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गौरैया को बचाना

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छोटे आकार वाली खूबसूरत गौरैया पक्षी का जिक्र आते ही बचपन की याद आ जाती है। कभी इसका बसेरा इंसानों के घर-आंगन में हुआ करता था। लेकिन पर्यावरण को ठेंगा दिखाते हुए कंक्रीट के जगंल में तब्दील होते शहर और फिर गांव ने इन्हें हमसे दूर कर दिया है। 

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हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है।गौरैया छोटे पास्ता परिवार का पक्षी है। इसका वैज्ञानिक नाम पासरीडे Passeridae है। 46 कि॰/घं॰की गति से उड़ सकती है। पंखों का फैलाव: यूरेशियाई वृक्ष गौरैया: 21 सें.मी. है। गौरैया का जीवनकाल, घरेलू गौरैया और यूरेशियाई वृक्ष गौरैया 3 वर्ष है। घरेलू गौरैया का द्रव्यमान 24 – 40 ग्रा. होता है।

गौरैया की आबादी में गिरावट 

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर 2002 में गौरैया को संकटग्रस्त रेड कार्ड में शामिल किया ।

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अनवरत प्रसारण

संरक्षण का यह सवाल हर वर्ष 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ के दिन सामने आता हैं। 

गौरैया की संख्या में कमी के पीछे  कई कारण हैं जिन पर लगातार शोध हो रहे हैं। 

कारणों में  बढ़ता आवासीय संकट, आहार की कमी, खेतों में  कीटनाशक  का व्यापक प्रयोग, जीवनशैली में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, शिकार, गौरैया को बीमारी और मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन को दोषी बताया जाता रहा हैं। 

संख्या  है  स्थिर

गौरैया की घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल कर दिया था। 

आंकडे  बताते  हैं  कि  विश्व  भर में  घर-आंगन  में  चहकने – फूदकने  वाली  छोटी  सी  प्यारी  चिड़िया  गौरैया  की  आबादी  में  60  से  80  फीसदी  तक  की  कमी  आई  है। 

ब्रिटेन  की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया  को ‘रेड लिस्ट’ में  डाला  था। 

स्टेट ऑफ इंडियनस बर्ड्स 2020, रेंज, ट्रेंड्स और कंजर्वेशन स्टेट्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले 25 साल से गौरैया की संख्या भारत  में  स्थिर  बनी  हुई  है। 

हालाँकि, इसके  संरक्षण  के प्रति जागरूकता को लेकर  दिल्ली सरकार ने 2012 और बिहार  सरकार  ने 2013 गौरैया को  राजकीय  पक्षी  घोषित  कर  रखा  है।

गौरैया संरक्षण की शुरुआत

गौरैया संरक्षण की शुरुआत सबसे पहले भारत के महाराष्ट्र से हुई। गौरैया, गिद्ध के बाद सबसे संकट ग्रस्त पक्षी में से है। बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से जुड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद  मोहम्मद  ई  दिलावर  ने 2008 से गौरैया संरक्षण शुरु की थी। 

गौरैया से  विश्व  को प्रथम परिचय 1851 में अमेरिका के ब्रूकलिन इंस्टीट्यूट ने कराया था।

संरक्षण से नहीं जुड़ने के कारण : चिड़ियों द्वारा गन्दा फैलाना

गौरैया को खतरा गौरैया के लिए मुख्य खतरों में से एक शिकार है। 

गौरैया कई पारिस्थितिक तंत्रों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और बीजों के फैलाव और कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनके पास सांस्कृतिक भी है

जागरूकता  से  गौरैया  की  घर  वापसी

गौरैया संरक्षण का अलख राजकीय पक्षी घोषित राज्य दिल्ली और बिहार सहित पूरे भारत में जोर-शोर से चल रहा है। 

गौरैया की घर वापसी में दाना-पानी की भूमिका अहम है। देश भर में गौरैया सहित अन्य  चिड़िया  को  बचाने  के  लिए  हर गरमी  के मौसम में पानी रखने की खास अपील होती रहती है। 

देखा जाये तो गौरैया की वापसी में पेड़ की भूमिका भी अहम है। अभियान से जुड़े लोग गौरैया सहित दूसरी चिड़ियों के लिए पेड़ लगाने का आह्वान करते आ रहे हैं। इस दिशा में कारगर काम हुआ है। 

– AnjNewsMedia Exclusive Presentation

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