कविता
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॥कण- कण में वही॥
सब करिश्मा है बाबा विश्वकर्मा की
तक़दीर रचते भी वही
मिटाते भी वही
जीवन में भटकते राह तो,
सही मार्ग सुझाते भी वही
ज़िंदगी को उलझाते भी वही
और वक़्त पर सुलझाते भी वही
विकट संकट की घड़ी में
वे प्रभु नज़र आते तो नहीं
पर अनवरत सहयोग
करते भी वही
ऐसी अपरंपार महिमा उनकी
कण- कण में बसते वही
प्राणवायु उन्हीं का धरोहर
जब चाहते ले लेते वही
वे हैं तारण हार
सबों को तारते भी वही
➖अक्षरजीवी,
अशोक कुमार अंज
वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट
लेखक-कवि- फिल्मी पत्रकार बाबू
वजीरगंज, गया, इंडिया