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 गया में बारहो मास पिंडदान

आलेख लेखक : अशोक कुमार अंज 

बिहार प्रदेश के गया विष्णुपद स्थित फल्गुतट स्मृतियों का तीर्थ स्थली है। जहां पिंडदान के माध्यम से पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है। यहां बारहो मास पिंदादन का सिलसिला जारी रहता है। यह मोक्षधाम फल्गु नदी के तट पर अवस्थित है। जो अतिप्राचीन है। हिंदूओं का पिंडदान महान पितृपर्व है। यहां भक्तिमय वातावरण कायम है।

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विष्णुपद पिंडवेदी : पिंडदान करते राज्यपाल फागू चौहान

गया धर्म का गढ़ है। जो अनोखी है। गया पावन कल्याणकारी स्थल है। देव घाट में पिंडदानियों की अधिक भीड़ जुटती है। ये देव भूमि की नगरी है। यहां पितृपक्ष काल में विभिन्न योनियों के तैंतीस करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं। अनेक तीर्थों में पितृपक्ष भिन्न व एकलौती है। यह तीर्थ अनोखी है ही, अद्वितीय भी। क्योंकि गया में पिंड देकर ही लोग मातृ-पितृ ऋण से उऋण होते हैं। ऐसी मान्यता है।

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भक्तिमय वातावरण में पिंडदान करते राज्यपाल फागू चौहान 

जो वेद व पुराण में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। ये तीर्थ बिहार राज्य के गया जिला में स्थित है। यहां हरेक साल पितृपक्ष मेला आयोजित होता है। ये मेला धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जिसे पितरों का महाकुंभ कहा जाता है। यहां अधिकांशतः बुजुर्ग लोग ही पिंडदान करने आते-जाते हैं। इसमें बुजुर्गों सहित युवा व अधेड़ आयु वर्ग वाले महिला और मर्द शिरकत करते हैं। गयाधाम को आदर सहित गयाजी की संज्ञा दी गई है।

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अनोखे पितृपक्ष मेले का समीक्षा करते सीएम नीतीश कुमार

गयाजी दुर्गम सप्त पर्वत श्रृंखलाओं से आच्छादित है। इन पर्वतों में प्रेतशिला, रामशिला, ब्रम्हयोनि, धेनू, नागकूट, मुरली तथा भस्मकूट शामिल है। सनातन हिन्दूधर्मावलंबियों का पिंडदान महान कर्म-कांड है। इसमें श्राद्ध सामाग्री जैसे पीतल का वर्तन इत्यादि चढ़ाया जाता है। जिससे पितरों को सदगति प्राप्त होती है। वहीं प्रेतशिला में श्राद्ध-कर्म और अक्षयवट में संपूर्ण कर्म कांड संपादित होते हैं। इससे पिंडदानियों को समस्त बाधाओं से मुक्ति तथा पूर्वजों को स्वर्ग प्राप्त होते हैं। ऐसी आस्था मान्य है। 

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विष्णुपद के विष्णुचरण की पूजा-अर्चना करते मुख्यमंत्री नीतीश

जाहिर हो कि भादो माह के शुक्ल पक्ष की अनंत चतुर्दशी के दिन से पितृपक्ष मेला आरंभ होता है। पितृ तीर्थाटन करने के लिए देश-विदेश के यात्री आते-जाते हैं। यहां के पवित्र स्थानों के घाटों पर श्राद्ध-क्रिया पिंडदान सहित तर्पन किया जाता है। पिंडवेदी स्थलों में फल्गु नदी का तट, विष्णुपद मंदिर, सीताकुंड, निरंजना नदी, महाबोधी मंदिर, प्रेतशिला, रामशिला, कागवली और अक्षयवट मुख्य है। मुख्यतः इन्हीं स्थलों पर पिंडदान का कार्य संपादित होते हैं। यहां पूर्व में कुल 365 पिंडवेदियाॅं थे। जो विलुप्त होता चला गया।

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पवित्र तर्पण स्थल अन्तः सलिला फल्गू नदी

फिलवक्त 45 पिंडवेदियाॅं बचे हैं। जिस पर पिंडदान किया जाता है। तीर्थस्थलों में उक्त स्थलों का खास महत्व है। यहीं पिंडतीर्थ-कर्म क्रियान्वित होते हैं। इस पिंडदान से पिंडदानियों के 101 पूर्वजों की पीढ़ी को मुक्ति प्राप्त होती है। ज्यादातर पिंडदानी तीन दिनी पिंडदान करते हैं। वहीं कुछ पिंडदानी 17 दिनी पिंडदान पिंडवेदियों पर करते हैं। गयाजी के मशहूर नदियों और सरोबरों में पिंडदान की जाने की रिवाज है। प्रेतशिला में धामी पंडा ही श्राद्ध-पिंडदान कराते हैं। 

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विश्वप्रसिद्ध पितृपक्ष का गहन समीक्षा करते मुख्यमंत्री नीतीश 

वहीं पटना जिलांतर्गत स्थित पौराणिक पुनपुन नदी घाट पर भी पिंडदानी पिंड देते हैं। वैसे तो पिंडदान सालो भर होता ही रहता है। फिर भी हरेक साल पितरों के लिए लगते हैं पितृमेला। यह मेला गयाजी में व्यापक पैमाने पर लगती है। यह मेला विष्व प्रसिद्ध है। इस मौके पर बड़ी संख्या में देश-विदेश के यात्री आते-जाते हैं, अपने पितरों के पिंडदान करने के लिए। यहां पिंडदानियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस पावन देव भूमि पर पितरों का श्राद्ध-कर्म होता है। ये कर्म काण्ड गयापाल पुरोहित ही कराते हैं।

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पिंडदान कराते गयावाल पुरोहित

गयापाल पुरोहितों को गयावाल भी कहा जाता है। वे पिंडदानियों का बही-खाता भी रखते हैं। उस बही-खाते में पिंडदानियों का नाम व पता दर्ज होता है। इसी से पिंडदानियों के पुरोहितों का पता चलता है। कौन पिंडदानी कब, कहां से आये और गए उस खाते में अंकित होते हैं। इस कर्म के लिए पिंडदानियों को गया आना अनिवार्य है। वगैर फल्गु नदी का निर्मल जल व अक्षयवट का स्पर्श किए कल्याण नहीं हो सकता है। क्योंकि फल्गु अंतःसलिला तथा अक्षयवट जिंदा वृक्ष है। जो वैदिक काल का है। इसकी छाया व स्पर्श से प्राणियों को कल्याण होते हैं। मान्यता ऐसी है कि पिंडदान से तिपरों को तृप्ति होती है।

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विष्णुपद के पवन परिसर में भक्तिमय शांतिपूर्ण वातावरण 

गयाजी के महापावन विष्णुपद का पिंड भूमि मोक्षदायणी है। यहां श्रद्धारूपी पिंडदान से पितरों की आत्माओं को तृप्ति मिलती है। प्रत्येक साल मुक्तिदायणी गया नगरी में पितृपक्ष  मेला आयोजित होता है। लोग मेले में आते और अपने पितरों का श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करते हैं। जो विशुद्ध धार्मिक कर्म है। ये परंपरा वैदिक काल से ही चला आ रहा है। इस मौके पर अंतःसलिला फल्गु नदी की महा आरती भी की जाती है। गया को गयाजी की संज्ञा दी गई है। यहां सितम्वर माह में हरेक साल मेला आयोजित होती है।

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पिंडदान स्थल सीता कुंड का जायजा लेते मुख्यमंत्री नीतीश

ये पितृपक्ष मेला 17 दिनों का होता है। ये 17 दिन पिंडदान के लिए काफी उपयुक्त होते हैं। ये प्राच्य युगीन तीर्थ है। यहां के कण-कण में भगवान विष्णु रचे-बसे हैं। जो सिद्धिदायक है ही, मनोकामनाप्रद भी। विदित हो कि पितृपक्ष के मौके पर सिर मुंडन करा कर पूर्वजों को फल्गु नदी के पवित्र जल में स्नान कर श्रद्धा सहित पिंडदान का विधान है। जो काफी प्रचलित है। ज्ञात हो कि गेंहू तथा जौ के आटा का गोल पिंड बनता है। इसमें तील मिलाया जाता है। वही पितरों को समर्पित किया जाता है।

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वंदनीय पवन फल्गू नदी का निर्मल जल 

इसके आलावे फल्गु नदी के बालू का पिंड दिये जाते हैं। इन्हीं पिंडों से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। क्योंकि प्रभु श्रीराम की पत्नी सीता ने अपने ससुर दशरथ की आत्मा की शांति के लिए बालू का ही पिंड दी थी। बालू के पिंड वगैर पिंडदान सफल नहीं माना जाता है। कुछ नहीं तो सिर्फ बालू के पिंड से भी पूर्वज तृप्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं फल्गु नदी के स्पर्श मात्र से भी पूर्वजों की आत्माओं को तृप्ति मिलती है। ऐसी महता है गयाजी की अंतःसलिला फल्गु नदी की। अग्नि व वायु पुराण में इसकी महत्व की चर्चाएं मिलती है।

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पिंडदान एप्प को जारी करते मुख्यमंत्री नीतीश

वहीं महाभारत धार्मिक ग्रंथ में भी विस्तार से वर्णित है। पितरों के तरण-तारन के लिए पिंडदान शुभ फलदायक है। धार्मिक मान्यता ऐसी है कि ब्रम्हाजी ने सर्वप्रथम इस तीर्थ की स्थापना की थी। तब से आज तक ये सिलसिला बरकरार है। भैरव चक्र पर अवस्थित इस गया को आदी काल में आदी गया कहा जाता था। प्राचीन कथा है कि गयासुर देवप्रवृति से परिपूर्ण विष्णु का परम भक्त था। गयासुर असुर वंष में अवतरित हुआ था।

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पिंडदान वेदियों के जायजा लेते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

जो गय जाति का था और असुर था। लेकिन स्वाभाव से वह देवताओं जैसा ही था। ग्रंथों के अनुसार गयासुर सवा सौ योजन उंच्चा और साठ योजन मोटा था। जिसके पिता त्रिपुरासुर और माता प्रभावती थी। धर्मग्रंथों में विवरण मिलता है कि गयासुर के पिता त्रिपुरासुर के आतंक से क्षेत्र आतंकित रहा करता था। प्रभु शंकर ने आतंकित होकर असुर त्रिपुरासुर का वध कर डाला था। परंतु संत स्वाभावी गयासुर ने प्रतिशोध में कोई विपरित कृत नहीं किया। बल्कि धार्मिक आचरण अपना लिया और पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान करने लगा था।

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पिंडदान स्थल का जायजा लेते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

गयासुर ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पर अनवरत हजार वर्षों तक भूखे-प्यासे खड़े रहे। दुर्गम पहाड़ पर कठोर तपस्या किया था। उसकी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु खुश होकर वर दिए थे। भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रभू विष्णु ने गयासुर को साक्षात दर्शन दिए और वरदान भी। भगवान विष्णु ने वर दिया कि जो विष्णुपद धाम में पिंडदान व तर्पण आदि करेगा, उसका मनोरथपूर्ण होगा। उसे समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलेगी। जो कोई प्राणी विष्णुपद में श्राद्ध-पिंडदान करेगा, उसका और उसके पूर्वजों का भी उद्धार होगा।

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विष्णुपद देवघाट तर्पण स्थल 

प्राचीन मान्यता है कि गयासुर के शरीर पर ही पिंडदान होता है। गयासुर ने सिर उतर दिशा की ओर और पांव दक्षिण दिशा की तरफ कर के सोए थे। तभी से ये प्राच्य परंपरा चली आ रही है। गयासुर के पवित्र पुण्यकारी शरीर पर ही यज्ञ संचालित हुआ। जो आज तक अनवरत संचालित है। इसी मान्यता के आधार पर पितृपक्ष मेला लगता है। इसी महत्व को लेकर ये मेला देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है।

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श्रीहरि श्रीहर भगवान विष्णु के चरण की पूजा करते भक्तगण

यहां भगवान विष्णु का एक अतिप्राचीन मंदिर है। जिसमें विष्णु का पद स्थापित है। जिसकी असीम महिमा है। ये मंदिर फल्गु नदी के तट पर अवस्थित है। वहीं इसी मंदिर के सटे श्मशान घाट है। जहां मृत मानवों का अंतिम संस्कार होता है। सच, अजीवोगरीब है ये स्थल – एक तरफ पूर्वजों का श्राद्धरूपी पिंडदान तो दूसरी तरफ मृत मानवों का अंतिम संस्कार। सच, धर्म और कर्म की विचित्र संगम स्थली है। एक तरफ चिताओं की भस्म तो दूसरी तरफ मृतात्माओं को श्राद्ध-जलार्पण।

सचमुच, धार्मिक ऐतिहासिक स्मृतियों से भरा पड़ा है गया की पावन तपःस्थली, तपःभूमि। गया में अनेक देवी-देवताओं की प्राचीन मंदिर व मूर्तियां हैं। इसके अलावे कई दर्शनीय स्थल भी हैं। जिसमें बोधगया का विश्वदाय महाबोधि मंदिर भी शामिल है।  यहां पहुंचने के लिए सड़क, रेल तथा हवाई मार्ग की भी सुविधा है।

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हिन्दूधर्माबलंवियों के अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर 

यहां यात्रियों के विश्राम के लिए कई बेहतरीन होटल की सुविधाएं उपलब्ध हैं। वहीं जिला प्रशासन की ओर से भी यात्रियों की ठहरने की व्यवस्था की जाती है। धर्मशालाओं और पंडागृहों में यात्रियों का आवासन की व्यवस्था होती है। मेला क्षेत्र में यात्रियों की देख-भाल के लिए चिकित्सा शिविरों की भी व्यवस्था की जाती है।

वहीं सुरक्षा व्यवस्थ भी दुरूस्त होती है। विदित हो कि विष्णुपद मंदिर की उंच्चाई 100 फीट और मंडप 50 वर्ग फीट की है। मंदिर मंडप में भगवान विष्णु का पद चिन्ह 13 इंच लंबा है। जो अति प्राचीन है ही, ऐतिहासिक भी। जो प्राच्य गौरवशाली गाथा की गवाह है।

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अशोक कुमार अंज वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट 

 

गया जिला प्रशासन द्वारा पिंडदान स्पेशल ‘तर्पण’ स्मारिका में प्रकाशित 


अक्षरजीवी,

अशोक कुमार अंज

वर्ल्ड रिकार्डी जर्नलिस्ट 

(फिल्मी पत्रकारबाबू)

आकाशवाणी- दूरदर्शन से अनुमोदित साहित्यकार- पत्रकार

संपर्क : वजीरगंज, गया- 805131, बिहार, इंडिया 

– प्रस्तुति : अंज न्यूज़ मीडिया 


– Presentation : AnjNewsMedia


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