Filmi Interview

रंगमंच की दुनियाँ

संघर्ष करने की पूरी आज़ादी

करियर जिस स्तर है उसके सिर्फ तीनकारण हैं एक तो मेरे वो दोस्त जो मुझे पैसे उधार देने से थके नहीं दूसरा मेरा जुनून और तीसरी जो वजह थी वो मेरी फैमली जिन्होंने मुझे संघर्ष करने की पूरी आज़ादी दी 

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Filmi Interview, anjnewsmedia onlineक्या आप जानते हैं कि मांझी द माउंटेन मैन कबाड़ द कॉइन, दशहरा और गुलमोहर 

लेखक अभिनेता शहज़ाद अहमद सपनों के शहर मुबई मात्र पैत्तिस सौ रूपये लेकर आये थे वो भी अपने गाँव के एक आदमी से उधार लेकर  वर्ल्ड रिकार्ड् पत्रकार अशोक कुमार अंज एक खास बातचीत फिल्म लेखक अभिनेता शहज़ाद अहमद के साथ 

शहज़ाद सबसे पहलेआप मुझे ये बताइये कि आप कहाँ के रहने वाले हैं-                                                

मूलरूप से मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ इलाहाबाद और बनारस के बीच में एक छोटा सा ज़िला है भदोही जो कि कारपेट सिटी के नाम से जाना जाता हैद्य ज़िले में कई सारे ब्लॉक हैंद्य मैं वहाँ के ज्ञानपुर ब्लॉक का रहने वाला हूँ 

आपकी स्कूलिंग वगैरह वहीं पर हुई थी या फिर कहीं और

देखिये मूलरूप से मेरी स्कूलिंग भदोही में ही हुई है वहीँ के सरकारी स्कूल से मैंने हाई स्कूलए इंटर और ग्रेजुएशन किया हैद्य बाद में मुझे जब महसूस हुआ कि मुझे कला के क्षेत्र में जाना है तब मैंने दिल्ली और हिमाचल प्रदेश मंडी के लिए रुख किया

आपको कैसे लगा कि आपको कला के क्षेत्र में जाना है

दरअसलए कला के तरफ मेरा झुकाव बचपन से ही थाद्य मैं हमेशा कुछ न कुछ ऐसा करने की कोशिश करता रहता था जिससे कि लोग मेरी तारीफ करें तालियाँ बजाएं मैं कला के क्षेत्र में जाने के लिये सिरियस तब हुआए जब सन 2001 में मेरे एक सिनिअर स्वतंत्र मौर्य ने मुझे सलाह दिया श्तुम बेकार में यहाँ अपना टाइम खराब कर रहे होण्ण्ण्फिल्मों में जाओण्ण्ण्ड्रामा ज्वाइन करोण्ण्ण्कुछ अच्छा करो यार उस दिन से मेरे अंदर एक प्रोफेशनल कलाकार जन्म लेने लगा 

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तो फिर आपने उस कलाकार कैसे दिशा दिया आपको कैसे पता चला कि कहाँ जाना चाहियेघ् या फिर किसी ने आपका मार्गदर्शन किया 

ये बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है मेरी ज़िन्दगी में दो चीज़ों को हमेशा अभाव रहा हैद्य पहला मार्गदर्शन और दूसरा पैसों का  दरअसल मेरे आसपास ज़िलास्तरए ब्लॉकस्तर पर या दूर दूर तक ऐसा कोई व्यक्ति था नहींए जिससे मुझे कोई मार्गदर्शन मिल सकेद्य अब ले देकर बात आती है घर की तो वहाँ तो बहुत अँधेरा था अम्मा मेरी कपड़े साफ़ करती थी और अब्बा मेरे कपड़ों को आयरन करते थे

 उनसे तो इस तरह के सवाल का ज़िक्र करना ही जायज़ नहीं था  दरअसल होता क्या है कि जब आपके पास कोई सोर्सेस नहीं होते हैं तो आपकी कल्पना शक्ति बहुत चरम पर होती हैद्य आप उसको जानने समझने की बार बार कोशिश करते हैं और कहीं न कहीं जाकर आप टच कर ही जाते हैं 

मैं क्या करता था कि अख़बारों में कलाकारों के इंटरव्यू पढ़ा करता था या फिर अख़बार में विकली एक करियर दर्शन आता था जिसको मैं याद करके पढता थाद्य उसमें ठछ।ए छैक्ए श्रीराम सेंटर और तमाम इंस्टिट्यूटस के ज़िक्र होते थे

जिसको मैं नोट करके रखता जाता था वही एक ज़रिया था जहाँ से मुझे पता चला कि इस तरह के तमाम इंस्टिट्यूटस हैंए जहाँ से जुड़कर कलात्मक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैद्य अपनी कलात्मक प्रतिभा को बढाया जा सकता है

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जैसा कि आपकी फिल्मोग्राफी देखने से पता चलता है कि आप ड्रामा स्कूल मंडी का स्टूडेंट रहे हैं तो भदोही उत्तर प्रदेश से ड्रामा स्कूल मंडी कैसे पहुँचेद्य वो कैसा सफर था आप हमें कुछ बताइये

बहुत इंट्रेस्टिंग सवाल है आपकाण्ण्ण्दरअसल मैं सबसे पहले ठछ। गया थाद्य क्योंकि लखनऊ मेरे घर से नज़दीक था

वहाँ से मुझे ये पता चला कि मैं जिस इंस्टिट्यूट में एडमिशन लेना चाहता हूँ दरअसल मैं उसके काबिल नहीं हूँद्य उतनी मुझमें योग्यता नहीं है

मगर मुझे वहाँ एक विनोद नाम के लड़के ने सलाह दिया कि तुम दिल्ली चले जाओ वो तुम्हारे लिए अच्छी जगह रहेगी जहाँ से तुम काफी कुछ सीख सकते होद्य मैं लखनऊ से लौट आया और दिल्ली जाने के लिए बहुत बेचैन हो गयाद्य मैंने अपने अब्बा से तीन पाँच सौ रूपये लिये और कुछ पैसे मैंने अपने एक दोस्त से उधार लिये और मैं दिल्ली चला आया  

मैं किसी को नहीं जानता था दिल्ली में पर वही बात है जो खोजने के लिए निकल जाता है उसको कुछ न कुछ तो मिल ही जाता है सबसे पहले मैंने दिल्ली में एक नौकरी ज्वाइन किया

अपने रहने की व्यवस्था कियाद्य ताकि अपनी आर्थिक स्थिति को बैलेंस कर सकूंद्य  उसके बाद मैं रंगमंच से जुड़ गयाद्य मैं दिनभर जॉब करता थाद्य शाम को रिहर्सल किया करता था

मैं कई सालों तक अलग अलग ग्रुपस के साथ जुड़कर रंगमंच करता रहाद्य मैंने काफी सारे नाटक कियेद्य मुझमें काफी आत्मविश्वास आ गयाद्य सन 2002 में मेरा एक दोस्त था सज्जाद जिसने मुझे सलाह दिया ड्रामा स्कूल मंडी जाने के  लिए और वहाँ के पास आउट जो लड़के थेए उनसे मुझे मिलवाया जो कि काफी अच्छा काम कर रहे थेद्य मैं उनसे काफी प्रभावित हो गयाद्य 2002 में मैंने ड्रामा स्कूल मंडी के लिये अप्लाई किया और मेरा सेलेक्शन हो गया

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लेखक अभिनेता

ड्रामा स्कूल मंडी में सेलेक्शन होनाद्य मेरी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत लम्हां थाद्य सबसे ख़ुशी का पल थाद्य और मेरी ज़िन्दगी का मेरे द्वारा लिया गया सबसे अच्छा फैसला थाए जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नई दिशा दी

ड्रामा स्कूल में ऐसा क्या सीखा आपने जो कि काफी सालों तक आप अन्य रंगमंच के संस्थान से जुड़े रहे और नहीं सीख पाए थेण्ण्ण्आपको ड्रामा स्कूल मंडी जाना पड़ा

वहाँ मुझे काफी कुछ सीखने का मौका मिला मेरे लिए वो दुनियाँ की सबसे खुबसुरत जगह थीए जितना की मैं अपनी पीछे की जिंदगी में बीस पच्चीस सालों में नहीं सीख पाया था दरअसल वो एक प्रोफेशनल जगह हैद्य मूलरूप से ड्रामा स्कूल ड्रामेटिक फॉर्म में डिप्लोमा देता है

खासकर अभिनय में स्पेशलायजेशन करवाता है मगर साथ ही साथ रंगमंच की जितनी भी टेक्निक हैं लाइटिंगए कॉस्टयूमए मेकअपए लेखनए क्राफ्टिंग सारे विषयों पर अध्ययन करवाता है इसके अलावा वहाँ से मुझे विश्व साहित्यए भारतीय साहित्य और कला की बारीकियों को सीखने का मौका मिला

इन सब में जो सबसे बड़ी बात थी वो ये कि मैं ड्रामा स्कूल ने मुझे एक अच्छा इंसान बनाया वो इन्सान जिसके बारे में इससे पहले में नहीं जानता थाद्य वहाँ बहुत अच्छे अच्छे टीचर्स के साथ काम करने का मौका मिला सुरेश शर्माए हरीश खन्नाए अश्वत भट्ट यशराज जाधव ये सभी राष्ट्रीय स्तर के टीचर हैंए जिनके साथ काम करने के बाद मेरी दुनियाँ के देखने को नज़रिया बदल गयाद्य कला के प्रति नज़रिया बदल गया

आपने कहा था दिल्ली में आप थे तो जॉब के साथ रंगमंच करते थे जिससे आप अपनी आर्थिक स्थिति को बैलेंस कर लेते थे मगर ड्रामा स्कूल में आपने कैसे किया जबकि वहाँ फुल टाइम कोर्स था

फाइनेंसियलीए ड्रामा स्कूल का टाइम बहुत डिफिकल्ट था हमारे लियेए उसकी वजह ये थी मेरे पास सिर्फ पहले इन्सटॉलमेंट के पैसे थे जो कि मैंने भर दिया था

 जैसा कि चार इन्स्टालमेन्ट में पैसे देने थे कुछ दिन तक तो बहुत अच्छा चला लेकिन दुसरे इन्सटॉलमेंट देने का समय आया तो मैं काफी उलझ गया क्योंकि पैसे मेरे पास थे नहींद्य मैंने अपने अब्बा को फोन किया

उन्होंने जैसे तैसे करके पैसा भेजा मगर तीसरे इन्स्टालमेन्ट में मैं बहुत बुरी तरह से उलझ गयाद्य मैंने काफी कोशिश किया पैसा अरेंज करने की लेकिन नहीं हो पायाद्य मेरे अब्बा ने भी काफी कोशिश किया उनसे भी नहीं हो पायाद्य मुझे इंस्टिट्यूट से निकालने की वार्निंग मिल चुकी थी

मैने अपने अब्बा को कॉल किया और रोने लगाद्य उन्होंने अपनी ज़मीन गिरवी रखकर मुझे पैसा भेजा फिर जाकर तीसरे इन्स्टालमेन्ट की फ़ीस जमा कर पाया मगर चौथा इन्स्टालमेन्ट की फ़ीस न तो मैं दे पाया और न ही मेरे अब्बा से प्रबंध हो सकाद्य मुझे इंस्टिट्यूट से निकाल दिया गया

आपको जानकर करके हैरत होगी कि एक साल में मुझे इंस्टिट्यूट से फीस के लिए तीन बार निकाला गयाद्य तीसरी बार मैं बहुत शर्मिन्दा हो गयाद्य मैंने तय कर लिया अब मैं इंस्टिट्यूट में नहीं रहूंगा और अपना बोरिया बिस्तर बांधने लगा

तभी मेरा एक क्लासमेट आया मनीष जोशी जो कि अभी बहुत बड़ा रंगकर्मी हैद्य उसने बोलाद्यश्मैं तेरे को जाने नहीं दूँगाद्यश् बेसिकली छ हज़ार मुझे फ़ीस जमा करनी थीद्य मनीष ने सारे लड़कों से दो दो सौ रूपये चंदा लगाये

चार हज़ार रूपये जमा किये और दो हज़ार रूपये उसने सीमा शर्मा जो कि इंस्टिट्यूट की एडमिनिस्ट्रेशन हेड थी उनसे लड़कर छुड़ा लियाद्य इस तरह से मेरा ड्रामा स्कूल को कोर्स पूरा हुआद्य मेरी ज़िन्दगी में मेरे दोस्तों का बहुत बड़ा योगदान रहा है

आज मेरा करियर जिस स्तर हैए उसके सिर्फ तीन ही कारण हैंद्य एक तो मेरे वो दोस्त जो मुझे पैसे उधार देने से थके नहींद्य दूसरा मेरा जुनूनऔर तीसरी मेरी फैमली जिन्होंने मुझे संघर्ष करने की पूरी आज़ादी दी

जैसा कि मेरा अनुभव रहा है कि जो लोग ईमानदारी से संघर्ष करते हैं यूनिवर्स की एक शक्ति हमेशा उनके साथ होती है दोस्त के रूप मेंए अनजान व्यक्ति के रूप मेंए सलाहकार के रूप में या फिर किसी और रूप में उनका मार्गदर्शन करती रहती हैद्य मैं अपने दोस्तों को उन्हीं में से एकशक्ति मानता हूँए जिन्होंने हर वक़्त मेरा साथ दिया

प्रशिक्षण आपने ड्रामाध्रंगमंच का लिया फिर फिल्मों के तरफ आपका रुख कैसे हो गया जबकि अभी रंगमंच में अभी काफी स्कोप है सरकारें आर्ट एंड कल्चर के बढ़ावा देने के लिये काफी फंडिंग कर रही है

आपका सवाल काफी उम्दा है मेरे कई सारे दोस्त हैं जो रंगमंच की दुनियाँ में काफी अच्छा काम कर रहे हैंद्य उनके रंगमंडल हैं उनके इंस्टिट्यूट हैंए मगर फोकस पहले से ही सिनेमा के फिल्ड में जाने का था मैंने रंगमंच ज्वाइन ही इसलिये किया था कि मुझे सिनेमा के फील्ड में जाने का मौका मिले मैं कला की बारीकियों को अच्छे से सीख सकूँ आपको जान करके हैरत होगी कि इंस्टिट्यूट से पास आउट होने के ठीक एक महीने बाद बिना किसी चीज़ का इंतज़ार किये मैंने अपने दो दोस्तों से थोड़े थोड़े पैसे उधार लिये पैत्तिस सौ रूपये लेकर मुंबई के लिए रवाना हो गया 

– Presentation AnjNewsMedia




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