे हैं। अग्र सोची मुख्यमंत्री की विचार रसातल में क्यों जा रहा है। यह बड़ा चिंतनीय विषय है ही, दुखदायी भी।
बिहारवासियों के हित के लिए लॉकडाउन आवश्यक है। इसे नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए।
यह महामारी जीवन के आर-पार की लड़ाई है। ऐसी विकट संकट भरी विपती की घड़ी में मुख्यमंत्री यानि बिहार के प्रधान सेवक को सृष्टिकर्ता जगतपिता बाबा विश्वकर्मा सदबुद्धि दें, यही कामना।
बिहार में लॉकडाउन प्रभावी हो, जिससे प्रदेश सुरक्षित हो। बस, उन से यही गुज़ारिश, और क्या।
वैश्विक महामारी के दौर में कोरोना का अचूक दवा है लॉकडाउन। जिससे कोरोना संक्रमण का चैन टूटता है और उसका खतरा टलता है।
फिर भी बिहार में लॉकडाउन लगाने से क़तरा रहे हैं मुख्यमंत्री। जो कमजोर आत्मबल का निशानी है।
अक्षरजीवी,
अशोक कुमार अंज, वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट, गया, इंडिया
Presentation➖ AnjNewsMedia