Poem

हम झेलैत ही

हम झेलैत ही, महगी के मार दीदी
नेतन के चान्दी, सोना दिबार दीदी

छबिस रूपइए लिटर, बिकय किरासन तेल
गरिबगुरूअन के, घारा अन्धार दीदी

कहां गेल जनबितरन, बिजिली के चकाचौंध
के सुनै हम्मर, सगर कालाबाजार दीदी

डिजल, पिटरोल, रसोई गैस के भाउ, छुए अकास
हम सुखले टटायत, अइसन सरकार दीदी

निमकवो नै जुटैत हे, सुखल रोटी पर
भोटवे हल प्रीत, बाकी भ्रस्टाचार दीदी

हाल बेहाल, तन उघार, मन भुखल उदास
गदी मिलल, अउ बादा देलक बिसार दीदी

नाम हे गरीब मसीहा, आउ काम सोसन
हम्मर ललसा बन गेल, सुखल अचार दीदी

बजट भेल एते महगा, की जनता डमाडोल
कमर तोड़ बजट से तंग, सउंसे सन्सार दीदी

हम झेलैत ही…
नेतन के चान्दी….

* आकाशवाणी, पटना से प्रसारित*
गजलकार,
अशोक कुमार अंज
साहित्यकार व टीवी पत्रकार
वजीरगंज, गया (बिहार)

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